लोकतंत्र के इतिहास में शायद ये पहली बार ही हुआ है कि देश के प्रधानमंत्री की अगवानी करने के लिए उस राज्य के मुख्यमंत्री एयरपोर्ट न पहुंचे हों. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्र शेखर राव ने शनिवार को हैदराबाद के एयरपोर्ट न पहुंचकर राजनीति में एक नई परंपरा की शुरुआत ही नहीं की है, बल्कि उन्होंने संविधान के उस प्रोटोकॉल को भी तोड़ा है, जो पिछले 75 बरस से बदस्तूर जारी है. हालांकि ऐसा केसीआर ने पहली बार नहीं किया है. 


बेशक केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस से बीजेपी की सियासी अदावत है लेकिन फिर भी उन्होंने पीएम मोदी की अगवानी न करके ये तर्क देने की कोशिश की है कि पीएम तो अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने यहां आये हैं. राज्य सरकार ने तो उन्हें आमंत्रित नही किया, तो भला मुख्यमंत्री को उनकी अगवानी के लिए किसलिए जाना चाहिए था. उनके तर्क को बहुतेरे लोग सही भी मान सकते हैं. लेकिन याद रखने वाली बात ये है कि दो दलों के बीच राजनीतिक दुश्मनी अपनी जगह है लेकिन निर्वाचन के जरिये सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे प्रधानमंत्री जब किसी राज्य में जाते हैं,और अगर वहां का मुख्यमंत्री उनकी अगवानी के लिए मौजूद नहीं होता है, तो ये सिर्फ उस पद का नहीं बल्कि समूचे संविधान के प्रोटोकॉल का अपमान होता है.


तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का शुभारंभ करने के लिए शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी हैदराबाद पहुंचे लेकिन वहां उनकी अगवानी के लिए केसीआर नहीं थे. बल्कि वे विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की अगवानी करने के साथ ही उन्हें अपने सांसदों-विधायकों के साथ मिलवाने औऱ उनका शक्ति प्रदर्शन करवाने में मशगूल थे.


जनसभा में पीएम के निशाने पर रहेंगे केसीआर
आज यानी रविवार को पीएम मोदी उस बैठक में समापन भाषण देने के साथ ही एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे. जाहिर है कि उनके निशाने पर केसीआर के इस बर्ताव के अहंकार को चकनाचूर करना तो होगा ही, साथ ही वे तेलंगाना में बीजेपी की जमीन मजबूत करने के लिए कुछ ऐसी घोषणाएं भी कर सकते हैं, जो केसीआर को शायद रास न आएं. पीएम मोदी के तीर चलाने से पहले ही तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष ने जो कुछ कहा है, उससे अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समंदरी प्रदेश में अगले साल क्या सियासी तूफान आने वाला है. तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष संजय बादी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर पर तंज कसते हुए कहा, 'टाइगर के आते ही लोमड़ियां भाग जाती हैं. अब जब बाघ आया है तो वह (केसीआर) भाग रहा है, हम नहीं जानते कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? आने वाले दिनों में यहां भगवा और कमल के झंडे फहराएंगे.'  


उनका ये दावा कितना हकीकत में बदलेगा,ये हम नहीं जानते. लेकिन साउथ की राजनीति को समझने वाले पत्रकार कहते हैं कि बीजेपी ने उत्तर भारत में कब्ज़ा करने के बाद दक्षिण भारत पर भगवा लहराने की जो रणनीति बनाई है, शायद उसका अहसास केसीआर को भी हो गया है, इसलिये एयरपोर्ट जाकर पीएम को रिसीव न करना, उनकी कुंठा को ही दर्शाता है. हालांकि बीजेपी की इस बैठक होने से पहले ही हैदराबाद की सड़कों पर जो पोस्टर-वार छिड़ी हुई है, उसे जानकर हम उत्तर भारत में रहने वालों का हैरान होना इसलिए भी लाजिमी है कि तेलंगाना पर कब्ज़ा करने के लिए बीजेपी कितनी चतुराई से आगे बढ़ रही है. दरअसल, हैदराबाद के लोग भी इसलिए हैरान हैं कि चुनाव से इतना पहले उन्होंने कभी दो पार्टियों के ऐसे तीखी भाषा वाले पोस्टरों को कभी नहीं देखा.


हैदराबाद में पोस्टर वॉर
पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से हफ्ता भर पहले ही बीजेपी ने सभी प्रमुख चौराहों को ऐसे पोस्टरों से लाद दिया जिसमें तेलुगू भाषा में लिखा था- "सालु डोरा, सेलावु डोरा" (यानी ,आपको जितना करना था, आप कर चुके. अब आप जाएं.) बीजेपी इसी नारे के साथ ही वहां आगे बढ़ रही है. लेकिन टीआरएस को भी बीजेपी की इस रणनीति का अहसास हो गया कि वो यहां क्या खेल करना चाहती है. चूंकि राज्य में सरकार ही उसकी है, सो वह बीजेपी को मुंहतोड़ जवाब देने में भला कैसे पीछे रहती. उसने भी पूरे हैदराबाद को पोस्टरों और बैनरों से पाट रखा है. टीआरएस ने बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर पर लिखवाया है- "सालू मोदी, संपाकू मोदी" यानी (अब बहुत हो गया मोदी, हमें और ना मारो). हैदराबाद के लोगों के लिए यह नया अनुभव इसलिये है कि उन्होंने दो सियासी पार्टियों के बीच पहली बार ऐसी 'पोस्टर-वॉर' को अपनी आंखों से देखा है.


कहते हैं कि जहां जाकर विपक्षी दलों की सोच खत्म हो जाती है, वहां से पीएम मोदी की राजनीति शुरू होती है. वैसे तो अगले साल कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन बीजेपी ने अपनी इस बैठक के लिए तेलंगाना को ही चुनकर समूचे दक्षिण भारत की राजनीति में ये संदेश देने की कोशिश की है कि कर्नाटक के बाद तेलंगाना में भी अब वो अपनी भगवा पताका लहराने के लिए तैयार है. तेलंगाना में भी अगले साल ही विधानसभा चुनाव हैं. पांच साल पहले 2018 में हुए चुनावों में यहां बीजेपी को महज़ एक ही सीट मिली थी. लेकिन अगले ही साल यानी 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों से बीजेपी की बांछें खिल गईं क्योंकि उसे 4 सीटों पर कामयाबी मिल गई. उसी जीत के बाद बीजेपी नेतृत्व  का ये अहसास यकीन में बदल गया कि अगर साउथ का किला जीतना है, तो कर्नाटक के बाद अब तेलंगाना पर भी अगर पूरी तरह से फोकस किया जाये, तो इसे भी फ़तह किया जा सकता है. उसके बाद ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनावों में अपने  शानदार प्रदर्शन करने और फिर दो विधानसभा सीटों के हुए उप-चुनाव के नतीजों ने बीजेपी की उम्मीदों को और भी पंख लगा दिए. अब बीजेपी उन नेताओं को अपने पाले में लाने और लुभाने की कोशिश कर रही है जो टीआरएस से खुश नहीं हैं.


तेलंगाना के राजनीतिक विश्लेषक राका सुधाकर राव कहते हैं कि "राज्य की सभी 119 विधानसभा सीटों पर 119 प्रमुख नेता पिछड़ों व दलितों के घरों में रहते हुए बीजेपी को मज़बूत करने के लिए जो काम कर रहे हैं,उसका अंदाजा शायद केसीआर को भी नहीं है कि बीजेपी उनकी जमीन किस हद तक उखाड़ने में लगी है."


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)