महाराष्ट्र में क्या कोई नया सियासी तूफ़ान आने वाला है? इसलिये कि दो अलग-अलग पार्टियों के बड़े नेताओं ने जो बयान दिए हैं, उसके सियासी मतलब को अगर थोड़ा गौर से समझा जाये, तो यही लगेगा कि दोनों एक ही सुर में अपनी बात कह रहे हैं.बेशक तरीके थोड़े अलग हैं लेकिन उनके दिल के दर्द को मापने के पैमाने का अगर इस्तेमाल करेंगे, तो यही अहसास होगा कि दोनों को चोट बराबर की ही लगी है. शायद इसलिये मुंबई से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि देश के उप राष्ट्रपति का चुनाव होने के बाद दो राज्यों यानी महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का सियासी भविष्य क्या वाकई बदलने वाला है?
हालांकि इस सवाल का जवाब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा न तो कोई और दे सकता है और न ही किसी और को ऐसा कोई फैसला होने से पहले उसकी भनक ही लग पाती है. वैसे ये अलग बात है कि पार्टी के कुछ नेता सियासी समंदर में आने वाली लहरों के उतार-चढ़ाव का उफ़ान देखते हुए ये अंदाजा लगा ही लेते हैं कि अब आगे क्या होने वाला है. इसीलिए बीजेपी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने शनिवार को फडणवीस-शिंदे सरकार की जुगलबंदी को लेकर जो बयान दिया है, उसे अगर कोई हल्के में लेने की गलती करता है, तो समझ लीजिए कि वो राजनीति के खतरनाक दांव-पेंचों से अनजान है. पाटिल का ये कहना कि बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस की जगह शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को भारी मन से राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन माहाराष्ट्र की जनता को सही संदेश देने के लिए यह फैसला लिया गया था, मौजूदा हालात में गहरे सियासी मायने रखता है.
राजनीति में ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है, जब एक नेता पूरी ईमानदारी के साथ सच को अपनी जुबान पर ले आये और यही चंद्रकांत पाटिल ने कर दिखाया है. पाटिल ने जो कहा है, उसके बहुत सारे मतलब निकलते हैं लेकिन सबसे बड़ा संदेश ये है कि बीजेपी का कोई भी विधायक शिंदे को सीएम बनाने से खुश नहीं है. उनके इस बयान को पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे व उनकी सरकार में रहे मंत्री आदित्य ठाकरे ने फौरन लपक लिया है.
दरसअल, महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी नेतृत्व ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का जो फैसला लिया,उ ससे आज भी बीजेपी के विधायक खुश नहीं हैं, बल्कि वे इस इंतज़ार में हैं कि कितनी जल्द सत्ता की कमान बीजेपी के सीएम के हाथ में आएगी, ताकि उन्हें अपने काम करवाने के लिए सीएम शिंदे या उनके मंत्रियों के आगे फरियाद न करनी पड़े.
शायद इसीलिये चंद्रकांत पाटिल ने अपने दर्द को बयां करते हुए शनिवार को कहा कि "हमें एक ऐसे नेता की जरूरत थी, जो सही संदेश दे और स्थिरता सुनिश्चित करे. केंद्रीय नेतृत्व और देवेंद्र फडणवीस ने भारी मन से शिंदे को बतौर मुख्यमंत्री समर्थन देने का फैसला लिया. हम नाखुश थे, लेकिन फैसले को स्वीकार करने का निर्णय किया." इससे साफ जाहिर है कि शिंदे को सीएम और फडणवीस को उनका डिप्टी बनाने से पार्टी के भीतर गहरा असंतोष है, जो 22 दिन तक तो संभल गया लेकिन अब उसी गुस्से का खुलकर इज़हार हो रहा है. सियासी इतिहास बताता है कि ऐसा गुस्सा हर बार राजनीति में किसी बड़े बदलाव का संकेत होता है.
महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के बयान को देखें और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की तीसरी पीढ़ी में उभरे युवा नेता आदित्य ठाकरे के दावे पर गौर करें, तो यही लगता है कि दोनों की मंजिल तो एक ही है, बेशक रास्ते अलग हैं. हालांकि महाराष्ट्र की सियासत में विपक्षी दल आदित्य को राजनीति का नौसिखिया खिलाड़ी ही कहते-मानते आए हैं. लेकिन हम ये नहीं कह सकते कि उन्होंने अपना बयान हवाबाज़ी में दिया है.
शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने शनिवार को दावा किया कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार जल्द ही गिर जाएगी और राज्य में मध्यावधि चुनाव होंगे. अपनी ‘शिव संवाद यात्रा’ के तीसरे दिन पार्टी कार्यकर्ताओं की एक सभा में ठाकरे ने यह भी कहा कि शिवसेना के बागी विधायकों ने उनके पिता एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को उस वक्त धोखा दिया, जब वह अस्वस्थ थे." लिहाजा,महाराष्ट बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और आदित्य ठाकरे के दिये बयान को आमने-सामने रखकर देखेंगे, तो साफ पता लगता है कि दोनों ही पार्टियां अब एकनाथ शिंदे से छुटकारा पाना चाहती हैं. इसलिये सबसे बड़ी पार्टी के प्रमुख नेता की नाखुशी और दूसरे के मध्यावधि चुनाव करवाने के दावे में कोई ज्यादा फर्क नहीं दिखाई देता.
लिहाजा, एक सवाल ये भी है कि शिंदे गुट को पहले शिवसेना से तोड़कर और फिर उसका राज्याभिषेक करवाकर कहीं बीजेपी ने ऐसा सियासी दांव तो नहीं खेल दिया,जिसे समझने में सियासी तीसमारखां भी मात खा गये? वैसे राजनीति के इस सांप-सीढ़ी वाले खेल को देखते हुए हमें बीसवीं सदी में पैदा हुए उस दार्शनिक के विचार याद आ जाते हैं, जिसने सिर्फ अपने बौद्धिक हथियार से अमेरिका, यूरोप समेत दुनिया के छह दर्ज़न से ज्यादा देशों की सरकार को हिलाकर रख दिया था.
आचार्य रजनीश से ओशो बने और मध्य प्रदेश के गाडरवारा में जन्में इस दार्शनिक ने बरसों पहले राजनीति के बारे में कहा था- "मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि दुनिया भर में राजनीति सिर्फ बचकाने लोगों को आकर्षित करती है. यह अलबर्ट आइस्टींन, बर्टेंड रसल, ज्यां पॉल सार्त्र, रवीन्द्रनाथ टैगोर को आकर्षित नहीं करती...नहीं, यह सिर्फ एक तरह के लोगों को ही आकर्षित करती है. मनोवैज्ञानिक इस बात को जानते हैं कि जो लोग हीनता की ग्रंथि से ग्रसित हैं, वे लोग राजनीति की तरफ आकर्षित होते हैं, क्योंकि राजनीति उन्हें शक्ति दे सकती है.और वे उस शक्ति के द्वारा स्वयं को और दूसरों के सामने भी ये सिद्ध कर सकते हैं कि वे क्षुद्र नहीं हैं, कि वे औसत दर्जे के इंसान नही हैं." अब आप इससे सहमत हों या न हों लेकिन राजनीति की ये हक़ीक़त इससे बेहतर तरीके से हमें आज तक किसी और ने समझाई हो, तो सोचियेगा जरूर!
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)