बिहार में सरकार बदली, गठबंधन बदला. बिहार कितना बदलेगा किसी को कोई अंदाजा नहीं. बहरहाल, एक सप्ताह के अंदर ही नीतीश कुमार दिल्ली की यात्रा पर गए. वहां पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिले. उन मोदी से भी मिले, जिन्होंने कभी चुनाव में लाखों करोड़ देने के वादे किए थे. उन वादों को अगर भाजपा नेता से पूछें तो वे केंद्रीय योजनाओं का जिक्र कर लीपापोती करते हैं, कल तक नीतीश कुमार भी उसका हिसाब मांगते थे, अब नही मांग रहे हैं. नीतीश को 12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट पास करना है और इस फ्लोर टेस्ट को लेकर बहुत सारे सवाल और शंकाएं बिहार की राजनीति में पनप रही हैं. 


पीएम मोदी ने किया था हजारों करोड़ का वादा


कभी बिहार के वोटों की कीमत 50 हजार, 60 हजार करोड़ से बढ़ते-बढ़ते सवा लाख करोड़ तक जा पहुंची थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वादा ऐसा था मानो बिहार अब सिंगापुर बनने को ही है. यह बात 2015 बिहार विधानसभा चुनाव की है, जब नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के साथ मिल कर पहली बार चुनाव लड़ रहे थे. बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की अपनी पुरातन मांग पर कायम थे, जो आज तक पूरा नहीं हो सका है. लेकिन, इस बीच नीतीश कुमार दो बार राजद के साथ जा कर वापिस भाजपा के पाले में आते-जाते रहे और एक बार फिर से बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने 28 जनवरी को इस्तीफा दिया और फिर बीजेपी की नेतृत्व वाली पार्टी एनडीए में शामिल होकर 9वीं बार बिहार के सीएम पद का शपथ लिया. उन हजारों करोड़ रुपए के वादों का क्या हुआ, यह अब न तो नीतीश कुमार से पूछा जाता है, न ही वे जवाब देते हैं. 



नीतीश कुमार पर चौतरफा दबाव


नीतीश के मंत्रियों को देखने से यह लग सकता है कि उनकी चली है, लेकिन वह गहरे दबाव में हैं. बिहारी सियासत में मुकेश सहनी समेत जीतन राम मांझी की भी एंट्री हो चुकी है. चिराग पासवान ने लोकसभा में 11 सीटों पर प्रभारियों की घोषणा कर दी है. जिस तरह की हवा बिहार में चल रही है, जदयू के कुछ विधायक बागी हो सकते है, उनको तोड़ने की बात चल रही है, इस बात का दावा आरजेडी द्वारा किया गया है, जीतन राम मांझी मंत्री पद के एक सीट से खुश नहीं है वो एक सीट और चाहते है. चिराग पासवान भी नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने से खुश नहीं है. मुकेश साहनी भी महागठबंधन में जाने का प्रयास कर रहे है. नीतीश कुमार पर चारों तरफ से दबाव है.


पहली परीक्षा तो अभी ही है, जब 12 फरवरी को नीतीश कुमार को फ्लोर टेस्ट पास करना है. लोकसाभ चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग की भी बात आयेगी. यह भी एक बहुत बड़ा मसला है क्योंकि एनडीए के अंदर के तमाम दल, चाहें वो लोजपा के लोग हों, लोजपा में भी दो धड़े हैं, जीतन राम मांझी, वो कैसे इस चीज को अनुकूल करेंगे और अपनी पार्टी के अंदर बगावत या टूट की आशंका को लेकर नीतीश कुमार हमेशा से ही सशंकित रहे है. इन सभी मुद्दों पर नीतीश कुमार पीएम नरेंद्र मोदी से बात करके आश्वस्त हुए होंगे, हालांकि मजबूरी के ये दो दोस्त कितनी देर तक साथ चलेंगे या कितना एक दूसरे को सपोर्ट करेंगे, ये तो देखने की बात है. 2020 के विधान सभा चुनाव में, भाजपा ने साथ चुनाव लड़ते हुए भी इनको चिराग पासवान के जरिए नुकसान पहुंचाया था, नीतीश को वह डर भी फिर सता रहा होगा.   


भाजपा का ध्यान बस 2024 लोकसभा चुनाव पर


नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में, भाजपा और आरजेडी के बीच एक बफर स्टेट का काम करते है. आज अगर नीतीश कुमार की पार्टी या अस्तित्व समाप्त हो जाए तो जितनी सहूलियत राजद को होगी, उतनी ही सहूलियत भाजपा को भी होगी. इस बार नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हुए है, वो असल में जितना अपनी तरफ से शामिल हुए है उतना ही भाजपा ने उनको अपनी तरफ शामिल करवाया है. उसकी वजह यह है कि लोकसभा चुनाव सामने है और भाजपा के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से जरूरी और कुछ भी नहीं है. भाजपा यह अच्छी तरह से जानती है कि नीतीश कुमार ने पिछले एक-दो सालों में बिहार के अंदर जिस तरह की राजनीति की है, उसने ओबीसी पॉलिटिक्स को प्रभावित किया है, चाहे वो सरकारी शिक्षक नियुक्ति हो या रिजर्वेशन को 75 प्रतिशत बढ़ाने का मुद्दा हो. नीतीश कुमार के महागठबंधन में होते हुए भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में अपने पहले प्रदर्शन को दोहराना संभव नहीं था. नीतीश कुमार भाजपा की भी उतनी ही मजबूरी थे जितनी मजबूरी नीतीश के लिए भाजपा थे.  


नीतीश को निबटाना राजद-भाजपा दोनों का सपना


जीतन राम मांझी 4 सीट के साथ विधायक है और एक मंत्रीपद उनको मिल चुका है, अभी वो एक और सीट के लिए बेचैन है. बीच में यह खबर उड़ाई गई कि उनके बेटे संतोष सुमन ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन उन्होंने खुद सामने आकर इस बात का खंडन किया. ऐसा नहीं लगता कि जीतन राम मांझी एनडीए छोड़कर कहीं जायेंगे. चिराग पासवान की समस्या भी लगभग वही है, इन्हें  6 या 7 सीटें मिलती रहीं है, उसपर कहीं न कहीं थोड़ा खतरा है, जिस वजह से वो नाराज हो सकते है. भाजपा की भी ये प्राथमिकता नहीं होगी और न ही राजद की. एक महीने बाद चुनाव है, यदि आप सरकार गिरा भी देते हैं तो फिर लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ होगा. यदि ऐसा कुछ होता है तो फिर एनडीए को फायदा होगा. हां, एक बात निश्चित तौर पर तय है कि नीतीश कुमार राजद और भाजपा के निशाने पर रहने वाले है. नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़ भाजपा में गए, तो ये कहा जा सकता है कि भाजपा ने उन्हें पांच साल की गारंटी दी है कि आप पांच साल तक सीएम रहेंगे, बदले में आप हमारे साथ आ जाइये और लोकसभा चुनाव में बिहार में हमारी नैया पार लगा दीजिये. भाजपा की राजनीति कहीं न कहीं ओबीसी पॉलिटिक्स के कारण बिहार को लेकर फंसी हुई है, इसलिए भाजपा को नीतीश कुमार का साथ चाहिए था.


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