कोई चुनाव हो और राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिये मुफ़्त में रेवड़ियां बांटने का ऐलान न करें, ऐसा भला कैसे संभव हो सकता है. कर्नाटक में विधानसभा चुनावों की तारीख का ऐलान फ़िलहाल नहीं हुआ है लेकिन संभावना है कि मई के पहले हफ़्ते में चुनाव होंगे क्योंकि 24 मई को विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. चूंकि चुनाव तारीख का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो जायेगी, लिहाजा सत्ताधारी बीजेपी और मुख्य विपक्षी कांग्रेस के बीच लोगों को मुफ़्त में चीजें देने के चुनावी वायदे करने की होड़ लगी हुई है.  प्रेशर कुकर से लेकर अन्य बर्तन देने और LIC का प्रीमियम भरने से लेकर तिरुपति और शिरडी की तीर्थ यात्रा पर ले जाने जैसे चुनावी वादों की बरसात हो रही है.


कांग्रेस ने घोषणा की है कि सत्ता में आने पर हर घर की महिला मुखिया को 2 हजार रुपये पर प्रतिमाह दिये जायेंगे.ये सुनते ही बोम्मई सरकार भला चुप कैसे रहती, सो उसने भी फौरन नई स्कीम का ऐलान कर दिया कि दोबारा सरकार बनने पर गरीबी रेखा से नीचे वाले हर परिवार को हर महीने 3 हजार रुपये की धनराशि मिलेगी. अब सवाल उठता है कि बीजेपी की बोम्मई सरकार मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणा करके क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों को झूठा साबित करना चाहती है? वह इसलिये कि बीते साल 22 जुलाई को पीएम मोदी ने वोट पाने के लिए इस रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा देने वालों पर तीखा हमला बोलते हुए इसे देश के विकास के लिए खतरनाक बताया था. उन्होंने कहा था कि ऐसी पार्टियां आपके लिये नये एक्सप्रेसवे,नये एयरपोर्ट या डिफेंस कॉरिडोर नहीं बना सकती हैं. लिहाजा, देश की राजनीति से इस रेवड़ी कल्चर वाली सोच को हमें एकजुट होकर खत्म करना होगा लेकिन हैरानी की बात है कि विपक्ष का मुकाबला करने और दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी भी अब उसी रणनीति को अपना रही है.


हालांकि देश की राजनीति में चुनाव के वक़्त वोटरों को पैसा या दूसरे उपहार बांटने की ये संस्कृति कोई नई नहीं है. तमिलनाडु इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां पिछले कई दशकों यानी कामराज और एम जी रामचंद्रन के जमाने से ही ये परंपरा लगातार चलती आ रही है. कह सकते हैं कि बाद के सालों में विभिन्न राज्यों में चुनाव जीतने के लिए तकरीबन हर राजनीतिक दल ने यही रास्ता अपनाया और अब तो चुनाव जीतने का यही सबसे बड़ा पैमाना बन चुका है कि कौन सबसे ज्यादा रेवड़ियां बांटता है. इसलिये ये देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक के वोटरों पर इसका कितना असर होता है और क्या वे इसी आधार पर अपना वोट करेंगे. दक्षिण की राजनीति की समझ रखने वाले विश्लेषक मानते हैं कि ये कोई जरुरी नहीं है कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में चीजें देने की हर घोषणा का नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता हो. कुछ तो इतनी अच्छी होती हैं,जो लोगों को फायदा पहुंचाने के साथ ही पूरे समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाती हैं.  


मसलन, जयललिता ने जब स्कूल जाने वाली लड़कियों को मुफ्त साईकल देने का ऐलान किया और सरकार में आने पर उस वादे को पूरा किया तो उससे राज्य में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधार भी हुआ. साधन के अभाव में जो लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती थीं, उन्हें इससे एक तरह की आजादी मिली और स्कूल एडमिशन की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी भी हुई है. इसी तरह मुफ्त में लैपटॉप मिलने से युवाओं के लिए नए आर्थिक अवसर पैदा हुए. इसलिये सरकार की हर मुफ्त योजना को हम एक ही चश्मे से नहीं देख सकते. ऐसी कुछ योजनाएं लोगों के साथ ही राज्य के लिये भी फायदेमंद साबित हुई हैं. जहां तक कर्नाटक की सियासी तस्वीर का सवाल है तो विश्लेषकों के मुताबिक त्रिकोणीय मुकाबला होने के बावजूद बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही कांटे की टक्कर है, लेकिन बीजेपी के लिये ज्यादा चिंता की बात ये है कि प्रदेश के बड़े हिस्से में सरकार विरोधी लहर देखने को मिल रही है.इसकी एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार को माना जा रहा है.


इस आरोप को लेकर विपक्षी दलों ने एक जुमला उछाला है, जिसे नाम दिया गया है-'40% सरकार.' विपक्ष का आरोप है ठेकेदारों द्वारा 40 फीसदी कमीशन रिश्वत के तौर पर सरकार में बैठे लोगों को दिया जाता है, तभी उन्हें ठेका मिलता है. ये नैरेटिव बन जाने से बीजेपी सरकार की विश्वसनीयता को काफ़ी हद तक नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है. हालांकि अलग-अलग गुटों में बंटी पार्टी की आंतरिक कलह को खत्म करके पूर्व सीएम येदियुरप्पा समेत सबको एकजुट करने का मोर्चा तो गृह मंत्री अमित शाह ने संभाल लिया है,इसलिये भितरघात का खतरा नहीं है, लेकिन 20 दिन तक राज्य के विभीन्न हिस्सों से गुजरी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेसियों में नई जान फूंकने का काम किया है.इसलिये वो सत्ता हथियाने के लिए बोम्मई सरकार को चौतरफा घेर रही है.हालांकि ये अलग बात है कि वहां की जनता मुफ्त में मिलने वाली किसकी रेवड़ियों पर ज्यादा भरोसा करती है?


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