नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सभी राज्यों को कोरोना वैक्सीन मुफ़्त में दिए जाने का जो एलान किया है, वह सराहनीय कदम है, लेकिन इसके पीछे विपक्ष शासित राज्य सरकारों का दबाव तो था ही, पर उससे भी ज्यादा अहम सुप्रीम कोर्ट की वे तीखी टिप्पणियां रहीं हैं, जो वैक्सीनेशन की नीति को लेकर केंद्र सरकार के लिये पिछले दिनों की गईं थीं. इस मामले पर अभी सुनवाई हो रही है और कह सकते हैं कि फैसला आने से पहले ही केंद्र सरकार ने कोर्ट के मूड को भांपते हुए यह बड़ा निर्णय लिया, ताकि किरकिरी होने से बचा जा सके.


शायद यही कारण है कि विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र के इस फैसले का स्वागत करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का आभार जताना भी नहीं भूल रहे. हालांकि दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे विपक्षी दलों वाले राज्य इसे अपनी जीत मान सकते हैं. अगर पिछले करीब ढाई महीने में देश की न्यायपालिका में कोरोना से जुड़े मामलों पर गौर किया जाए, तो हर बार कोर्ट के तीखे तेवरों के बाद ही सरकारें हरकत में आई हैं, फिर मामला चाहे बेड-ऑक्सिजन का हो या वैक्सीन की कमी का हो.


लेकिन वैक्सीन की उपलब्धता व राज्यों को उसके बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर साफ कहा था कि इस बारे में केंद्र सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है और इसके लिए पूरे देश में एक समान नीति बननी चाहिए क्योंकि वैक्सीन उपलब्ध कराना, केंद्र की प्राथमिक जिम्मेदारी है. वैक्सीन के मुद्दे पर केंद्र व राज्यों के बीच किसी तरह का टकराव नहीं होना चाहिए. आज के इस ऐलान से इतना साफ हो गया कि इस मसले पर केंद्र व राज्यों के बीच बढ़ते टकराव को खत्म करने व अपना इक़बाल कायम रखने के लिए मोदी सरकार को एक तरह से मजबूरी में ही सही लेकिन यह फैसला लेना पड़ा.


हालांकि वैक्सीन के मसले पर राजनीति भी खूब हुई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुरुआत में ही यह मांग कर दी थी कि सभी देशवासियों को मुफ्त वैक्सीन देना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती. बाद में भी वे लगातार केंद्र पर निशाना साधते रहे. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित अन्य कांग्रेसी राज्यों के मुख्यमंत्री भी यही रोना रोते रहे कि राज्यों को फ्री वैक्सीन देना केंद्र का ही काम है और इसके लिए राज्यों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ न डाला जाए.


अच्छी बात ये है कि पीएम की इस घोषणा के बाद वैक्सीन-राजनीति पर कुछ हद तक ब्रेक लगेगा. कुछ हद तक इसलिये कि चूंकि अब केंद्र सभी राज्यों को मुफ़्त में वैक्सीन देगा, लिहाजा इसके बंटवारे का पैमाना भी वह अपने हिसाब से तय करेगा. इसलिये अब विपक्षी राज्यों की तरफ से यह नया बखेड़ा शुरू हो जाएगा कि या तो उन्हें वेक्सीन देरी से मिल रही है या फिर कम मिल रही है.


लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी आबादी को वैक्सीन देने की नीति बनाते वक्त केंद्र सरकार ने इसके अमल में आने वाली खामियों की तरफ आखिर ध्यान क्यों नहीं दिया? पहले यानी 16 जनवरी से अप्रैल अंत तक वैक्सीन देने की जो नीति बनाई गई थी, उसमें अगर बदलाव नहीं किया जाता, तो न कोई भ्रम रहता और न ही किसी को सियासत करने का मौका मिलता. उलटे, देश में वेक्सीन की पहली खुराक लेने वालों की तादाद और भी बढ़ गई होती. लिहाजा केंद्र के इस फैसले को यही कहा जायेगा- देर आयद, दुरुस्त आयद. 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)