एक जमाना वो भी था जब पश्चिम बंगाल में सिर्फ लाल झंडा ही लहराता था जिसके दम पर ही दिवंगत ज्योति बसु ने सबसे ज्यादा वक़्त तक उस राज्य के मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया. लेकिन कोई भी राष्ट्रीय पार्टी बंगाल से लाल झंडे को मुक्त नहीं कर पाई और वही काम ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस ने कर दिखाया.

अब सिर्फ केरल में लाल झंडे का किला बचा हुआ है और वहां भी उस सरकार की अंदरुनी लड़ाई बाहर आ गई है जिस सरकार को बने अभी महज़ डेढ़ साल ही हुआ है. जाहिर है कि काडर बैस मानी जाने वाली पार्टी कभी भी सार्वजनिक रुप से ये नहीं मानेगी कि उसकी सरकार में कहीं असंतोष भी है जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर सकती. लेकिन सियासी गलियारों में एक बड़ा सवाल ये भी उठ रहा है कि केरल कैबिनेट के इस फेरबदल को क्या ये माना जाए कि वहां भगवा लहराने वालों ने इतनी तैयारी कर ली है कि लाल रंग फीका पड़ने की शुरुआत हो गई?

देश की सियासत में शायद ये पहला ऐसा मौका होगा जब किसी राज्य में एक मंत्री से इस्तीफा लेकर विधानसभा के अध्यक्ष को सरकार में मंत्री बनाया जा रहा है. केरल की राजनीति के जानकार मानते हैं कि इसे आप संगठन व सत्ता के बीच चल रही खींचतान के रूप में देख सकते हैं जो अब खुलकर सामने आ गई है. लेकिन इस फेरबदल को मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की जीत के रूप में भी देखा जा रहा है जो ये नहीं चाहते कि संगठन उनकी सत्ता पर हावी होने लगे. बता दें कि राज्य के आबकारी मंत्री एमवी गोविंदन को पिछले रविवार को ही पार्टी ने राज्य का सचिव नियुक्त करते हुए उन्हें मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने को कहा था. 

केरल के स्थानीय मीडिया में आने वाली कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि बीते मार्च में केरल में लागू की गई नई शराब नीति को लेकर सीएम विजयन और गोविंदन के बीच खटास बढ़ गई लेकिन बताते हैं कि उसका फैसला भी सीएम की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में ही लिया गया था. लिहाज़ा, केरल का मीडिया भी वो वजह तलाश रहा है जिसके चलते दोनों के बीच आखिर छत्तीस का आंकड़ा ऐसा क्या बन गया कि सीएम विजयन ने पार्टी की केंद्रीय समिति तक संदेशा भिजवा डाला कि इन्हें सरकार की बजाय संगठन में रखना ही बेहतर होगा. महीनों तक चली जद्दोजहद के बाद आखिरकार पार्टी को अपने मुख्यमंत्री की बात माननी ही पड़ी.

कहते हैं कि विजयन के सीपीएम का पदाधिकारी बनने से लेकर सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के उनके सफ़र में तानाशाही की साफ झलक मिलती है क्योंकि वे नहीं चाहते कि सरकार में कोई और नेता उनसे ज्यादा लोकप्रिय हो जाये. शायद यही वजह थी कि कोविड-19 की महामारी से पूरी शिद्दत के साथ निपटने वाली और नेशनल मीडिया की सुर्खी बनने वाली तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा को पिछले साल दोबारा मंत्री बनाने की बजाय उन्होंने अपने दामाद को मंत्री बनाना ज्यादा बेहतर समझा था.

केरल के स्थानीय मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, अब तक विधानसभा अध्यक्ष का पद संभाल रहे एमबी राजेश अब आबकारी और स्थानीय स्व-सरकारी विभागों को संभालेंगे जो इससे पहले गोविंदन यह जिम्मेदारी संभाल रहे थे. 51 वर्षीय एमबी राजेश केरल की त्रिथला विधानसभा सीट से विधायक हैं. वह यूडीएफ उम्मीदवार पीसी विष्णुनाथ से कड़े मुकाबले में महज 96 मतों से जीते थे. 10 साल तक सांसद रहे राजेश साल 2021 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े थे. वह टीएस जॉन और एसी जोस के बाद केरल विधानसभा में विधायक के रूप में पहले कार्यकाल में अध्यक्ष पद हासिल करने वाले तीसरे व्यक्ति हैं.

एमबी राजेश को लेकर कहा जाता है कि वह बहुत गंभीर और अनुशासित विधानसभा अध्यक्ष रहे और सदन में दोनों पक्षों के बीच समन्वय बनाकर काम करते थे. कोरोना काल के दौरान राजेश ने सदन में मास्क पहनने के अनिवार्य नियम का पालन विधायकों से सख्ती से कराया था. स्थानीय मीडिया के अनुसार, शमसीर जो कि अगले विधानसभा अध्यक्ष बनने वाले हैं उन्हें राजेश मास्क सही से लगाने के लिए कहते थे. हालांकि पार्टी ने दलील यही दी है कि गोविंदन ने पार्टी संगठन में वरिष्ठ नेता कोडियेरी बालकृष्णन की जगह ली है क्योंकि बालकृष्णन स्वस्थ नहीं हैं.

लेकिन सच ये भी है राजनीति में अपने फैसले को जायज ठहराने के लिए तमाम तरह की दलीलें दी जाती हैं जिनका मकसद लोगों का ध्यान भटकाना ही रहता है. किसी भी सियासी दल के नेता को आपने कभी ये सुनते नहीं देखा होगा कि हां, फलां राज्य में हम जमीनी तौर पर कमज़ोर हैं. इसीलिये सदियों पहले कई दार्शनिकों ने लिख दिया था कि, "इस संसार में राजनीति सबसे बड़ी बहुरुपिया है जिसमें एक आम इंसान को छलने व मूर्ख बनाने की कला में पूरी महारथ हासिल है."

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)