लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे अंतिम चरण की ओर बढ़ रहे हैं, चुनाव प्रचार निजी हमलों और भाषायी गिरावट के नए प्रतिमान गढ़ रहा है. इस खेल में बीजेपी, कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना, आरजेडी, सपा, बसपा से लेकर तमाम मुख्य राजनीतिक दल शामिल हैं. सबका साथ सबका विकास, अच्छे दिन आएंगे, काला धन वापस लाएंगे, आतंकवाद की कमर तोड़ेंगे, किसानों की आमदनी दुगुनी करेंगे, मोदी है तो मुमकिन है और मेक इन इंडिया वगैरह जैसे जुमलों या फिर बेरोजगारी, किसानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क जैसे बुनियादी मुद्दों का मंच से कोई नामलेवा नहीं दिखता! आखिरी दौर में जय श्री राम के नारे, धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण और तंत्र-मंत्र के खेल तक शुरू हो चुके हैं. अगर हम नेताओं के जमीनी संपर्क और उनकी चुनावी रैलियों पर नजर डालें, तो वहां शाब्दिक और मानसिक हिंसा के परनाले बहते दिखते हैं.


केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने प्रियंका गांधी वाड्रा को चोर की पत्नी कहा है. ऐसे ही वरिष्ठ सपा नेता आजम खान ने रामपुर में अपनी प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी जया प्रदा के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. ऐसे में एक खेमे से दूसरे खेमे तक फाउल-फाउल का शोर उठता सुनाई देता है और इसी बीच कोई और स्तरहीन बयान आ जाता है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभल में 19 अप्रैल को आयोजित एक रैली में कहा, क्या आप देश की सत्ता आतंकवादियों को सौंप देंगे जो खुद को बाबर की औलाद कहते हैं. उनको जो बजरंगबली का विरोध करते हैं.’


दुखद यह है कि आखिरी दो चरणों के पहले चुनाव प्रचार विकास और जनकल्याण के कार्यक्रमों की पटरी से उतर कर सेना, राम मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद के मुद्दों पर जा टिका है. इस चक्कर में राष्ट्र के सर्वांगीण विकास, प्रगति, व्यापार, बढ़ती बेरोजगारी, आंतरिक सुरक्षा, देश का अर्थशास्त्र और विकसित राष्ट्र की तरफ बढ़ते कदमों का थम जाना किसी को दिखाई नहीं दे रहा. ऐसा लग रहा है कि वर्तमान में हरेक की राजनीति का मकसद केवल सत्ता हथियाना ही बन गया है. राम मंदिर, धारा 370, चौकीदार चोर, राफेल घोटाला या साध्वी का बयान, स्त्री के अंतःवस्त्र का रंग जैसे मुद्दों के बीच देश की असल समस्या और मुद्दे गौण हो चुके हैं. जनता भी आगे बढ़ कर नहीं पूछ रही है कि आपके पास देश की उन्नति के लिए असल में क्या योजना है? कैसे आप वर्तमान समस्याओं पर काबू करेंगे ? कैसे आप राष्ट्र का सम्पूर्ण विकास करेंगे? आपकी रक्षानीति क्या है? विदेश नीति और अर्थनीति का आधार क्या है? आर्थिक सशक्तिकरण के लिए क्या ब्लूप्रिंट है? इसके उलट वह नेताओं को भगवान का रूप मानकर उनके जैकारे लगा रही है.


अब तक पांच चरणों के संपन्न हुए मतदान तक विपक्ष ने जो धैर्य बनाए रखा था, वह टूट गया-सा लगता है. कांग्रेस को भ्रष्टाचार की जननी साबित करने के लिए जब मोदी जी स्वर्गीय राजीव गांधी और बोफोर्स का नाम घसीट लाए, तो प्रियंका गांधी ने एक रैली के दौरान मोदी की तुलना महाभारत के खल-पात्र दुर्योधन से कर डाली. बनारस में कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने तो नरेंद्र मोदी को काशी के मंदिरों का ध्वंस करने वाला और बाबा विश्वनाथ के प्रवेश द्वारा पर जजिया कर लगाने वाला दूसरा औरंगजेब ही बता दिया! दरअसल, विपक्ष 2014 में देख और भुगत चुका है कि किस तरह नरेंद्र मोदी ने विपक्ष, खास तौर पर यूपीए सरकार के खिलाफ बेहद उग्र और आक्रामक प्रचार करके कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दलों का सूपड़ा साफ किया था. यही वजह है कि विपक्षी दलों के रणनीतिकार इस बार खामोश बैठ कर राजनीतिक नुकसान नहीं उठाना चाहते. उनके छोटे-बड़े नेता जैसे को तैसा वाली शैली अपना चुके हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हरिद्वार की एक सभा में आडवाणी का हवाला देते हुए कहा- ''मोदी ने अपने गुरु को जूता मारकर स्टेज से उतार दिया है.''


बिहार में अपनी बेटी मीसा यादव का चुनाव प्रचार करने पहुंची राबड़ी देवी ने नरेंद्र मोदी को ‘जल्लाद’ और भाजपाइयों को नाली और बाथरूम का कीड़ा बता दिया. युवा राजद नेता तेजस्वी यादव कहते फिर रहे हैं कि नितीश कुमार ने महागठबंधन को 2015 में मिले जनादेश के साथ बलात्कार किया है. लेकिन मोदी शाह की जोड़ी को सबसे बड़ी शाब्दिक चुनौती पश्चिम बंगाल में अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही टीएमसी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिल रही है. बीजेपी ने वहां हिंदू वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए जिस तरह का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है, उससे ममता पूरी तरह बौखलाई हुई हैं. पीएम मोदी पर कई आपत्तिजनक बयान देने के बाद पुरुलिया की एक रैली में उन्होंने कहा कि उनका पीएम मोदी को थप्पड़ मारने का मन करता है. कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव ने भी चुनाव आयोग को की गई अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि मोदी और शाह अपनी रैलियों में लगातार वैमनस्य पैदा करने वाले भाषण दे रहे हैं और राजनीतिक प्रचार के लिए बार-बार सशस्त्र बलों का उपयोग कर रहे हैं.


नवजोत सिंह सिद्धू भोपाल में बयान दे ही चुके हैं कि अगर नरेंद्र मोदी फिर से पीएम बन गए तो हिंदुस्तान खत्म हो जाएगा. सवाल यह भी उठता है कि क्या शीर्ष नेता जनता को इसलिए भावुक मुद्दों में जान-बूझ कर उलझाए रखना चाहते हैं कि वह अपने वास्तविक सवालों को भूल जाए? क्या सत्ताधारी वर्ग आम लोगों को इसलिए अशिक्षित बनाए रखना चाहता है कि वे उनके झूठ को ब्रह्मवाक्य मानते रहें और कोई सवाल न कर सकें? क्या चुनावी खेमे इसलिए एक दूसरे पर बिलो द बेल्ट प्रहार करते हैं कि मतदाता इनकी लड़ाई को वास्तविक मान कर सिर्फ तालियां बजाने में व्यस्त रहें? जवाब शायद हां में है. अगर ऐसा न होता तो जिन संगीन आरोपों की सजा और न्याय दिलाने का वादा करके कोई दल सत्ता में आते हैं, उसे इतनी आसानी से भूला न जाता. अगर ऐसा न होता तो किसी नेता की हिम्मत न होती कि वह स्तरहीन बयानबाजी और अव्यावहारिक घोषणाओं का अंबार लगा कर बार-बार जनता के वोट ले पाता.


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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)