जो पुल बनायेंगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जायेंगे.
सेनायें हो जायेंगी पार
मारे जायेंगे रावण
जयी होंगे राम;
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बंदर कहलायेंगे


-अज्ञेय


जो निर्माता रहे ...हैं...या होंगे वो अनिवार्यत: पीछे रह जायेंगे ! इतिहास में बंदर कहलाएंगे!
क्यों ?


न्यूज़ टेलीविजन इतिहास की सबसे बड़ी सीरीज़़ 'प्रधानमंत्री' का दूसरा सीजन शुरू होने वाला है. 2013 में जब सीरीज की शुरूआत हुई तब मुझे इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि 'प्रधानमंत्री' एक मील का पत्थर साबित होगा. भारत के न्यूज़़ टेलीविजन इतिहास में इस पैमाने का काम पहले कभी नहीं हुआ था . हमारे पास कोई मापदंड नहीं था. हमारे पास काम को आंकने के लिए कोई पैमाना नहीं था. इतिहास की वैसी समझ भी नहीं थी जो 'प्रधानमंत्री' जैसे कार्यक्रम को बनाने के लिए जरूरी समझी जाती थी. लेकिन संस्थान के अंदर बाहर कई लोग थे जिनको इस तरह की सीरीज पर भरोसा था. मेरे मना करने पर भी कहते रहे ...हो जायेगा ...कर लोगे.


सीरीज - 1 , में 26 एपिसोड थे. प्रधानमंत्री-1 सीरीज़ में आजाद भारत के बनने की कहानी कही गई. भारत के प्रधानमंत्रियों ने क्या किया और क्या नहीं किया ..इसकी कहानी थी. पांचवे, छट्टे एपिसोड के प्रसारण के बाद मुझे लगा कि कुछ बड़ा काम हो गया है. दर्शकों ने कार्यक्रम को भरपूर सराहा. देखा, समझा, प्रेरणा ली और प्रसारण खत्म होने के बाद से ही लगातार पूछा जाता रहा कि प्रधानमंत्री सीरीज़ -2 क्यों नहीं बनाते?



मेरे सामने वही सवाल था कि प्रधानमंत्री सीरीज -2 में दिखायेंगे क्या? कुछ और किया जाये, कुछ अलग किया जाये. खैर, इस बीच , 'रामराज्य', 'भारतवर्ष', 'रक्तरंजित' जैसी सीरीज़ बनाई. 'रामराज्य' सीरीज़ के लिए मुझे पत्रकारिता में उत्कृष्ठ काम के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार और प्रतिष्ठित न्यूज़ टेलीविजन एवार्ड से सम्मानित किया गया.


इन सभी उपलब्धियों के बावजूद एक सवाल हमेशा सामने रहा कि प्रधानमंत्री सीरीज-2 क्यों नहीं बनाते? फिर लगा कि 'प्रधानमंत्री' सीरीज़ तथ्यों के साथ ईमानदारी और आधुनिक भारत के इतिहास के साथ जिस भरोसे का प्रतीक है उसका वृहत्तर इस्तेमाल संभव है.


दर्शकों को सही तथ्यों से वाक़िफ़ कराना बतौर चैनल हमारा फर्ज़ है और इसमें 'प्रधानमंत्री सीरीज़' की अपनी खास भूमिका हो सकती है.


हमें लगा कि अनिवार्यत:, आज की पीढ़ी और पिछली पीढ़ियों के बीच पुल बनाने की जरूरत है. सच्चाई की नींव पर बना पुल, तथ्यों की ईटों पर खड़ा पुल, जिस पर आज की पीढ़ी ...आने वाली पीढ़ियां लगातार आ जा सकें. अपने इतिहास से संवाद स्थापित करें. समय की मजबूरियों को समझे और उनसे कुछ सीखें. और ऐसा करने से क्या हम पीछे रह जायेंगे. जैसा कि मेरे प्रिय कवि और लेखक अज्ञेय को डर था. प्रधानमंत्री -1 की सफलता हमें बताती है कि यह अनिवार्य नहीं है. इतिहास ने या इतिहास लिखने वालों ने  जिन्हें “बंदर” बना कर गौण कर दिया ...उन “बंदरों” ने समंदर की तलहटी में पत्थर छोड़े हैं. उन पत्थरों पर हमारे लिए...आपके लिए इबारतें..सीख ...समझ...संवाद लिख छोड़ा है. उन्हें पढ़ने के लिए एक डुबकी तो बनती है. प्रधानमंत्री -2 एक डुबकी है.