पाकिस्तान में तूफान से पहले की खामोशी, सेना और शहबाज सरकार का लक्ष्य है चुनाव टालना, इमरान की गिरफ्तारी और रिहाई में छिपे हैं संकेत

पाकिस्तान में इन दिनों हालात बदतर हैं. सेना के मुख्यालय तक पर जनता हमला कर दे रही है. पूर्व प्रधानमंत्री तक अदालत परिसर से गिरफ्तार किए जा रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ वहां के गृहमंत्री टिप्पणी कर दे रहे हैं. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट के बाद इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने भी इमरान खान को 17 मई तक की राहत दे दी है, लेकिन सवाल ये है कि पाकिस्तान में जो आर्थिक बर्बादी और तबाही का मंजर है, जो राजनीतिक अस्थिरता है, वह और गंभीर रूप लेगी या पाकिस्तान फिर से पटरी पर लौट आएगा?
पाकिस्तान में सेना ही मुख्य खिलाड़ी
पाकिस्तान की राजनीति को अगर गंभीरता से समझें और देखें तो उसमें मुख्य खिलाड़ी सेना ही है. वह किसी भी तरह इमरान खान की लोकप्रियता को कम करना चाहती है. इसके लिए बहाने चाहे कुछ भी बने, ढाल चाहे कोई भी हो, करतब चाहे कुछ भी करना पड़े. इमरान खान के साथ वहां की न्यायपालिका का समर्थन है. जैसा कि आप देख सकते हैं, पहले सुप्रीम कोर्ट ने उनको रिहा किया, फिर इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उनको 17 मई तक की राहत दे दी. भारत के लिए आवश्यक है कि वह पाकिस्तान की घरेलू नीति को अपनी सुरक्षा के नजरिए से देखे, ताकि जो 'स्पिल ओवर' है, वह भारत को प्रभावित न करे.
अभी वहां जो भी कुछ हो रहा है, वह आतंकी गुटों की देन है. जैसे, आप वहां के सबसे धनी प्रांत पंजाब को देख लीजिए. वहां जो सारे आतंकी संगठन हैं, चाहे वो हिजबुल हो, जैश हो, लश्कर हो, सबके हेडक्वार्टर हैं और अभी सबको फ्री-हैंड मिल गया है. भारत में खासकर कश्मीर में वह आतंक से जुड़ी गतिविधियों को अंजाम देते आए हैं. अब वे और भी डिस्टर्बेंस क्रिएट करना चाहेंगे. भारत सरकार को इस पहलू को देखना होगा और कश्मीर को सुरक्षित रखना होगा.
पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था खत्म हो चुकी है. वहां अभी आंतरिक सुरक्षा की सबसे अधिक दरकार है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी 1.2 बिलियन डॉलर का जो बेलआउट पैकेज पाकिस्तान को देने का वादा किया था, वह भी नहीं दे रहा है. अभी जो हालात हैं, उसमें यह पैकेज मिलने वाला भी नहीं क्योंकि आईएमएफ ने पहले से ही कई तरह की शर्तें लाद रखी थी. अब जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होगी, तो उसका भी असर भारत के ऊपर एक पड़ोसी होने के नाते पड़ेगा.
पाकिस्तान में चुनाव टालना चाहेगी सेना
पाकिस्तान हमेशा से ही 'फेल्ड स्टेट' रहा है. वहां कोई भी निर्वाचित नेता प्रधानमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. दूसरे, वहां राजनीतिक बदला लेने का भी इतिहास है. जिसको भी मौका मिलता है, वह अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री को कोई न कोई बहाना बनाकर जेल में डालना चाहता है. फिलहाल, वहां की शहबाज शरीफ सरकार और सेना में सांठगांठ है. वहां अक्टूबर में आम चुनाव होना है, लेकिन उसको टालने की ही कोशिश में दोनों हैं. वे चाहते हैं कि इमरान खान को किसी बहाने जेल में डालकर उनको बदनाम किया जाए और चुनावी मैदान से हटा दिया जाए. हालांकि, पाकिस्तान की जनता का समर्थन निस्संदेह इमरान खान को हासिल है और यही वजह है कि सेना के ठिकाने पर भी हमले हो रहे हैं. लोगों का इतना गुस्सा, ऐसा प्रतिरोध इसी की गवाही देता है.
पाकिस्तान की राजनीति में तीन 'अ' बहुत जरूरी है.... 'अल्लाह, आर्मी और अमेरिका'. अब चीन के लगातार बढ़ते दखल की वजह से अमेरिका वहां पीछे हट गया है. उसकी वजह से ही पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा भी हो रही है. आप देखिए कि आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक में एक SDR यानी स्पेशल ड्राइंग राइट्स होते हैं और इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 17% है. यानी कोई भी देश अमेरिकी इजाजत के बिना इन दोनों संस्थाओं से लोन नहीं ले पाएगा. पाकिस्तान को लोन नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण भी यही है. यही वजह है कि पाकिस्तान आज दिवालिया होने के कगार पर है.
भारत को रहना होगा सावधान
पाकिस्तान का आम आदमी हो, पॉलिटिकल एलीट हो या टेररिस्ट हो, उसमें बहुत फर्क नहीं है. वहां शुरू से ही भारत विरोध सिखाया जाता है. वहां का आप पाठ्यक्रम उठाकर देख लीजिए, चाहे वो मदरसा हो या स्कूल हो. वहां भारत विरोध बचपन से ही घुट्टी के तौर पर दिया जाता है. भारत के प्रति घृणा की भावना कोई समृद्ध पाकिस्तान के होने से भी कम नहीं हो जाएगी. वहां बड़े-बड़े मदरसा हैं, जिनको सऊदी अरब से फंड मिल रहा है. उन मदरसों की जरूरी बात भारत-घृणा है. जो बच्चों को सिखा रहे हैं, वही भारत-विरोध का फंडा है.
इतिहास बताता है कि पाकिस्तान चाहे कंगला हो या बेहद धनी, वह भारत के लिए एक ही मुद्रा में रहता है. वह मुद्रा दुश्मनी की ही है. आप इतिहास देख सकते हैं. चाहे वह वाजपेयी की सरकार हो या नरेंद्र मोदी की, दोनों ने कोशिशें कम नहीं कीं. कंपोजिट पीस डायलॉग किए, बसें चलवा दीं, लेकिन भारत को बदले में धोखा और दुश्मनी ही मिली. कारगिल, संसद पर हमला से लेकर कश्मीर में हाल-हाल तक आतंकी घटनाएं ही तो पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठनों की तरफ से की गई. भारत के लिए यह अच्छा है कि पाकिस्तान टूटे-फूटे, ताकि उसकी एंटी-इंडिया भावनाएं थोड़ी कम हों. एक बिखरा हुआ पाकिस्तान ही शायद भारत के हक में है.
एक चीज यह भी ध्यान में रखने की है कि भारत का दुश्मन नंबर एक चीन है. पाकिस्तान से भारत को कोई खतरा नहीं है. अफगानिस्तान से सटे पश्तून इलाकों में जहां पाकिस्तानी तालिबान सिर उठाए हैं, अफगानिस्तान शरिया लागू करना चाह रहा है. तालिबान वहां अपना कब्जा करना चाहेगा. बलूचों ने वहां उपद्रव तो मचाया ही है. हालांकि, यह कहना जल्दबाजी है कि पाकिस्तान टूट जाएगा. पाकिस्तान अभी विकट संकट में है, लेकिन वह इससे निबट पाएगा, यही उम्मीद की जाए. सबसे बड़ा खतरा ये है कि पाकिस्तान के पास 165 परमाणु बम हैं और वह अगर गलत हाथों में पड़ गए, तो फिर वह पूरी मानवता के लिए संकट की बात होगी. चीन तो दांत गड़ाए बैठा ही है. भारत को इन सबसे निबटने की अधिक जरूरत है.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)




























