यूपी में मंत्रिमंडल का विस्तार मंगलवार को हुआ. आरएलडी को सरकार में शामिल करते हुए एक मंत्री की जगह दी गई. साथ ही, ओम प्रकाश राजभर और अन्य लोगों सहित चार लोग मंत्रिमंडल में शामिल हुए. माना जा रहा है कि यूपी में लोकसभा सीट का फार्मूला तय हो गया है. उसी के आधार पर सीटों का बंटवारा होगा. हालांकि अभी तक इस मामले में कोई भी प्रतिक्रिया इंडिया गठबंधन की ओर से भी नहीं आया है. लेकिन भाजपा ने अभी तक यह खुलासा नहीं किया है कि किस पार्टी को कितनी और कहां की सीटें दी जा रही है. हालांकि, भाजपा ने यह साफ कर दिया है कि अगर 'अबकी बार, 400 पार' का लक्ष्य है, तो यूपी में तो एनडीए को पूरी 80 सीटें जीतनी ही होंगी. 


इंडिया गठबंधन में चीजें तय


कल यानी मंगलवार को शपथ-ग्रहण से ये तो पता चल गया कि यूपी में एनडीए में सब कुछ ठीकठाक चल रहा है. उधर दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की ओर से सीट शेयरिंग का फार्मूला तय हो चुका है. सपा और कांग्रेस के बीच सारी चीजें तय हो चुकी है. लेकिन इंडिया गठबंधन की ओर से भी पार्टी के उम्मीद्वार का खुलासा अभी तक नहीं किया गया है. सपा की ओर से कई चेहरे पहले से तय है, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक कुछ खास पत्ता नहीं खोला है. कांग्रेस की कोर कमेटी की मीटिंग में शायद अब नामों के आगे मुहर लग सकती है. राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने कहा है कि बंगाल को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर के सीटों के प्रत्याशियों के नाम तय किए जा चुके हैं. शायद एक दो दिन में वो भी सामने आ ही जाएगा.


सिर्फ मायावती ही हैं जिनके बारे में अभी तक कोई कंफर्म नहीं हो पाया कि वो किधर हैं. अभी तक के स्टैंड की मानें तो यूपी में बीएसपी स्वतंत्र चुनाव लड़ने की फिराक में हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद मायावती कहीं स्टैंड बदल कर किसी के साथ ना आएं. क्योंकि यह एक सरप्राइज जैसा होगा. इस चुनाव में यह एक ऐसी चीज है, जिसकी चर्चा सियासी मैदान में है. यूपी में करीब 63 सीटें अपने साथ रखने वाले अखिलेश यादव भी अभी तक 31 सीटों पर ही अपने उम्मीद्वार के नाम सामने लाए हैं. बाकी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. तस्वीरें साफ तब होगी सब सारे पत्ते खुल जाएंगे.



एनडीए एक कदम आगे


बीजेपी ने अपनी अगली रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. वाराणसी के कांग्रेस के कद्दावर नेता राजेश मिश्रा बीजेपी में शामिल हो गए हैं.और सपा के पश्चिमी उतर प्रदेश नेताओं के अगले दो से तीन दिनों में भाजपा का दामन थामने की कयास लगाए जा रहे हैं. ये उन जिलों से दल-बदल कराया जा रहा है जहां बीजेपी की प्रतिष्ठा की बात है या वहां पर बीजेपी कमजोर रही हैं. सारे पत्ते एक अच्छी रणनीति के तहत बीजेपी खोल रही है. आरएलडी से कोटा से जब मंत्री बनाने की बात आई तो बीजेपी ने दलित चेहरे को चुना जो मुजफ्फरनगर और सहारनपुर के इलाकों से आते हैं.


वहां पर बीजेपी का कोई दलित चेहरा नहीं था. इन इलाकों में दलित का वोटरों का प्रभाव ज्यादा है अगर यह दूर की कौड़ी ले भी आएं कि दलित नेता चंद्रशेखर एनडीए में जाएंगे, तो उनकी राजनीति से अभी तक तो ऐसा नहीं लग रहा है कि वो ऐसा जाएंगे. चंद्रशेखर की लड़ाई भाजपा के खिलाफ बनती है, लेकिन राजनीति में कुछ भी कहना जल्दबाजी होता है. इसमें कुछ कह नहीं सकते. वैसे, चंद्रशेखर उन नेताओं में शामिल है जिनके भाजपा की ओर जाने की उम्मीद काफी कम है.


क्या कांग्रेस के पास हैं कैंडिडेट की कमी 


इंडिया गठबंधन की बात हो रही थी कि उनके पास कैंडिडेट कहां है. बड़ा प्रश्न तो यह भी उठता है कि क्या छोटे-बड़े दलों को मिलाया जाएगा या इंडिया गठबंधन के 'दोनों लड़के' (अखिलेश व राहुल) ही यहां पर अपने कैंडिडेट फाइनल करेंगे. संजय चौहान और  जनतांत्रिक समाजवादी पार्टी, अपना दल कमेरावादी हालांकि इनके साथ है. बीच में पल्लवी पटेल के साथ अनबन हुई थी, वो बाद में ठीक हो गया.


जिनको लोकसभा सीट देने की बात हुई है. केशव देव मोर्या की भी पार्टी है जिनका पहले मायावती की तरफ झुकाव हुआ, बाद में सपा की ओर झुके हैं. अभी उनकी स्थिति साफ नहीं है.ये सभी छोटे देलों के साथ मैदान में आने की तैयारी होगी. कांग्रेस के कुछ कैंडिडेट उनके पास हैं.  जैसे कि अमरोहा सीट से कुंवर दानिश अली हो सकते हैं, जो बसपा से निकाले गए थे. वैसे, ये बात सच है कि कांग्रेस को कैंडिडेट की कमी है.


यह एक बड़ी चुनौती है. महाराजगंज या बांसगंज की सीट और वाराणसी की सीट के लिए कैंडिडेट खोजना एक चुनौती है. खासकर वाराणसी से पीएम मोदी को टक्कर देना तो किसी के लिए भी मुश्किल है. वहां के लिए भी चिंतन मनन हो रहा है. सूत्रों का भी मानना है कि कांग्रेस जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहती.


दूसरी तरफ, बीजेपी जिस तरह दल बदल करा रही है, उसमें पहले कुछ हुआ और वही प्रत्याशी किन्हीं वजह से पाला बदल ले तो अधिक खराब संदेश जाएगा. अगर घोषणा होने के बाद प्रत्याशी ने अगर दल बदला, तो फिर विकल्प देखना होगा. इसके लिए भी शायद नाम का खुलासा करने से विपक्ष बच रही है. यकीनन कांग्रेस के पास कैंडिडेट की कमी है, लेकिन जितनी कम सीटें कांग्रेस को मिली है उस हिसाब से कांग्रेस के पास सीटों पर प्रत्याशी है.


वाराणसी से मोदी को कौन देगा टक्कर


इंडिया गठबंधन में वाराणसी की सीट कांग्रेस के पास है, लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं चाहेंगी कि पीएम निर्विरोध जीतें. पिछले दो चुनाव वाराणसी से पीएम के सामने अजय राय लड़े थे. लगभग दस प्रतिशत वोट मिले. अजय राय अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष है. मोदी को चुनौती देकर चर्चा खड़ी करने वालों में भी अजय राय नहीं है. अगर कोई बड़ा चेहरा नहीं आता है तो बहस नहीं खड़ी हो सकेगी. जहां तक प्रियंका गांधी वाड्रा का सवाल है, तो कांग्रेस नहीं चाहेंगी कि प्रियंका को वहां से चुनाव में उतारें. चुनावी राजनीतिक पारी की अभी उनकी शुरुआत होनी बाकी है, वैसे में उनको जाया नहीं किया जाएगा. 



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