'अमित शाह का बयान, ममता बनर्जी का डर, सरकार गिराने की साजिश के आरोप में कितना है दम'

तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 17 अप्रैल को कोलकाता में मीडिया से मुखातिब होते हुए बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लेकर एक बयान दिया है. उसके बाद से ये राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है कि क्या ममता बनर्जी को ये डर सता रहा है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में टीएमसी सरकार को गिराने की साजिश रच रही है.
दरअसल बीजेपी नेता अमित शाह ने 14 अप्रैल को बीरभूम में एक रैली को संबोधित किया था. इस दौरान उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से 35 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. उसके बाद अमित शाह ने कहा कि अगर ये लक्ष्य हासिल कर लिया गया, तो राज्य में ममता बनर्जी की मौजूदा सरकार 2025 से आगे नहीं टिक पाएगी.
अमित शाह के इसी बयान को लेकर ममता बनर्जी नाराज हैं. उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उस टिप्पणी की आलोचना करते हुए उस बयान को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया. ममता बनर्जी का कहना है कि देश के केंद्रीय गृह मंत्री किसी राज्य की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को गिराने की बात कैसे कर सकते हैं? क्या देश का संविधान बदला जा रहा है? ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है.
पश्चिम बंगाल में पिछला विधानसभा मार्च-अप्रैल 2021 में हुआ था और अगला विधानसभा 2026 में होना है. 2021 के चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. टीएमसी 294 विधानसभा सीटों में से 215 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 148 है, जबकि ममता बनर्जी के बास इससे बहुत ज्यादा बहुमत हासिल है.
दूसरी बात पश्चिम बंगाल में 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टियों के प्रदर्शन का वहां की राज्य सरकार के रहने या गिरने से कोई संबंध नहीं है. फिर भी अमित शाह ये बयान देते हैं कि अगर बीजेपी 35 लोकसभा सीट जीत जाती है तो जो टीएमसी सरकार 2026 मार्च तक रहने वाली है, वो 2025 से आगे नहीं टिक पाएगी. जिस हिसाब से ममता बनर्जी के पास विधानसभा में बहुमत है, उसको देखते हुए ऐसा तभी संभव है जब टीएमसी से करीब 70 विधायक पाला बदल लें, जिसे आम तौर से कोई व्यावहारिक नहीं मान सकता है.
ममता बनर्जी को यही बात डरा रही है. दरअसल ममता बनर्जी के डर की मुख्य वजह ये है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी तेजी से मजबूत होते जा रही है और अगर बीजेपी सचमुच में 35 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब हो गई तो फिर वो यहां लोकसभा के नजरिए से टीएमसी से भी बड़ी राजनीतिक हैसियत रखने वाली ताकत बन जाएगी. जिस तरह से 2019 के लोकसभा और 2021 के असेंबली चुनाव में बीजेपी ने प्रदर्शन किया है, उसको देखते हुए ये संभव भी है.
दूसरी बात ये है बीजेपी का मुख्य फोकस अभी 2026 का विधानसभा चुनाव नहीं है. अभी उसकी प्राथमिकता 2024 का लोकसभा चुनाव है. अमित शाह राज्य की जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं दोनों को ये संदेश देना चाह रहे हैं कि पहले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की कुल 42 में से 35 सीटों पर जीत दिलाएं, तो फिर उसके बाद अपने आप ही पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हवा बदल जाएगी.
2024 के चुनाव के नजरिए से बीजेपी का सबसे ज्यादा ज़ोर पश्चिम बंगाल में रहने वाला है. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी का हर राज्य में जिस तरह का प्रदर्शन रहा था, 2024 के चुनाव में भी पार्टी को उम्मीद है कि सिर्फ़ एक राज्य को छोड़कर वैसा ही प्रदर्शन रहेगा. जिस राज्य की मैं बात कर रहा हूं वो बिहार है. बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़े थे और वहां की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2024 के लिए बिहार के सारे पुराने समीकरण बदल चुके हैं. वहां जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस का गठजोड़ बन चुका है और इस गठजोड़ की वजह से बिहार में बीजेपी के लिए 2014 या 2019 की तरह प्रदर्शन दोहराना बिल्कुल संभव नहीं है.
बिहार में इस नुकसान की आशंका को देखते हुए बीजेपी इसकी भरपाई के लिए सबसे मुफीद राज्य पश्चिम बंगाल को मान रही है और शायद यहीं वजह कि वो बिहार से होने वाले नुकसान को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है. पिछली बार बंगाल में बीजेपी को 18 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. अगर वो 2024 में 35 सीटें जीतने में कामयाब रहती है, तो ये पिछली बार से 17 सीटें ज्यादा होंगी. यही वो संख्या है जिसके आसपास बीजेपी को अंदेशा है कि बतौर एनडीए बिहार में इतनी सीटों का नुकसान होगा. इसलिए बीजेपी का हर बड़ा नेता चाहे वो पीएम नरेंद्र मोदी हो या फिर अमित शाह ..यहीं चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल में उनका जनाधार उस हद तक बढ़े.
अगर बीजेपी 2024 में सचमुच 35 सीटें जीत जाती है तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीति के अवसान की शुरुआत हो सकती है. ममता बनर्जी को ये अच्छे से एहसास है कि ऐसा होने के बाद बंगाल की राजनीति पूरी तरह से बदल जाएगी और उस माहौल में विधानसभा के समीकरणों को बदलने के लिए बीजेपी को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.
बीजेपी की राजनीति को ममता बनर्जी जानती है. कुछ पुराने उदाहरण भी उनके जेहन में जरूर होंगे. पिछले कुछ सालों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में बहुमत नहीं होने के बावजूद सियासी जोड़-तोड़ से बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही. अरुणाचल प्रदेश में 2016 में क्या हुआ था, ये भी ममता बनर्जी को पता है. मुख्यमंत्री पेमा खांडू के नेतृत्व में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल के 43 में से 33 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद साल 2016 के आखिरी दिन वहां बीजेपी की सरकार बन गी थी, जबकि वहां उस वक्त तक बीजेपी की राजनीतिक हैसियत बहुत ही छोटी थी. ये सब उदाहरणों को ध्यान में रखकर ही ममता बनर्जी आरोप लगा रही है कि बंगाल में टीएमसी सरकार गिराने की साजिश रची जा रही है.
असल में ममता बनर्जी भी ये कहकर अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को एक तरह से सचेत कर रही हैं कि अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब नहीं हुई तो पार्टी को किस तरह की राजनीति से जूझना पड़ सकता है. ममता सीधे-सीधे कार्यकर्ताओं और कैडर के बीच जोश भरने का भी काम कर रही हैं. उनके बयान से ये इशारा मिल रहा है कि 2024 नहीं तो फिर 2026 में लगातार चौथी बार पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकार बनना काफी मुश्किल हो जाएगा.
यही वजह है कि दो तीन महीने पहले तक 'एकला चलो' का राग अलापने वालीं ममता बनर्जी के सुर अब बदल गए हैं. अब वे विपक्षी दलों के नेताओं से 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की अपील कर रही हैं. अब उन्हें भी ये चिंता सता रही है कि 2024 का लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति को बदलने वाला साबित हो सकता है. एक तरह से ममता बनर्जी के सामने अपना घर बचाने की चुनौती है. 2024 में पश्चिम बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक हैसियत दांव पर होगी और इसकी वजह राज्य में बीजेपी का बढ़ता जनाधार है. यही वजह है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की जनता को ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहती जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में टीएमसी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए.
पिछले 10 साल में धीरे-धीरे कर बीजेपी पश्चिम बंगाल में टीएमसी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है. 2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कुल 294 में से 289 सीटों पर चुनाव लड़ी और एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी. उस वक्त पश्चिम बंगाल में बीजेपी की क्या हालत थी, ये इसी से पता चलता है कि उसके 285 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. हालांकि बीजेपी 4% वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. यही वो चुनाव था जिसमें एक तरह से पहली बार बीजेपी ने भी पूरे राज्य में अपने उम्मीदवार उतारे थे. पिछले 10 सालों में सीपीएम और कांग्रेस के कमजोर होने का बीजेपी ने फायदा उठाया. उसी का नतीजा था कि बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में टीएमसी के दबदबे को एक तरह से खत्म कर दिया. जहां 2014 लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी 42 में से 34 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, वहीं बीजेपी को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से बीजेपी 18 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही. उसे 16 सीटों का फायदा हुआ था. वहीं बीजेपी का वोट शेयर भी 40% से ऊपर पहुंच गया. टीएमसी 12 सीटों के नुकसान के साथ सिर्फ 22 सीट ही जीत पाई.
लोकसभा के नजरिए से 2019 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने टीएमसी के साथ मुकाबले को करीब-करीब बराबरी का बना दिया था. इस चुनाव के नतीजों से उस वक्त ही ये तय हो गया था कि लोकसभा में 2024 तक बीजेपी, टीएमसी को भी पीछे छोड़ सकती है और ममता बनर्जी को ये डर सता रहा है.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)


























