खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में गोली मारकर हत्या किए जाना भारत के लिए सुखकारी खबर है. ये सभी आपराधिक तत्व हैं, जो आईएसआई के टुकड़ों पर पलने वाले हैं. ऐसे अपराधिक तत्व आपसी गैंगवॉर में मारे जाते हैं. इनकी आपस में ही काफी कटुता रहती है. वो ये कह रहे हैं कि इसमें भारत में इंटेलिजेंस एजेंसी का हाथ हो, लेकिन मैं इसे सिरे से नकारता हूं. हालांकि, ये दावे के साथ कहूंगा कि भारत का दुश्मन विश्व में कहीं पर भी हो, भारत के अंदर हो या फिर बाहर, अब अपने को सुरक्षित न माने. ज्योपॉलिटिकल व्यवस्थाएं जिस तरह से बदल रही हैं, हमारे मित्रों और सहानुभूति रखने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है.


एक बात जो हमारे शास्त्रों में हैं, जो जिस भाषा में समझे, उसे उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए. मैं इसका पक्षधर हूं और ये काम होना चाहिए. लेकिन, वर्तमान में एक नीतिगत निर्णय लिया गया था कि इस प्रकार के कृत्य, इस प्रकार के ऑपरेशन अब रॉ नहीं करेगा. कई दशक पहले ये निर्णय हो चुका था. इसमें हमारी इंटेलिजेंस एजेंसी का कोई हाथ नहीं है. हमारी सरकार का कोई हाथ नहीं है. लेकिन जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय. 
नासूर को हटाती है आईएसआई
इनके कर्म ऐसे हैं कि आईएसआई के लिए जब कभी-कभी रोग हो जाते हैं तो वे उनकी हत्या कर देती है. मैं इस हत्या के लिए पूरी तरह से आईएसआई को जिम्मेदार मानता हूं. उनके द्वारा इस तरह के कृत्य किए गए हैं. अभी लाहौर में हुआ, फिर कनाडा में हुआ और अभी इस तरह की घटना और होगी.



खालिस्तानी मूवमेंट के खिलाफ आवाज उठने की बड़ी वजह जागरुकता और सोशल मीडिया है. लंदन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में हमारे पवित्र स्थानों को अपवित्र करने, उसे खंडित करने का प्रयास किया गया. ऐसे में जनता में नेचुरली तौर पर आक्रोश तो है ही. अगर ये समझते हैं कि ये आसमान में हैं और इनकी गर्दन तक कोई नहीं पहुंच सकता है तो अगर ऐसी गलतफहमी किसी को है तो वे निकाल दें. आईएसआई भी ऐसी गलतफहमी का शिकार न बनें. समय बदल चुका है, विचारधाराएं बदल चुकी हैं और प्राथमिकताएं बदल गई हैं.


बदल गईं प्रथामिकताएं और विचारधाराएं


अब या तो भारत सरकार खुद कानून की परिधि के अंदर रहते हुए या फिर भारत के समर्थक, सहयोगी और हमदर्द हैं, कहीं ऐसा न हो कि वे कानून अपने हाथ में ले लें. लेकिन, जो कुछ भी हुआ मैं उस पर अपना संतोष व्यक्त करता हूं.


मेरा यही मानना है कि जो जिस भाषा में समझ रहा है उसको उसी की भाषा में जवाब दें. अगर वो हिंसा का प्रबल समर्थक है और हम अहिंसा परमो धरमे बोलें, लेकिन उसका जो दूसरा सूत्र है कि धर्म की रक्षा के लिए अगर हिंसा करनी पड़े तो राष्ट्र के हित या सुरक्षा के लिए अगर हिंसा करनी पड़े तो ये आज एक अनिवार्यता है.  सोशल मीडिया के जरिए फेक न्यूज़ और झूठ को प्रचार-प्रसार करके या फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में भ्रामक स्थिति पैदा कर करके आफवाहों का बाजार गर्म कर देना, आपको ये मानना चाहिए कि जितना सुरक्षित और जितना अवसर भारतीय मुसलमानों को दुनियाभर में है, उतना कहीं पर नहीं है. बावजूद इसके फेक न्यूज़ और भ्रम की स्थिति पैदा करके हमारे मुस्लिम युवाओं को बरगलाने की कोशिश की गई. लेकिन भला हो हमारे मुस्लिम युवाओं का कि वे बढ़-चढ़कर आगे आए और ऐसे अराजक तत्वों का मुंहतोड़ जवाब दिया.


आपको ये जानकर खुशी होगी कि हमारे एटीएस, एसटीएफ और पुलिस में ऐसे जांबाज मुस्लिम कर्मचारी हैं, जिन्होंने बढ़ चढ़कर ऐसे तत्वों के मुंह खट्टे किए और उनका मुंहतोड़ जवाब दिया. मैं नाम लेना चाहूंगा जो मेरे साथ एक कांस्टेबल था रिजवान अहमद, वो कांस्टेबल के बाद एसआई बना. आउट ऑफ टर्न दो बार प्रमोशन मिला. रिजवान एक मिसाल है आपके सामने. ऐसे में ये सच है कि खतरा तो है लेकिन उसका जवाब आईटी सेल, पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसी लगातार दे रहे हैं.


अमृतपाल का उदय राज्य सरकार पर सवाल


अमृतपाल का उदय होना ये राज्य सरकार के शिथिल रहने और वैधानिक कार्रवाई न करने के चलते हुआ. अगर राज्य सरकार हथियार लेकर घूम रहे और उसके लहराते हुए लोगों के हथियार जब्त कर लेते, जो 20 से ज्यादा कारतूस लेकर चल रहे थे, उस पर एक्शन लेते और लाइसेंस जब्त करते, जो चौकी इंचार्ज कर सकता था, इन्होंने तो ये भी नहीं किया. ऐसे में अमृतपाल ही भस्मासुर हो गया. दो कौड़ी के आईएसआई के टुकड़े पर पलने वाले अमृतपाल की ये औकात नहीं होती. और ये भाग कैसे जाता घेरा तोड़कर, वहां घेरा था ही कौन सा.




[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]