पहले न्यू एजूकेशन पॉलिसी, फिर किताबों में कुछ बदलाव. सीबीएसई बोर्ड ने 10वीं और 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए ओपन बुक एग्जाम का नया पैटर्न स्वीकार कर लिया है. नवंबर 2024 से इसे शुरू कर दिया जाएगा.  इसे लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं, अफवाहें और अजीब सी बातें सामने आ रही है. इससे विद्यार्थियों को हालांकि काफी सुविधा होगी, इस पर लोग सहमत दिख रहे हैं.  कोविड-19 के समय भी इस तरह का प्रयास किया गया था. कुछ विश्वविद्यालयों में पहले भी इस तरह की कोशिश की जा चुकी है. विद्यार्थियों का एक तबका इससे बेहद खुश है, लेकिन किसी भी नए प्रयास में शुरुआती दौर में जिस तरह की आशंकाएं होती हैं, वह इसको भी लेकर हैं. 


क्या है ओपन बुक एग्जाम, समझिए 


ओपन बुक एग्जाम भारत में कुछ संस्थानों में पहले भी किया था. यह बीएचयू, दिल्ली विश्वविधालय सहित कई जगहों पर हो चुका है. इसमें परीक्षार्थियों को यह स्वतंत्रता होती है कि वह अपने साथ जो भी सहायक सामाग्री, निर्धारित पाठ्यपुस्तकें चाहें लेकर जा सकते हैं और दिये गए प्रश्न का उत्तर लिखने में उसका उपयोग कर सकते हैं. परंपरागत परीक्षा प्रणाली में चेक किया जाता है कि कहीं परीक्षार्थी के पास किसी प्रकार की किताब तो नहीं है, कोई चिट तो नहीं है. कई राज्यों में नकल को लेकर कड़े कानून भी बनाए गए हैं.



यदि कागज का सादा टुकड़ा भी मिल जाता है तो परीक्षार्थी को निष्कासित कर दिया जाता है औैर साथ में जेल भी भेजा जाता है. इसकी तुलना में यह एक बड़ी संस्था के द्वारा किया जा रहा नया प्रयोग है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विद्यार्थी किताब का उपयोग कर एग्जाम दे सकते हैं. फिलहाल इसे छोटे-छोटे विद्यालयों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत 6 महीनें के लिए चलाया जायेगा. इसकी सिफारिश राष्ट्रीय पाठ्यचर्या में की गई है जिसे एनसीएफ (National Curriculum Framework) कहते हैं. इसी आधार पर शिक्षा को अगले चरण में ले जाने के लिए शुरुआती कदम माना जा सकता है.


बदल जायेगा प्रश्न पत्र का पूरा स्वरूप 


हालांकि, यह इतना भी आसान नहीं है. अभी तक परीक्षा में केवल विद्यार्थियों की स्मृति के आधार पर उन्हें आंक रहे थे, उनके स्मृत ज्ञान पर बात कर रहे थे और उसी को जांच रहे थे. कुछ प्रश्न ऐसे भी होते थे जिनके चिंतन क्षमता का सोचने का प्रयास किया जाता था, लेकिन ओपन बुक प्रणाली का मूल फोकस उच्य चिंतन क्षमता, विश्लेषण और समस्या के समाधान के लिए होगा. इसमें प्रश्न पत्रों का पूरा रूप बदल जायेगा. जो उत्तर लिखा जायेगा वो परंपरागत उत्तरों से अलग होगा. कई बार उसमें रचनात्मकता की आवश्यकता है. जब रचनात्मक लेखन किया जाता है तब सामने 50 किताबें पड़ी हों उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन जब उस विषय पर आप लिखने जाते है तो अकेले होते है. लगभग वही स्थिति यहां भी देखने को मिल सकती है. एक अगले चरण में इसे ले जाने का प्रयास किया जा रहा है. शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल है, पहले कोशिश यह थी कि स्कूल चलें, फिर सर्व शिक्षा हो जाए. अब गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा हो जाए इसके लिए प्रयास किया जा रहा है. 


शिक्षकों की ट्रेनिंग पर अधिक बल


शिक्षकों के बदलने पर ही इसका दारोमदार है. एक ही पाठ्यपुस्तक होती है और अच्छे शिक्षकों के हाथ से ही विद्यार्थी निखरता है. शिक्षक अच्छा न हो तो अच्छे विद्यार्थी भी खराब हो जाते है. इसमें शिक्षकों के ऊपर अधिक बल देना है और शिक्षकों की क्वालिटी ट्रेनिंग पर ज्यादा ध्यान देना है क्योंकि सीबीएसई की गतिविधियां पिछले दो साल में ट्रेंनिग की रही हैं और पूरे देश में एनसीआरटी, एससीआरटी के लेवल पर अलग-अलग राज्यों में जो संस्थाएं हैं, वे शिक्षकों की ट्रेनिंग पर अधिक बल दे रहे हैं, उसके लिए अधिक फंडिंग की जा रही है. हालांकि, इसमें इस बात का भी ध्यान देना पड़ेगा कि जो ट्रेनिंग हो रही है उसमें क्वालिटी ट्रेनिंग हो जाए. प्रश्न पत्र के निर्माण के लिए भी शिक्षकों की ट्रेनिंग होनी है कि किस तरह से प्रश्न पत्र का निर्माण करें कि विद्यार्थी अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने में सक्षम हो जाएं. 


ओपन बुक सिस्टम से कुंजी वाली परंपरा नष्ट


यहां थोड़ी बात जेएनयू की. वहां पहले एक प्रश्न में कम-से-कम 3 कंपोनेंट्स होते थे. एक सेमिनार, एक टर्म-पेपर होता था और एक परंपरागत परीक्षा होती थी. इन तीनों को मिलाकर एक मूल्यांकन किया जाता था. उसमें महत्वपूर्ण बात यह थी कि आपके पास सारी पुस्तकें उपलब्ध होती थी जिसे लेकर आप एग्जाम लिखते थे. इसमें किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं था कि आप कितने पुस्तकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन अंतिम बात यह होती थी कि आपने जो लिखा है क्या आप उसे तार्किक ढंग से डिफेंड कर सकते है या नहीं. अपनी बातों को सही ढंग से लिखना, साबित करना और उसका बचाव करना . जेएनयू में मित्र ही आपसे सवाल पूछते थे और जवाबदेह भी थे. कुल मिलाकर जब इस तरह से पढ़ते है तो उसमें आपके भीतर की क्षमता का विकास होता है, जो शायद सामान्य किताब और कुंजी को रटकर न आए. ज्यादातर विश्वविद्यालयों में जब परीक्षाएं नजदीक आती है तो विद्यार्थी गाइड खरीदते है, गाइड में दिए गए प्रश्नों को पढ़ते है और उसमें से जो प्रश्न एग्जाम में आते है उसे लिख देते है. भारत में पढ़ने-पढ़ाने का एक सिलसिला इसी प्रकार है. जब ओपन बुक सिस्टम आयेगा तब शायद कुंजी वाली परंपरा पर भी गहरी चोट करेगा.


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