अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन चार दिनों की भारत यात्रा पर पहुंच रहे हैं. वह आज देर शाम आएंगे और कल यानी 8 सितंबर को भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे. इसके बाद 9 और 10 सितंबर को जी20 समिट में हिस्सा लेकर वह भारत से ही वियतनाम की यात्रा पर रवाना हो जाएंगे. बाइडेन अकेले ऐसे राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिन्होंने शी जिनपिंग के भारत न आने पर निराशा जाहिर की है. बाइडेन की पत्नी जिल को कोरोना हो गया है और बाइडेन भी लगातार जांच में हैं, इसके बावजूद उनका चार दिनों की इस यात्रा पर आना बताता है कि वह इस कार्यक्रम को कितनी तवज्जो दे रहे हैं. भारत को भी इस यात्रा से काफी उम्मीदें हैं. 


भारत और अमेरिका के संबंध हो रहे हैं प्रगाढ़


अमेरिकी मीडिया और थिंकटैंक में यह बात तो काफी मुखरता से कही जा रही है कि भारत और अमेरिका के संबंध बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि नयी करवट लेने को और नये अध्याय लिखने की तैयारियां की जा रही हैं. इसी साल जून में अमेरिका की स्टेट विजिट पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे और अब बाइडेन जी20 की बैठक में हिस्सा लेने भारत आए हैैं. बाइडेन के लिए भी यह बैठक काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जी20 दुनिया के बड़े ब्लॉक्स में एक है. आर्थिक या सामरिक तौर पर यह समूह काफी महत्वपूर्ण और रणनीतिक लिहाज से बेहद काम का है. बाइडेन को भी एक मंच मिलेगा, अमेरिका की चिंताएं, उम्मीदें और योजनाएं साझा करने का और भारत के लिए भी वैश्विक रंगमंच पर अपना जलवा बिखेरने का मौका है. संबंधों की प्रगाढ़ता लगातार बढ़ रही है और जून में जब हम लोग ह्वाइट हाउस गए थे, मोदी जी का स्वागत करने तब से यह प्रगाढ़ता बढ़ी ही है, कम नहीं हुई है. जो बाइडेन की पत्नी जिल बाइडेन को कोरोना हो गया है, जो बाइडेन भी लगातार निगरानी में हैं, फिर भी वह तमाम एहतियात बरतते हुए भारत आ रहे हैं, तो इससे समझा जा सकता है कि इस जी20 समिट का उनके लिए कैसा महत्व है? जी20 या किसी भी बहुपक्षीय समूह के सम्मेलन में द्विपक्षीय वार्ताएं अमूमन नहीं होती हैं, लेकिन शुक्रवार 8 सितंबर को जो बाइडेन पहले द्विपक्षीय वार्ता करेंगे, फिर 9 और 10 सितंबर को जी20 की बैठक में हिस्सा लेंगे. जाहिर है, कि इस वार्ता में पुराने कमिटमेंट्स पर चर्चा होगी, ड्रोन और जेट पर बातचीत होगी, बाकी तकनीकी-रणनीतिक बातें होंगी. 



राजनीति में लेना-देना चलता है. इसी नजरिए से भारत और अमेरिका के संबंधों को देखना चाहिए. अमेरिका इस मंच को यह अहसास दिलाना चाहता है कि जी20 को वह महत्व देते हैं. ऐसा इसलिए कि ट्रंप के समय अंतरराष्ट्रीय फोरम्स पर कम ध्यान दिया जाता था. ट्रंप कहते थे- अमेरिका फर्स्ट. बाइडेन का मानना है कि अमेरिका फर्स्ट तो है ही, लेकिन बाकी अंतरराष्ट्रीय समूहों, मंचों को भी बराबर तवज्जों देनी चाहिए. विश्व मंच पर अमेरिकी नेतृत्व को वह कायम रखना चाहते हैं और इसीलिए बाइडेन पूरे लाव-लश्कर के साथ भारत आए हैं. 


चीन है साझा समस्या


आप जानते हैं कि सामान्यतः चीन और अमेरिका के बीच आम तौर पर लव एंड हेट का संबंध रहा है. इसमें हेट कुछ अधिक ही रहा है. हमें पता है कि चीन दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब है और इसी के बल पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बना. वह यूएस के साथ प्रतियोगिता कर रहा है और वह भी आक्रामक तरीके से. बाइडेन प्रशासन से लेकर अमेरिकी थिंक टैंक तक को फिलहाल यह लग रहा है कि चीन को अगर हरेक तरह से कोई टक्कर दे सकता है, सत्ता का संतुलन बना सकता है तो वह भारत है. एक फायदा यह भी है कि चीन और भारत की सीमाएं लगी हैं, जबकि अमेरिका 8 हजार किलोमीटर दूर बैठा है. जो रक्षा सलाहकार हैं, उनको लग रहा है कि चीन के लिए भारत को सामने लाना जरूरी है. इसीलिए, पिछले कुछ वर्षों से भारत और अमेरिका के बीच काफी सारे समझौते हो रहे हैं. अमेरिकी लोग भी अब भारत के लोकतंत्र को समझ रहे हैं और वह समझते हैं कि वे भारत पर भरोसा कर सकते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए भी भारत जरूरी है. इसी से बीते कुछ साल से काफी सारे समझौते भारत और अमेरिका के बीच हो रहे हैं. भारत उनका एक प्राकृतिक साझीदार हो सकता है. कोविड के दौरान जिस तरह भारत ने हाइड्रोक्लोरोक्वीन की अबाध आपूर्ति अमेरिका को की, उसका भी काफी प्रभाव पड़ा है. चीन को टैकल करने के लिए भी दोनों देश मिलकर काम करने को तैयार है. इससे भारत का यह फायदा होगा कि वह भी अपना दबदबा कायम कर सकता है. दोनों देश मिलकर इसके रास्ते तलाशेंगे. 



मोदी-बाइडेन कई मसलों पर करेंगे बात


जी20 चूंकि एक बड़ा प्लेटफॉर्म है, तो विश्व बैंक और आइएमएफ को और सरल बनाने पर बात होगी. इसके साथ सतत विकास और क्लाइमेट चेंज पर बाइडेन बात करेंगे. जून में जिस जेट-इंजन की बात हुई थी, उसको अमेरिकी कांग्रेस ने अप्रूव कर दिया है और जल्द ही भारत में जेट इंजन की शुरुआत हो जाएगी. इसके साथ ही स्माल न्यूक्लियर रिएक्टर पर बात होती है. जून में तो आपने बड़ी बातें तय कर ली थीं, बाद में उसकी छोटी-छोटी बातें तय होती हैं और फिर जाकर वह डील या काम पूरा होता है. अहमदाबाद और बेंगलुरू में अमेरिकी कांसुलेट खोलने पर भी बात होगी. हालांकि, मुख्य बात जो है वह ड्रोन्स, जेट इंजन के तकनीकी आदान-प्रदान और वैश्विक समस्याओं पर बात होगी. भारत के भी सिएटल में कांसुलेट खोलने पर चर्चा होगी. इसके अलावा भारतीय स्टूडेंट्स के वीजा के मसलों पर भी बात होगी. एक से दूसरे देश जाने के लिए वीजा रेस्ट्रिक्शन को कैसे ढीला किया जाए, उस पर भी बात होगी.


हालांकि, मुख्य मसला तो सैन्य और सामरिक मसलों का ही होगा. इसका कारण यह है कि बाइडेन जानते हैं कि दुनिया में रणनीतिक और सामरिक केंद्र अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र ही होने जा रहा है. बाइडेन दुनिया के बड़े देशों में से इकलौते नेता हैं, जिन्होंने जिनपिंग के जी20 बैठक में न आने पर निराशा जाहिर की है. इसके साथ ही, बाइडेन रूस और यूक्रेन युद्ध पर भी बात करना चाहेंगे. भारत अब तक बड़ी कुशलता से इस संगीन मसले पर खुद को कोई पार्टी बनने से बचाए हुए है, हालांकि मोदी ने एक बार सार्वजनिक तौर पर पुतिन को समझाइश दी है, लेकिन यह युद्ध यूरोप और अमेरिका के लिए बड़ा मसला है. अमेरिका चाहता होगा कि भारत अपनी पुरानी दोस्ती का लीवरेज लेकर रूस को किसी तरह युद्ध के लिए मनाए. जाहिर है, अमेरिका और भारत दोनों ही अपने हितों को देखते हुए हार्ड बारगेन करेंगे, लेकिन इतना तो तय है कि इससे भारत को फिलहाल फायदा ही दिख रहा है, नुकसान किसी तरह का नहीं है.


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