सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग से जुड़ी जितनी भी याचिकाएं अलग-अलग कोर्ट में थी, उनको 6 जनवरी को एक साथ मिला दिया.  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में अपना पक्ष दाखिल करने को कहा और अरुंधति काटजू को याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील नियुक्त किया.


चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय संविधान पीठ 13 मार्च को इस पर सुनवाई करेगी. इसमें केंद्र सरकार अपना पक्ष रखेगी.  स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत इंटरकास्ट या इंटर रिलीजन शादियां रजिस्टर्ड होती हैं. केंद्र सरकार बताएगी कि स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत समलैंगिक विवाह  रजिस्टर्ड हो सकता है कि नहीं. असल मुद्दा यही है. सोमवार को केंद्र सरकार अपने आर्ग्यमन्ट लेकर आएगी.


वकील होने के नाते हम लोग उस तरह के केस दखते हैं, जिनमें ऐसे लोग समलैंगिक विवाह को रजिस्टर्ड कराना चाहते हैं.  उन लोगों के सामने बहुत ज्यादा समस्याएं हैं. 
समलैंगिक संबंध रखने वालों को बहुत ज्यादा हिंसा का सामना करना पड़ता है. परिवार का बहुत दबाव झेलना पड़ता है. उदाहरण के तौर पर जबतक कोई भी विवाह कानूनी तौर से रजिस्टर्ड नहीं होता, उसमें कपल्स के अंदर एक प्रकार की असुरक्षा की भावना होती है, इनसिक्योरिटी रहती है.


समलैंगिक विवाह में भी इसी तरह की इनसिक्योरिटी रहती है, अगर कानूनी तौर से उस विवाह को रजिस्टर्ड नहीं किया जाता है. समलैंगिक विवाह में शामिल कपल्स को भी एक सिक्योरिटी की जरूरत है. मेरा मानना है कि अगर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दे दी जाती है, तो उससे किसी का नुकसान नहीं होगा. इससे उन लोगों को फायदा जरूर होगा, जो आज के वक्त में समलैंगिक विवाह कर रहे हैं या फिर करने की सोच रहे हैं.


समलैंगिक संबंध एक सच्चाई है. इससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते कि समाज में ऐसा कुछ होता ही नहीं है. ये आज से नहीं, बल्कि जबसे समाज का इतिहास है, तब से समलैंगिक संबंध रहे हैं. सबसे बड़ी बात है कि आज हम उस दौर में है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देकर सिक्योर बना सकते हैं. मेरे हिसाब से अगर ऐसा हो जाता है तो समाज में इससे एक बहुत ही सकारात्मक संदेश जाने का साथ ही बेहतर परिणाम भी सामने आएंगे.


जो लोग रूढ़िवादी सोच के हैं, जिन्हें लगता है कि वे कंट्रोल कर सकते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि समलैंगिक संबंधों को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है. अगर वैसे संबंधों को मान्यता दे दी जाएगी, तो उनके खिलाफ हिंसा कम हो जाएगी. वैसे कपल समाज में ज्यादा सुरक्षित महसूस करेंगे. काम में भी उनकी मदद होगी.


अभी समलैंगिक संबंध रखने वाले कपल अपने-अपने धार्मिक रीति रिवाजों के मुताबिक विवाह कर ले रहे हैं. लेकिन कानूनी तौर से वे मैरिड कपल नहीं दिख रहे हैं. वे बच्चे गोद नहीं ले सकते हैं, तलाक के लिए अर्जी नहीं दे सकते हैं. जो शादीशुदा जोड़े के पास अधिकार होते हैं, वे अधिकार फिलहाल उनके पास नहीं है, जबतक कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दे दी जाती है.


2018 में सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकता को अपराध की कैटेगरी से हटा चुकी है. समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं है और ये लीगल है. आज के वक्त में जब समलैंगिक संबंध लीगल है तो फिर उसका अगला पड़ाव तो यही है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाए. अगर समलैंगिक संबंध रखने वाले कपल शादी करना चाहते हैं, तो अब तो ये सरकार की ड्यूटी है कि उन लोगों के लिए वैसी व्यवस्था बने. वे भी देश के नागरिक हैं और समलैंगिकता अपराध नहीं है, इस नाते उन्हें भी वो सारे ह़क मिलने चाहिए, जो बाकी नागरिकों को मिल रहे हैं. वे भी बाकी नागरिकों की तरह देश की तरक्की में योगदान दे रहे हैं, हर तरह के टैक्स दे रहे हैं. बाकी मामलों में वे भी एक नॉर्मल लाइफ जी रहे हैं.


अगर वे लोग शादी करना चाहते हैं, तो सरकार को कानून में बदलाव करने ही पडेंगे. चाहे तलाक से जुड़े कानून हों, या फिर बच्चों को गोद लेने से जुड़े कानून..इस तरह के जितने भी कानून हैं, उनमें बदलाव करने ही होंगे. अलग से क्लॉ़ज डालना ही पड़ेगा. ये तो सरकार का काम है, ये तो उसे करना ही चाहिए. कोर्ट ने तो समलैंगिकता को लीगल करके अपना काम 2018 में ही कर दिया था. अगर समलैंगिक विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के दायरे में आ जाता है, तो सरकार का काम है कि कानूनों में जरूरी संशोधन करे और उसे करना ही होगा.


जब 2018 में समलैंगिक संबंध को अपराध की कैटेगरी से बाहर कर दिया गया था. तो इस दिशा में 90 फीसदी काम तो तभी हो गया था. अभी तो सरकार को सिर्फ कानूनों में बदलाव करना है. जो बोला जा रहा है कि पति और पत्नी अपोजिट जेंडर ही होना चाहिए, तो अगर सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाती है, उस दिशा में इस मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट से ही दिशानिर्देश आएगा. इसे सुप्रीम कोर्ट ही स्पष्ट करना होगा. उसके मुताबिक केंद्र सरकार कानून बनाएगी. अगर स्पेशल मैरिट एक्ट के अंदर समलैंगिक विवाह को मान्यता मिल जाती है, तो उसके बाद बाकी सारी चीजों का समाधान अपने आप निकल जाएगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)