राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बीजेपी ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है, उसने विपक्षी खेमे के गुब्बारे की हवा निकाल दी है. एनडीए विरोधी तीन पार्टियों द्वारा द्रौपदी मुर्मू को  समर्थन देने का ऐलान करने के बाद राष्ट्रपति पद के लिए अब उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है.


वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने फैसलों से पहले भी चौंकाते रहे हैं लेकिन जब 13 दलों वाले विपक्षी खेमे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा का नाम राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए आगे बढ़ाया, तो उसी शाम बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का ऐलान करके विपक्ष के साथ देश को भी चौंका दिया कि एक महिला और वह भी आदिवासी, देश की राष्ट्रपति बन सकती हैं.


दरअसल, पीएम मोदी को ये एहसास था कि मुर्मू को उम्मीदवार बनाने से एनडीए विरोधी कुछ दलों को उनके पक्ष में अपना समर्थन देना मजबूरी बन जायेगा और एनडीए के पास कुछ कम संख्या बल होने के बावजूद उनकी जीत बेहद आसान हो जाएगी. अब वही होता दिखाई भी दे रहा है.


चूंकि द्रौपदी मुर्मू का नाता ओडिशा से है, इसलिए मुख्यमंत्री और बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक ने तो उन्हें समर्थन देने का ऐलान पहले ही कर दिया.उसके बाद शिवसेना और टीडीपी ने भी यही घोषणा कर दी और अब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने भी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है.


जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन ने बयान जारी कर कहा कि आजादी के बाद पहली बार किसी आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त होने वाला है. अतः सम्यक विचारोपरांत पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करने का निर्णय लेती है. पार्टी के सभी सांसदों और विधायकों को निर्देशित किया जाता है कि राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करेंगे.


जेएमएम का ये ऐलान विपक्ष के लिए बड़ा झटका है. हालांकि झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई में कांग्रेस और जेएमएम गठबंधन की सरकार है. कांग्रेस विपक्षी दलों के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रही है. लेकिन जेएमएम ने ये फैसला लेकर आदिवासियों के बीच अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने का ही काम किया है और ऐसा करना उसकी मजबूरी भी थी. 


झारखंड विधानसभा की 81 में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इसमें से फिलहाल 26 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का कब्जा है.अगर जेएमएम मुर्मू का समर्थन नहीं करता तो, आदिवासियों के बीच इसका गलत संदेश जाता, जो उसके सियासी भविष्य के लिये बड़ा खतरा बन जाता.


दरअसल, संताल आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं, तब वहां बीजेपी सत्ता पर काबिज थी. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मुर्मू ने अपने कार्यकाल के दौरान तब विपक्ष की राजनीति करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी काफी हद तक प्रभावित किया था. 


फिलहाल झारखंड की सत्ता पर काबिज जेएमएम के 30 विधायक हैं,जबकि लोकसभा व राज्यसभा में उसका एक-एक सदस्य है.बताते हैं कि मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और द्रौपदी मुर्मू के बीच बेहतर रिश्ते हैं. शायद यही वजह थी कि पिछले दिनों जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार के सिलसिले में द्रौपदी मुर्मू रांची पहुंचीं, तो सोरेन ने खुद आगे होकर उनका स्वागत किया. इसके बाद से ही जेएमएम के उन्हें समर्थन देने को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी. 


दरअसल, देश में आदिवासियों की आबादी 12 करोड़ से अधिक है लेकिन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर इनकी भागीदारी अन्य समुदायों की अपेक्षा बहुत कम है. ऐसे में बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसके एजेंडे में समरस और सर्वस्पर्शी समाज की परिकल्पना सर्वोपरि है.


इस बीच आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ से भी ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां के आदिवासी कांग्रेसी विधायक भी द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में वोट कर सकते हैं क्योंकि वे अपने आदिवासी मतदाताओं की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहते.


बहरहाल, 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे लेकिन 25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू जब पहली आदिवासी महिला के बतौर भारतीय गणतंत्र के 15 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले रही होंगी, तो संवैधानिक इतिहास की एक नई इबारत भी लिखी जा रही होगी.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)