गुजरात का गिर पूरे एशिया में एकमात्र ऐसा जंगल है जहां शेर पाए जाते हैं. ये वो जगह भी है जहां लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए चुनाव आयोग सिर्फ़ एकमात्र वोटर के लिए पोलिंग बूथ लगाता है. चुनाव वाले दिन दस लोगों का स्टाफ़ EVM मशीन के साथ घने जंगल के भीतर 24 किलोमीटर तक पहुंचता है और एक मंदिर के महंत को वोट डालने का इंतज़ाम करता है.


(लोकतंत्र में एक एक वोट की कीमत होती है. एक वोट किसी उम्मीदवार को चुनाव हरा भी सकता है और जिता भी सकता है. इस एक वोट की अहमियत को समझते हुए हमारे चुनाव आयोग ने ऐसा इंतज़ाम किया है कि देश का आख़िरी मतदाता भी अपने वोट डालने के अधिकार का इस्तेमाल कर सके. साथ ही इसकी एक मिसाल हमें देखने मिलती है गुजरात में जहां सिर्फ़ एक मतदाता के लिए चुनाव आयोग पोलिंग बूथ लगाता है. वो एक मतदाता भी रहता है गिर के घने जंगल में. तो आइए चलते हैं उस मतदाता के पास और वहां जाकर समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे लोकतंत्र का जंगल में मंगल हो रहा है.)


हम जिस जंगल से गुज़र रहे हैं वो गिर नैशनल पार्क का हिस्सा है और पौने सात सौ एशियाई शेरों का घर है. 19वीं सदी में शेर पश्चिम एशिया के एक बड़े हिस्से में पाये जाते थे लेकिन अब उनकी आबादी सिर्फ इस जंगल तक सिमट कर रह गई है. जंगल से गुजरते वक्त हिरन, मोर, नेवला, बाज वगैरह भी अच्छी तादाद में नज़र आते हैं. इन जंगली जीव जंतुओं की तसवीरें अपने कमरे में कैद करते हुए हम घने जंगल में 25 किलोमीटर अंदर तक पहुंच गए हैं. अपनी मंजिल के पास पहुंचने पर हमें नदी किनारे एक भारी भरकम मगरमच्छ आराम फरमाते नज़र आया.


(इस जंगल में शेर की दहाड़ भी है, अजगर की फूंफकार भी है. हम क़रीब 24 किलोमीटर जंगल के भीतर आए हैं और आसपास हमें कोई इंसानी बस्ती नज़र नहीं आयी लेकिन यहां एक इंसान ज़रूर रहता है जो कि इस जंगल में एकमात्र वोटर है)


हम जब यहां पहुंचे तो हमें एक सज्जन भगवान् शिव को जलाभिषेक करते नज़र आये. ये बाणेज नाम के इलाके में स्थित बाणेश्वर महादेव मंदिर के महंत हरिदास उदासीन हैं. इस जंगल में सिर्फ इन्ही की खातिर चुनाव आयोग पोलिंग बूथ लगाता है. चुनाव अधिकारी और पुलिसकर्मियों को मिलाकर दस लोगों की टीम मतदान की तारिख से एक दिन पहले ही यहां पहुंच जाती है. पोलिंग बूथ मंदिर के पास मौजूद वन विभाग के दफ्तर में बनाया जाता है.


चुनाव आयोग इस जंगल में एकमात्र वोटर के लिए बीस साल से भी ज्यादा वक्त से पोलिंग बूथ लगा रहा है. पहले महंत हरिदास के गुरू भरत दास यहां से एकमात्र वोटर हुआ करते थे. 2019 से महंत हरिदास के लिए ही यहां पोलिंग बूथ लगता है. विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा और जिला परिषद के चुनाव के लिए भी चुनाव आयोग यहां बूथ बनाता है. महंत हरिदास खुद को चुनाव आयोग के प्रति एहसानमंद मानते हैं कि इतने दुर्गम इलाके में भी आयोग सिर्फ इसलिए इतना तामझाम करता है कि वे वोट दे सकें.


ये इलाका गिर-सोमनाथ जिले में आता है. जिला प्रशासन के मुताबिक़ इतने घने जंगल में मतदान करवाना चुनौतीपूर्ण है लेकिन कोई भी मतदाता वोट डाल पाने से वंचित न रह जाए इसलिए पूरा इंतज़ाम किया जाता है. जंगल में टॉवर न होने के कारण मोबाइल फोन काम नहीं करते इसलिए वन विभाग के वायरलेस नेटवर्क की मदद ली जाती है.


जिस बाणेश्वर मंदिर के हरिदास महंत हैं वो काफी प्राचीन है. स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक़ अर्जुन ने यहां दो तीर चलाकर गंगा की उत्पत्ति की थी. जब हम मंदिर में थे तब हमें कोई शेर तो नज़र नहीं आया लेकिन महंत हरिदास के मुताबिक़ मंदिर परिसर में शेरों का आना एक आम बात है. वे एक शेर का किस्सा सुनाते हैं जो कुछ साल पहले तक रोज़ आरती के वक्त आया करता था उसका नाम इन्होंने भगत रखा था.


महंत हरिदास जिले की ऊना विधानसभा सीट के मतदाता हैं. ऊना प्रशासकीय मुख्यालय से उनका मंदिर 60 किलोमीटर के फासले पर है. दूर जंगल में रहने के कारण और जंगली जानवरों के डर से किसी भी पार्टी का उम्मीदवार महंत हरिदास के पास वोट मांगने के लिए आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता लेकिन हरिदास कोई आये चाहे नहीं कभी वोट देने से नहीं चूकते.


(तो देखना आपने कि एक एक वोट के लिए चुनाव आयोग किस तरह के इंतज़ाम करता है. आपका वोट ही लोकतंत्र को ज़िंदा रखता है. इसलिए गुजरात के लोगों एक दिसम्बर को आलस न करना और वोट डालने के लिए ज़रूर निकलना)


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