अतिशयोक्ति सरकारी संवाद का हिस्सा बन चुकी है. प्रयागराज का छह सप्ताह का कुंभ मेला विश्व में सबसे बड़ी भीड़ को आकर्षित करने के लिए जाना जाता है. फिर भी प्रशासन हमेशा आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता रहा है. 2019 का अर्ध कुंभ भी इसका अपवाद नहीं था. लेकिन अब तक किसी भी मुख्यमंत्री या राज्य सरकार ने यह दावा नहीं किया कि मकर संक्रांति के दिन 3.5 करोड़ लोग मेले में आए. पर इस बार, 2024 के कुम्भ में उनका कहना है कि ऐसा हुआ.
प्रशासन का कहना है कि करीब 40-45 करोड़ लोग 45 दिनों में मेले में आएंगे, यानी हर दिन एक करोड़. जितने अधिक लोग इकट्ठा होते हैं, उतना ही बेहतर होता है क्योंकि वे सकारात्मक, समावेशी ऊर्जा पूरे देश और उसके बाहर तक फैलाते हैं. कुंभ का संदेश हिंदू परंपराओं के अनुसार सभी को जोड़ने और शामिल करने का है, चाहे वह आस्तिक हो, नास्तिक हो या किसी अन्य धर्म का सदस्य हो. यह एक समुदाय के खिलाफ चलाए जा रहे सुनियोजित अभियानों के विपरीत है.
सरकार को उपलब्ध यात्रा ढांचे का विश्लेषण करना चाहिए था. बताए गए आंकड़े विभिन्न यात्रा साधनों – ट्रेन, बस या फ्लाइट – से ही सम्भव हैं. सलाहकारों को यह अनुमान लगाना चाहिए था कि प्रयागराज में एक करोड़ लोगों की एकतरफा यात्रा के लिए 5,000 ट्रेनों की आवश्यकता होगी. और 3.5 करोड़ के लिए एक दिन में लगभग 17,500 ट्रेनें प्रयागराज पहुंचनी चाहिए. इसी तरह की संख्या उनकी वापसी के लिए भी चाहिए – यानी एक दिन में 35,000 ट्रेन ! क्या यह संभव है? या क्या मकर संक्रांति के दिन इतनी ट्रेन इलाहाबाद पहुंची थी?
भारतीय रेलवे, जो मेले की तैयारी के वक़्त बताया था कि छह सप्ताह के दौरान 13,000 ट्रेनें प्रयागराज पहुंचेंगी, जिनमें देशभर से लगभग 3000 विशेष ट्रेनें शामिल होंगी. यह इस बात का प्रमाण है कि पर्याप्त ढांचा उपलब्ध नहीं है.
बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश से आने वाली सरकारी बसें और निजी बसें अधिकतम 50,000 लोगों को ही ला सकती हैं, और यह आंकड़ा भी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है. फ्लाइट्स एक दिन में कुछ सौ लोगों को ही ला सकती हैं. सरकार के पास हमेशा बेहतर जवाब हो सकते हैं.
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