बिहार में अलग-अलग जातियों की संरचना काफी पेचीदा है. बिहार की जनता के बारे में एक कहावत है- यहां की जनता कभी विकास के लिए वोट नहीं करती है. बल्कि जाति के आधार पर वोट करती है. राज्य में नीतीश कुमार की सरकार 7 जनवरी से जातिगत जनगणना की शुरुआत कर चुकी है. एक लंबे समय से नीतीश सरकार जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही थी.
बिहार में जनगणना का काम दो चरणों में पूरा होगा. 18 फरवरी 2019 और 27 जनवरी 2020 के नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद से पहले ही पास करा चुकी है. हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ है. केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलकनामा दायर कर ये साफ कर दिया था कि जातिगत जनगणना नहीं कराई जा सकती है. लेकिन नीतीश सरकार इसको कराने जा रही है.
बिहार में जातिगत जनगणना करने का काम प्रदेश सरकार ने सामान्य प्रशासन को सौंपा है. जातिगत जनगणना करने वाली टीम को 15 दिसंबर से ट्रनिंग दी जा रही थी. जाति आधारित जनगणना के काम को जमीन पर उतारने के लिए एक एप भी बनाया गया है. इस जातिगत जनगणना में क्या बातें अहम होंगी. ये भी जान लीजिए. गणना के लिए जाति प्रमाण पत्र दिखाना होगा. जाति प्रमाण का नंबर जिन लोगों के पास नहीं होगा, उनके बारे में पड़ोसी से जानकारी ली जाएगी. नीतीश सरकार जनगणना में लोगों से 26 सवाल करेगी. इस साल सामान्य प्रशासन को मई तक जनगणना का पूरा काम करने को कहा गया है. बिहार में पहली जनगणना का चरण पटना के वीआईपी इलाकों से शुरू होगा. इसमें मंत्री और विधायकों के घरों की गिनती की जाएगी. साथ ही घर के लोगों के नाम भी लिखा जाएंगे. वहीं दूसरे चरण में जातियों की गिनती होगी, जाति और धर्म के आधार पर लोगों से जानकारी लेकर पूरा डाटा तैयार किया जाएगा.
सामान्य प्रशासन जातिगत जनगणना में गांव की पंचायत से लेकर जिला स्तर तक का डाटा नीतिश सरकार को देगी. वहीं जिला स्तर का काम डीएम को सौंपा गया है और नोडल अधिकारी भी बनाया गया है. इस काम में आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से भी मदद ली जाएगी. वहीं बिहार के लोगों का एक बड़ा तबका देश के अलग-अलग कोनों में रहता है. ऐसे में इनके डाटा को कलेक्ट करने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन को सौंपी गई है.
बिहार की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले संतोष कुमार नीतीश कुमार की जातिगत जनगणना को वोट बैंक की राजनीति बता रहे हैं. जो जाति बिहार में सबसे ज्यादा चर्चा में रहती है, उस ऊंची जातियों की आबादी बिहार में 15 % है जबकि पिछड़ा, अति पिछड़ा, मुस्लिम, आदिवासी, दलीत 85 % में हैं. वहीं बीजेपी का वोट बैंक अपर कास्ट है. इसलिए बीजेपी कभी जातिगत जनगणना की बात नहीं करती है कि कहीं अपर कास्ट नाराज ना हो जाए.
वहीं, संतोष कुमार का मानना है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है. इसलिए नीतीश कुमार जातिगत जनगणना करा रहे हैं. जाति जनगणना के बाद किस जाति की आबादी कितनी है ये सार्वजनिक हो जाएगी और वोट बैंक के रूप में सरकार पिछड़ी जाति के लिए निर्णय लेगी. पिछड़ी जाति में कितने लोग पढ़े लिखे हैं. कितने अनपढ़ हैं. उसके अनुसार उनकी पढ़ाई के लिए सरकार सुविधा और स्कॉलरशिप दे सकती है.
बिहार सरकार वर्तमान में UPSC और BPSC की तैयारी करने वाली छात्राओं को 50 से एक लाख तक की प्रोत्साहन राशि देती है. जातिगत जनगणना के बाद इसमें और जातियों को जोड़ा जाएगा. बिहार सरकार इस जनगणना के बाद केंद्र सरकार से पिछड़ी और दलित की आबादी के हिसाब से जातियों के लिए आरक्षण की मांग कर सकती है. बिहार की जातिगत जनगणना कुल मिलकर वोट बैंक के लिए कराई जा रही है. नीतीश सरकार जनगणना के बाद 2025 तक इसपर अमल करेगी और जाति के अनुसार योजनाओं को लेकर आएगी और अपने वोट बैंक को मजबूत कर सकती है.
नीतीश कुमार ने पिछले साल बीजेपी का साथ छोड़ आरजेडी से हाथ मिलाया है. बिहार में अलग-अलग पार्टियों का अपना-अपना वोट बैंक है. जैसे नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आए तो उनका वोट बैंक उनके साथ शिफ्ट हो गया और लालू के साथ गए तो उधर शिफ्ट हो गया. बिहार में अपराध, विकास के काम पर जनता वोट नहीं करती है. बल्कि वोट जाति समीकरण के हिसाब से शिफ्ट हो जाता है. बिहार में 10 % वोटर विकास के नाम पर वोट करते हैं. इन 10 % लोगों को मैच्योर वोटर कह सकते हैं. नीतीश कुमार साल 2014 में विकास पुरुष के नाम से देश में जाने जाते थे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश अकेले चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव में सिर्फ दो सीट ही जीत पाए. उसके बाद 2015 में लालू यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो अच्छी खासी सीटों पर जीत हासिल की.
बिहार में 2020 के चुनाव में नीतीश और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा और सरकार बनाई. वहीं लोजपा ने नीतीश के खिलाफ अपने कैंडिडेट उतारे थे. जिससे लोजपा को हार का सामना करना पड़ा अगर चिराग पासवान नीतीश के साथ मिलकर चुनाव लड़ते और नीतीश के खिलाफ अपने कैंडिडेट चुनावी मैदान में नहीं उतारते तो फायदे में रहते. हालांकि लोजपा का एक अपना वोट बैंक है. जिसका वोट उन को मिला था पर जीत नहीं दिला पाए. बिहार की जनता सिर्फ जाति के आधार पर वोट करती आ रही है.
[संतोष कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ].
[यह लेख पूरी तरह से बातचीत पर आधारित है]