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संवाद का मतलब सिर्फ़ बोलना या लिखना ही नहीं है. अब यह जानना भी ज़रूरी है कि लोग क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और क्यों वैसा ही व्यवहार करते हैं. 'अल्फ़ाज़ वही हैं सदियों पुराने, मगर अर्थ बदल गए जमाने के साथ.'

न्यूरो पीआर : दिल से दिमाग तक

न्यूरो-पीआर का मतलब है कि लोगों के दिमाग और भावनाओं को समझकर संवाद करना. इंसान पहले महसूस करता है, फिर सोचता है. इसलिए जो बात दिल को छू जाए, वही देर तक याद रहती है. जो बात दिल को छू जाए, वो तर्क की मोहताज नहीं होती.”

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अगर कोई सरकारी योजना के केवल आंकड़ों की बात करें तो लोगों पर उतना प्रभाव नहीं पडता है, लेकिन जब उसी योजना को किसी आम इंसान की कहानी के ज़रिये बताया जाए, तो वह अपनी लगती है.

पीआर में कहानी कहने का महत्व

भारत की संस्कृति कहानियों से बनी हैरामायण, महाभारत, लोककथाएँ. कहानी की कला के बिना पीआर अधूरा है. कहानी भरोसा बनाती है, और भरोसा ही संवाद की सबसे बड़ी पूँजी है. न्यूरो-पीआर के व्यावहारिक उदाहरण.

सरकारी योजना

सामान्य पीआर में जब संदेश देते हैं कि 5 लाख लोगों को लाभ मिला तो उतना प्रभावी नहीं होता. पर न्यूरो पीआर में लाभार्थी की कहानी बताते हुए कुछ इस प्रकार संदेश दिया जाए कि "पहाड़ के छोटे से गाँव की सरस्वती देवी, जो इलाज के खर्च से डरती थीं, आज इस योजना से स्वस्थ हैं.” तो यह कहानी सुनते ही भावनात्मक मस्तिष्क सक्रिय होता है,भरोसा बढ़ता है. “जब आँकड़ों को चेहरे मिल जाते हैं, तो योजनाएँ दिल में उतर जाती हैं.”

स्वच्छता अभियान

कूड़ा न फैलाएँ.” का सामान्य संदेश की जगह न्यूरो-पीआर आधारित संदेश "आपका बच्चा जिस गली में खेलता है, क्या आप उसे गंदा देखना चाहेंगे?” से दिमाग पर ज्यादा असर होगा. इससे माता-पिता की भावना जागती है, सुरक्षा वाला मस्तिष्क सक्रिय होता है और व्यवहार बदलने की संभावना बढ़ती है.

डिजिटल पेमेंट / UPI

सामान्य प्रचार का तरीका है “डिजिटल भुगतान करें, यह सुरक्षित है.”

जबकि न्यूरो-पीआर तरीका है :

“आज आपके मोहल्ले के 10 में से 7 लोग UPI से भुगतान कर रहे हैं.”

इससे दिमाग पर ज्यादा असर होता है. इससे सामाजिक मान्यता दिखती है. लोग उस काम को करते हैं जो सब करते हैं.

“जो राह सब चल रहे हों, वहीं कदम खुद-ब-खुद मुड़ जाते हैं.”

आपदा के समय संवाद

सामान्य पीआर का संदेश "स्थिति नियंत्रण में है.” की बजाय न्यूरो पीआर बयान “हम आपकी चिंता समझते हैं. सरकार आपके साथ खड़ी है,और हर दो घंटे में आपको सही जानकारी दी जाएगी.” ज्यादा प्रभावी होता है. इससे पब्लिक में डर कम होता है और भरोसे की भावना पैदा होती है, अफवाहें घटती हैं.  “लोग वही याद रखते हैं, जो उन्हें महसूस कराता है.”

बिहैवियरल कम्युनिकेशन : व्यवहार को प्रभावित करने की समझ

बिहैवियरल कम्युनिकेशन कहता है कि इंसान हमेशा तर्क से नहीं चलता. वह अक्सर वही करता है जो आसान हो और जो अधिकांशलोग कर रहे हों. अक्सर उसी दुकान पर खरीददार आते हैं जहां पहले से भीङ होती है.

“हम इसलिए नहीं चुनते कि वो सही है, अक्सर इसलिए चुनते हैं क्योंकि वो आसान है.”

दिल और आदतदोनों से संवाद न्यूरो-पीआर भावनाओं को छूता है, बिहैवियरल कम्युनिकेशन आदतों को बदलता है.

जब दिल मान ले बात को, तो आदतों का बदलना आसान हो जाता है.”

यही कारण है कि सामाजिक अभियानों में यह तरीका सबसे प्रभावी होता है.

संवाद एक रिश्ता है

भारत में संवाद केवल सूचना नहीं, संबंध है. यह भाषा, संस्कृति और भरोसे से बनता है. स्थानीय भाषा, लोक उदाहरण और सांस्कृतिक संदर्भ संवाद को अपनापन देते हैं.

डिजिटल युग और जिम्मेदारी

आज तकनीक यह बताती है कि लोग किस बात पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं. लेकिन संवाद का उद्देश्य भ्रम नहीं, मार्गदर्शन होना चाहिए.

संवाद की आत्मा

कम्युनिकेशन का नया विज्ञान बहुत ताकतवर है. इसलिए इसका इस्तेमाल सच्चाई और जनहित के लिए होना चाहिए.

भविष्य का संवाद

भविष्य का पीआर वही होगा जो दिमाग को समझे और दिल से जुड़े.

व्यवहार को सही दिशा दे और समाज को जोड़कर रखे.

“शब्द जब समझदारी से कहे जाएँ, तो संवाद राष्ट्र गढ़ता है.”

(यह लेखक के निजी विचार हैं.)

Disclaimer: यह लेख रवि बिजारनिया ने लिखा है, जो सूचना और जनसंपर्क विभाग (DIPR) में उप निदेशक हैं और वर्तमान में पब्लिक रिलेशन्स सोसाइटी ऑफ इंडिया (PRSI), देहरादून चैप्टर के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।