कोरोना के बाद दुनिया बदली है, लोगों के आचार-विचार और व्यवहार में बड़ा बदलाव आया है. ये बदलाव सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के सारे देशों के लोगों में साफ दिखने लगा है. आपसी संबंधों में तनाव, करीबियों की उपेक्षा और अपने सुख-दुख में मगन रहने की आदत लोगों में बढ़ गयी है और बढ़ गया है बड़े पैमाने पर अवसाद भी. इस सबका इलाज कोई वैक्सीन नहीं, बल्कि साहित्य संगीत और संस्कृति में डूबने पर ही होगा. ये कहना है प्रभा खेतान फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी संदीप भूतोड़िया का. संदीप भोपाल में आयोजित हो रहे साहित्य अकादमी के साहित्य के आयोजन उत्कर्ष में शामिल होने आये है. 


समाज के साथ साहित्य की गहरी समझ रखने वाले संदीप ने बताया कि कोरोना के बाद दुनिया में तेजी से बदलाव आया है. स्वास्थ्य और आर्थिक संकट तो खत्म हो गया है. लोगों की सेहत सुधरी है. अर्थव्यवस्था पटरी पर आयी है मगर समाज का ताना-बाना इस महामारी के बाद बिगड़ गया है. मानसिक समस्याएं बढ़ गयी है. लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इसका इलाज कैसे होगा. मगर मेरा मानना है कि समाज में साहित्य और संस्कृति का सहारा इन्हीं दिनों के लिये होता है. लोग जितना साहित्य और संगीत में रमेंगे उनको मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलेगी और आपसी सदभाव बढ़ेगा, संबंधों में भी सुधार होगा. 


भारत सरकार की संस्थाओं से जुड़कर अनेक देशों की यात्रा करने वाले संदीप अच्छे यात्रा वृतांत लेखक हैं. उनकी हिंदी की पहली किताब आप बीती जग बीती ,उनकी दुनिया के देशों के वृतांत पर लिखी दास्तान है. माइ लाइफ माइ टैवलर्स, चाइना डायरी और अब नार्वे की यात्रा पर उनकी नयी किताब आने वाली है. इसके अलावा वाइल्ड लाइफ पर लिखी उनकी द सफारी बाघ संरक्षण पर केंद्रित थी जिसको वन्य प्रेमियों ने सराहा.



भोपाल के साहित्य अकादमी में वो साहित्य के मूल्य और भारत का बढ़ती ताकत पर व्याख्यान देने आयें है. ऐसे आयोजनों को वो जरूरी मानते हैं. मगर साथ ही, लिटरेचर फेस्टिवल की आड़ में होने वाले व्यावसायिक आयोजनों से वो दूरी बनाते हैं. संदीप के मुताबिक, चमक-दमक वाले साहित्य आयोजन कुछ चमक दमक वाले लेखकों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाता है और असल साहित्यकार इसमें गुम हो जाता है. इसलिये प्रभा खेतान फाउंडेशन कलम और आखर जैसे कार्यक्रम लगातार करती है जिसमें साहित्यकारों की किताबों पर सम्मानजनक चर्चा होती है.