दिल्ली की जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (JNU) एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने को लेकर बवाल है. यहां बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के दौरान जमकर पत्थरबाजी हुई, जिसे लेकर दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. वहीं दिल्ली पुलिस इस मामले की जांच की बात कर रही है. हालांकि जेएनयू में ये पहला मामला नहीं है, जब ऐसी हिंसक झड़प देखने को मिली हो. करीब तीन साल पहले भी जेएनयू में जमकर बवाल हुआ था, जब कई नकाबपोश कैंपस में घुसे और छात्रों के साथ जमकर मारपीट हुई. 

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5 जनवरी 2020 को जेएनयू के साबरमती और पेरियार हॉस्टल में हुई हिंसा में JNUSU अध्यक्ष समेत 28 लोग घायल हो गए थे. इस दौरान लाठी और लोहे की रॉड के साथ कैंपस में घुसे नकाबपोशों ने जमकर तोड़फोड़ भी की थी. पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और सख्त कार्रवाई की बात कही गई, हालांकि अब तक इस पूरे मामले को लेकर कुछ भी सख्त एक्शन नहीं लिया गया है. इसे लेकर दिल्ली पुलिस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. 

तीन साल बाद भी कोई एक्शन नहींकरीब तीन साल पहले जेएनयू में हुई इस मारपीट को लेकर हमने छात्र नेता आइशी घोष से बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि अब तक मामले में कोई भी कार्रवाई पुलिस ने नहीं की है. इसे लेकर वसंत कुंज थाने में मामले दर्ज हुए थे, कमिश्नर लेवल तक उसकी जांच होने की बात कही गई थी. एसआईटी ने जांच भी की थी, लेकिन इसके बाद कोई जवाब नहीं मिला. हमने इस मामले में कई सबूत भी पुलिस को दिए, लेकिन तीन साल बाद भी अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं हुई. इस मामले में बाहर से आरएसएस के लोगों ने अंदर के लोगों के साथ मिलकर हिंसा की थी. लेकिन कल के मामले में एबीवीपी के छात्रों ने हिंसा की. जिसे लेकर हमने पुलिस में शिकायत की है.  

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इस मामले को लेकर हमने दिल्ली पुलिस का पक्ष जानने के लिए पीआरओ सुमन नालवा से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने अब तक हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया है. अगर पुलिस की तरफ से जवाब आता है तो उसे अपडेट किया जाएगा. 

जेएनयू और विवादों का पुराना नाताजेएनयू और विवादों का नाता कोई नया नहीं है, कई दशकों से जेएनयू को एक ऐसे संस्थान के तौर पर देखा जा रहा है जहां छात्र आंदोलन सबसे जल्दी पनपते हैं और विरोध की आवाज यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर निकलती है. इसे वामपंथी राजनीति का गढ भी कहा जाता है. साल 1983 के दौर में जेएनयू कैंपस में जबरदस्त हिंसा की शुरुआत हुई थी, जिसके चलते पूरी यूनिवर्सिटी को बंद करना पड़ा और जबरन हॉस्टल खाली कराए गए. इसके बाद 90 के दशक में कई ऐसे मामले आए, जब जेएनयू में आक्रामक विरोध प्रदर्शन हुए और ये सुर्खियों में बना रहा. 

साल 2000 में जेएनयू को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ और बताया गया कि यहां हुए एक मुशायरे में भारत विरोधी नज्में गाई गईं. इसे लेकर खूब बवाल हुआ. आरोप लगाया गया कि इस दौरान दो सेना के जवान भी सभागार में मौजूद थे, जिनके साथ मारपीट की गई. इसका आरोप वामपंथी दलों पर लगाया गया. इस घटना के करीब पांच साल बाद तत्तकालीन पीएम मनमोहन सिंह जब जेएनयू दौरे पर गए तो उनका जमकर विरोध हुआ. इस दौरान भी झड़प हुई. बताया गया कि ये विरोध ईरान के खिलाफ अमेरिका का साथ देने को लेकर किया गया. 

2014 के बाद लगातार प्रदर्शन और हिंसा साल 2014 में बीजेपी ने यूपीए को सत्ता से उखाड़ फेंका और केंद्र की सत्ता में काबिज हुई. इसके बाद से जेएनयू में अब तक काफी ज्यादा प्रदर्शन और हिंसा हुई है. कई हिंदू संगठन और बीजेपी नेता ये भी आरोप लगाते हैं कि एजेंडे के तहत बीजेपी सरकार के खिलाफ वामपंथी छात्र संगठन ऐसा विरोध करते हैं. साल 2016 में जेएनयू के कुछ वीडियो अचानक सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. इनमें आतंकी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ नारेबाजी के आरोप लगाए गए. साथ ही भारत विरोधी नारे भी कथित वीडियो में सुनाई दे रहे थे. इस मामले ने तूल पकड़ा और दोनों पक्षों के छात्रों के बीच जमकर हिंसा हुई. बाद में दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत कई छात्रों को गिरफ्तार कर लिया था. 

इस विवाद के बाद 2019 में जेएनयू प्रशासन की तरफ से नियमों की एक लिस्ट जारी की गई. जिसमें फीस बढ़ोतरी से लेकर ड्रेस कोड और ऐसी ही कई बातों का जिक्र किया गया था. इसके अलावा छात्रों पर सुविधा शुल्क लगाने की भी बात कही गई. इस मामले को लेकर जेएनयू छात्रों ने जमकर हंगामा किया और उग्र प्रदर्शन किया गया. इसके अलावा सीएए-एनआरसी को लेकर भी जेएनयू चर्चा में रहा, इसे लेकर छात्रों ने लंबे मार्च निकाले और जमकर विरोध प्रदर्शन किया. इस विवाद के दौरान एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण भी जेएनयू पहुंचीं थीं. जिसके बाद उन्हें ट्रोल होना पड़ा. 

फीस बढ़ोतरी को लेकर जारी प्रदर्शन के ठीक बाद 2020 जनवरी में कैंपस में जमकर मारपीट का मामला सामने आया, जिसमें हॉस्टलों में घुसकर छात्र संघ की अध्यक्ष और पदाधिकारियों को निशाना बनाया गया.