प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून के बीच अमेरिका की यात्रा पर रहेंगे. बतौर प्रधानमंत्री वे 8वीं बार अमेरिका जाएंगे. इस दौरे की सबसे ख़ास बात ये हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाएंगे.


ये अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण दौरा है. एक तरह से ऐतिहासिक भी है. 9 साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये पहला स्टेट विजिट है. पहली बार पीएम मोदी 2014 में अमेरिका गए थे तो उन्होंने ये बात कही थी कि संबंधों में जो ऐतिहासिक झिझक थी, वो अब खत्म हो गई है. उस वक्त उन्होंने जिस तरह से भारत की चिंताओं को प्रस्तुत किया था, इन सालों में दोनों देशों के बीच के संबंधों को लेकर जो उम्मीदें थी, वो काफी हद तक कार्यान्वित हुई हैं.


द्विपक्षीय संबंधों को मिलेगा एक नया मोड़


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के 10वें साल में जब अमेरिका जाएंगे, तो वे पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री होंगे, जो वहां की संसद को दूसरी बार संबोधित करेंगे. एक तरह से ये भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के लिहाज से ऐतिहासिक पल होगा. दोनों देशों के बीच संबंधों में जो नई ऊर्जा बनी हुई है, उसका सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिप्लोमेसी है, अमेरिका के साथ उनका जो लगातार इंगेजमेंट रही है, वो है. कहीं पर ये एक मौका भी होगा कि हम भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को एक नया मोड़ लेते हुए देखें.


दोनों देशों के बीच संबंधों में बहुत बड़ा बदलाव हो रहा है. बदलाव का सबसे बड़ा सूचक ये है कि हम पिछले सवा साल से रूस-यूक्रेन युद्ध की बात कर रहे हैं. जब युद्ध शुरू हुआ था तो कहा जा रहा था कि भारत कैसे संतुलन बनाएगा. एक तरफ हमारा रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध है, दूसरी तरफ पश्चिमी देशों ख़ासकर अमेरिका के साथ उभरते हुए संबंध हैं. इस दौरान हमने एक साल में अमेरिका के साथ संबंधों को और मजबूत होते हुए देखा.


तकनीक और रक्षा सहयोग सबसे महत्वपूर्ण


जो दो बड़े मुद्दे भारत और अमेरिका के सामने पिछले कुछ सालों में रहे हैं, उनमें एक है..आधुनिक तकनीक के मामले में आपसी सहयोग और दूसरा है..रक्षा संबंधों में किस तरह से उभार आए. इन दोनों पहलू में हमने कुछ महीनों में बड़े बदलाव देखे हैं. जनवरी के महीने में iCET (इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी) की शुरुआत हुई. इसमें भारत और अमेरिका मिलकर इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर काम करेंगे. इसकी रूपरेखा तैयार की गई.


अभी पिछले हफ्ते जब अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आए तो हमने एक रक्षा सहयोग से जुड़े रोडमैप पर हस्ताक्षर किए. ये अपेक्षा की जा रही है कि प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान ये जो महत्वपूर्ण दो मुद्दे हैं, वे बड़े ही जोर-शोर से सामने आएंगे. इन दोनों ही मुद्दों पर भारत और अमेरिका....और मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे.


भारत और अमेरिका दोनों को एक-दूसरे की जरूरत


भारत और अमेरिका दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है. इसलिए ये संबंध इतने आगे बढ़ रहे हैं. हमारी जो पुरानी परेशानियां थीं, उनको दरकिनार करके हम आगे बढ़ रहे हैं. ये देखिए कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और इकोनॉमी की जो सेंटर ऑफ ग्रेविटी है, वो इंडो-पैसिफिक रीजन में आ गई है. उसके तहत अमेरिका वहां अपनी पकड़ को मजबूत रखना चाहता है. भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है चीन. चीन का जो विस्तारवादी एजेंडा है, उसको लेकर भारत की चुनौती है. अमेरिका से साथ सहयोग भारत के लिए इस लिहाज से भी जरूरी है. 


रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद और मजबूत हुए हैं संबंध


दोनों देशों के बीच सामंजस्य बिठाने की  जरूरत को देखते हुए हमने देखा कि यूक्रेन संघर्ष के बावजूद भारत और अमेरिका एक दूसरे के साथ काम करते रहे क्योंकि उनको पता है कि यूक्रेन युद्ध जैसे कई विषय आएंगे-जाएंगे, लेकिन चीन की चुनौती दोनों देशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. उसको देखते हुए दोनों देश रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़कर काम करना चाह रहे हैं. उसी की रूपरेखा तैयार करने की कोशिश पिछले कुछ सालों से हो रही है.


चाहे वो इंडो-पैसिफिक रीजन में एक-दूसरे के साथ आना हो, चाहे वो क्वाड में दोनों की सहभागिता हो, चाहे वो द्विपक्षीय संबंध हो. भारत-अमेरिका अब द्विपक्षीय से आगे बढ़कर मल्टीलेटरल और ग्लोबल लेवल पर एक साथ काम कर रहे हैं. ये दोनों देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव है. इसका बहुत बड़ा कारण बदलता हुआ सामरिक परिप्रेक्ष्य है.


चीन दोनों देशों के लिए समान रूप से चुनौती


मुझे ऐसा लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. दोनों के संबंध आगे और सशक्त होंगे क्योंकि उसका बड़ा सामान्य का सा एक कारण है कि चीन आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है और वो आक्रामक रुख अपना रहा है. भारत-अमेरिका दोनों ही देश ये चाहते हैं कि चीन को मैनेज किया जाए,. चीन को इस तरह से मैनेज किया जाए कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बैलेंस ऑफ पावर बना रहे. दोनों ही देशों के हित इस मामले में एक समान हैं.


इसको लेकर अगर भविष्य की ओर देखेंगे तो जो भी हमारी समस्याएं थी, उनको भी दरकिनार कर दिया गया है. एक समय भारत में बड़ी चिंता हुई करती थी, जब अमेरिकी नेटवर्क स्टेशन आया था.  ये काफी हद तक भारत के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करेगा, डेमोक्रेसी और ह्यूमन राइट्स की बात करेगा. लेकिन एक-दो हफ्ते पहले हमने देखा कि व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया कि भारत में डेमोक्रैसी बहुत अच्छा कर रही है. कहीं पर इस मुद्दे को लेकर जो परेशानी थी कि अमेरिका, भारत के अंदरूनी मामलों में कितनी दखलंदाजी करेगा, एक तरह से उसको भी दरकिनार कर दिया गया है.


इस समय दोनों देशों के सामने बड़े मुद्दे हैं, सामरिक मुद्दे हैं, उनको देखते हुए दोनों एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ रहे हैं. ये जो रवैया या ट्रेंड है, आगे भी जारी रहेगा. चीन के कंट्रोल को साधने के लिए भारत और अमेरिका जैसे समान विचारधारा वाले देशों को साथ मिलकर काम करना पड़ेगा. इस बात को समझते हुए दोनों देश एकजुट हो रहे हैं और आगे भी एकजुट होते रहेंगे.


आपसी संबंध लगातार हो रहे हैं प्रगाढ़


दोनों ही देशों में सरकार कोई भी हो, सत्ता में पार्टी कोई भी हो, आपसी संबंधों को लेकर आगे बढ़ी है. हमने देखा कि अमेरिका में जॉर्ज बुश, ओबामा, ट्रंप और अब बाइडेन आए..अलग-अलग पार्टियों, अलग-अलग सोच वाले राष्ट्रपति रहे हैं, लेकिन सभी ने भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी. उसी तरह भारत में मनमोहन सिंह के समय में न्यूक्लियर डील हुआ. उसके बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो ये अटकलें लगाई जा रही थी कि एक वक्त में अमेरिका ने उनको वीजा नहीं दिया था, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो इसको लेकर कड़वाहट रहेगी और शायद पीएम मोदी अमेरिका के साथ संबंधों को प्राथमिकता न दें. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार अमेरिका की यात्रा करते रहे और अमेरिका से संबंधों को आगे बढ़ाते रहे.


आज जो सबसे बड़ा फर्क है कि दोनों देशों के नेता नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन एक-दूसरे के साथ संबंधों को मजबूत बनाए जाने को लेकर बेहद उत्साहित हैं. उसी का नतीजा है कि आपसी संबंध और प्रगाढ़ता की ओर बढ़ रहे हैं. 


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]