आज़ादी के अमृत महोत्सव पर "हर घर तिरंगा" अभियान शुरू हो चुका है, जिस पर हर भारतीय को गर्व है. लेकिन 15 अगस्त को इस अमृत महोत्सव रूपी महायज्ञ में आहुति देने से पहले 11 अगस्त की तारीख ने सोशल मीडिया के जरिये देश में बड़ी हलचल मचा रखी है. पहले तो सिर्फ एक फ़िल्म का बॉयकाट करने के लिए अभियान चलाया गया था कि उस फिल्म का हीरो एक मुसलमान है, जिसे भारत में रहने से डर लगता है. लेकिन अब तो सोशल मीडिया पर उस अक्षय कुमार की फ़िल्म को न देखने की भी सलाह दी जा रही है, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसा इकलौता इंटरव्यू लिया था, जो उन्होंने पिछले आठ साल में देश- दुनिया के किसी भी न्यूज़ चैनल को नहीं दिया.


दरअसल, रक्षा बंधन वाले दिन यानी 11 अगस्त को एक साथ बॉलीवुड की दो ऐसी फिल्में रिलीज हो रही हैं, जिन्हें कोरोना काल के बाद हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री के लिए सबसे बड़ा बूस्टर डोज़ माना जा रहा है. लेकिन हमारे यहां कुछ ऐसी विघ्नकारी ताकतें हैं, जिन्हें मनोरंजन के नाम पर जिंदगी की हक़ीक़त को देखने और उसे पचाने की जरा भी हिम्मत नहीं है. ऐसी ताकतों के चलते ही हमारी फिल्म इंडस्ट्री आज उस मुकाम पर जा पहुंची है, जिसकी कल्पना बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक या स्थापित कलाकारों ने भी शायद कभी नहीं की होगी. उनकी बोलती भी इसलिये बंद है कि वे जानते हैं कि विरोध की एक आवाज़ उन्हें सलाखों के पीछे भेजने में ज्यादा देर नहीं लगायेगी.


फिल्म को बिना देखे ये कैसा विरोध?
किसी भी फ़िल्म को देखे बगैर उसका विरोध करने को हम जुनूनी पागलपन के सिवा भला और क्या कहेंगे, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाले हमारे देश में ही संभव है? हॉलीवुड के चर्चित अभिनेता टॉम हैंक्स की सबसे मशहूर फ़िल्म है- 'फॉरेस्ट गम्प'. उस फिल्म ने छह ऑस्कर अवार्ड जीते थे, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है. उसी फ़िल्म का हिंदी रूपांतरण करते हुए फ़िल्म बनी है- लाल सिंह चड्ढा. इसमें आमिर खान और करीना कपूर की जोड़ी बरसों बाद एक साथ रुपहले पर्दे पर नजर आयेगी. मुंबई में जिन नामी फ़िल्म क्रिटिक्स को ये फ़िल्म दिखाई गई है, उनके मुताबिक ये एक आइकॉनिक फ़िल्म है, जो बॉक्स ऑफिस पर हर हाल में हिट होगी. वे तो कहते हैं कि इसकी नेगेटिव पब्लिसिटी करने और इसे न देखने की सलाह देने वाले लोग ही अगर इस फ़िल्म को "सुपरहिट" न बना दें, तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.


इस फ़िल्म के नकारात्मक प्रचार के बहाने एबीपी न्यूज़ के संचालक आनंद बाजार पत्रिका ग्रुप का वह विज्ञापन आपकी आंखों के सामने आ जाता है, जिसे इस समूह ने अपनी स्वर्ण जयंती के मौके पर खासतौर से बनाते हुए लोगों को ये संदेश दिया है कि सही ख़बर जानने की उत्सुकता क्या होती है और उसे कैसे पूरा किया जाता है, इसे हमसे बेहतर कोई नहीं जानता. इस विज्ञापन में एक बच्चा Curiosity का मतलब समझने के लिए न जाने कहां-कहां दौड़ता है. वह इस शब्द को कोरिया सिटी समझता है. कई लोग उसे टरकाते चले जाते हैं और आखिर में वह एक शिक्षक रूपी महिला के पास पहुंचता है, जहां वे उस बच्चे को इसका सही अर्थ समझाती हैं और सामने बंगाली में छपने वाला आनंद बाजार पत्रिका अखबार होता है. यानी,खबर जानने की आपकी उत्सुकता का अंत!


तो फ़िल्म लाल सिंह चड्डा का सोशल मीडिया पर जितना तीखा विरोध हो रहा है, उसके बाद तो लोगों को इसे देखने की Curiosity यानी उत्सुकता और भी ज्यादा बढ़ जायेगी और उसे देखने के लिए सिनेमा हॉल जाने वालों को रोकने वाले तत्वों के ख़िलाफ़ कानून को भी फिर अपना काम करना ही होगा. लेकिन ऐसा क्यों है कि फ़िल्म के रिलीज होने से पहले ही कुछ कट्टरपंथी ताकतों ने सोशल मीडिया पर इसके बॉयकाट करने का अभियान चला रखा है. तो इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा. दरअसल, विरोध करने वाली ताकतें इस फ़िल्म के नहीं बल्कि वे आमिर खान के खिलाफ हैं. वे आमिर खान का साल 2015 में दिया वह बयान याद दिला रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी पत्नी किरण राव को भी अब भारत में रहने से डर लगता है. 


करीना कपूर का पुराना वीडियो वायरल
लेकिन इस फिल्म की मुख्य अभिनेत्री करीना कपूर का विरोध करने के लिए भी लोगों ने एक वजह तलाश निकाली है. करीना के एक इंटरव्यू की उस क्लिप को सोशल मीडिया में बेरहमी से वायरल किया जा रहा है, जिसमें वे नेपोटिज्म की बहस को बकवास बताते हुए कह रही हैं कि अगर किसी को उनकी फिल्म नहीं देखनी तो न देखें. हालांकि पिछले दिनों ही आमिर खान ने इस फिल्म का बहिष्कार करने वाले लोगों से मुखातिब होते हुए कहा था कि वे भी अपने देश से बहुत प्यार करते हैं. उन्होंने लोगों से फिल्म का बायकॉट न करने की गुजारिश भी की थी. 


लेकिन अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर विरोध करने वाले इन लोगों को भला कौन समझायेगा कि ये मुल्क न तो चीन है और न ही नार्थ कोरिया .ये भारत है,जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाला देश है और जहां सब समान हैं और हरेक को अभिव्यक्ति की आज़ादी भी मिली हुई है. कोई क्या खायेगा, क्या पहनेगा या फिर क्या देखेगा, इस पर बंदिश लगाने का मतलब है कि हम जी तो रहे हैं एक लोकतांत्रिक देश में लेकिन कुछ ताकतें हमें तालिबानी राज की तरफ ले जा रही हैं. इसलिये लोकतंत्र में यकीन रखने वाले हर समझदार इंसान को ऐसी मुट्ठी भर ताकतों का पुरजोर विरोध करते हुए आज़ादी के इस अमृत महोत्सव को पूरी आन-बान व शान के साथ 11 अगस्त से ही मनाना शुरू कर देना चाहिए.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)