दुनिया के तकरीबन आठ करोड़ लोगों की सेहत को लेकर हर देश पर निगाह रखने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिये एक बयान ने भारत में जो खलबली मचाई है,उसे एक झटके में नज़रअंदाज इसलिये भी नहीं किया जा सकता कि यहां लोकतंत्र है और संविधान के मुताबिक इसके चारों स्तंभों की जिमेदारियाँ बिल्कुल स्पष्ट हैं और सबकी अपनी लक्ष्मण-रेखा भी है.


WHO ने दावा किया है कि भारत में कोरोना से करीब 47 लाख लोगों की मौत हुई है,जबकि सरकार का कहना है कि इससे अब तक  सिर्फ पांच लाख 20 हजार मौतें ही दर्ज हुई हैं.इस पर देश में राजनीति भी गरमा चुकी है.लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हमारी सरकार सच बोल रही है या फिर WHO झूठ बोल रहा है? और,अगर वह ऐसा कर रहा है,तो आखिर उसे इससे क्या हासिल होगा. दूसरा सवाल ये कि यदि उसका ये आंकड़ा गलत या झूठा है,तो फिर दुनिया के इस सबसे बड़े संगठन ने आखिर किसकी शह पर ऐसा किया?


एक और सवाल ये भी उठता है कि क्या इसके बहाने पर्दे के पीछे से अमेरिका अंतराष्ट्रीय कूटनीति वाली शतरंज की बिसात पर कोई ऐसी गोटी बैठाने में लगा है कि इससे दुनिया में भारत की बदनामी हो? क्या उसकी रणनीति है कि भारत पर ऐसा दबाव डाला जाए कि वह वह रुस-यूक्रेन में जारी युद्ध के बीच तटस्थ होने की बजाय खुलकर किसी एक देश का साथ देने का ऐलान कर दे.हालांकि फिलहाल इसे कयास ही मान सकते हैं.


लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि WHO संयुक्त राष्ट्र की ही एक अनुषांगिक इकाई है,जिस पर अमेरिका का खासा प्रभाव है.दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करने औऱ विभिन्न देशो की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं लोगों की समझ विकसित करने के मकसद से ही साल 1948 में WHO की स्थापना की गई थी. इसके 194 देश सदस्य हैं औऱ किसी भी वैश्विक महामारी के दौरान उसके द्वारा जारी की गई गाइडलाइन का हर देश को पूरी कठोरता के साथ अमल करना होता है.


इसलिए सीधे तौर पर ये आरोप भी नहीं लगा सकते कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किसी खास स्वार्थ या पक्षपात को लेकर ही भारत के बारे में मौतों के ये आंकड़े जारी किए हैं.हालांकि उसके जुटाए आंकड़े वे हैं,जो सिर्फ सरकारी नहीं हैं ,बल्कि अन्य तमाम स्त्रोतों के जरिये जुटाए गए हैं.जाहिर है कि सरकार कोई भी हो और किसी भी देश की हो लेकिन वह इन्हें अपना आधिकारिक डाटा कभी नहीं मानेगी.वही हमारी सरकार ने भी किया और WHO के इस दावे को पूरी तरह से गलत करार दे दिया.इसका सच तो हम भी नहीं जानते लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में कितनी लाशें बहा दी गईं,ये न्यूज़ चैंनलों पर आपने भी देखा होगा लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि सरकारी दस्तावेजों में उन्हें कोरोना से होने वाली मौतों के रुप में ही दर्ज किया गया होगा.


खैर,अब बात करते हैं, इथियोपिया  के डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस की जो पिछले दिनों ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए महानिदेशक निर्वाचित हुए हैं.वे पिछली 18 अप्रैल को तीन दिवसीय दौरे पर भारत आये थे.इस दौरान सरकार से जुड़े उनके अधिकांश कार्यक्रम गुजरात में ही थे,जहां खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे.


लेकिन उनके भारत आने से ठीक एक दिन पहले ही एक अंग्रेजी अखबार ने WHO के हवाले से एक रिपोर्ट छापी जिसमें ये दावा किया गया था कि भारत वैश्विक कोविड की मौत को सार्वजनिक करने के डब्ल्यूएचओ के प्रयासों को रोक रहा है.उस ख़बर का लुब्बेलुबाब यही था कि भारत नहीं चाहता कि हर देश के हिसाब से इन मौतों का खुलासा हो.हम नहीं कहते कि उस रिपोर्ट में कितना सच था या कितना झूठ लेकिन उसने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा तो दे ही दिया.


कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे फौरन लपक लिया.उन्होंने उस रिपोर्ट का स्क्रीन शॉट साझा करते हुए ट्वीट किया कि "मोदी जी न तो सच बोलते हैं और न ही दूसरों को बोलने देते हैं. वह अभी भी झूठ बोलते हैं कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई." राहुल गांधी ने कहा कि 'मैंने पहले भी कहा था कि कोविड के दौरान सरकार की लापरवाही के कारण पांच लाख नहीं, बल्कि 40 लाख भारतीयों की मौत हुई है.अपनी जिम्मेदारी निभाएं, मोदी जी हर (कोविड) पीड़ित परिवार को चार-चार लाख रुपए का मुआवजा दें."


लेकिन हैरानी इस बात की है कि गुजरात दौरे पर आए (डब्ल्यूएचओ) के महासचिव डॉ टेड्रोस अधनोम को खुद पीएम मोदी ने ही एक नया गुजराती नाम दिया था.तब मोदी ने उनके नए नामकरण करने की वजह भी बताई थी. गुजरात के महात्मा मंदिर में तीन दिवसीय वैश्विक आयुष निवेश और नवाचार सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर लोगों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था- “डब्ल्यूएचओ के हमारे डायरेक्टर जनरल मेरे बहुत अच्छे मित्र रहे हैं और वह जब भी मिलते थे तो एक बात अवश्य कहते थे कि मोदी जी मैं जो कुछ भी हूं भारतीय गुरुओं की वजह से हूं, जिन्होंने मुझे बचपन में पढ़ाया. वह कहते हैं कि मेरे जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव पर भारतीय टीचर्स का बहुत प्रभाव पड़ा और मुझे बहुत गर्व है भारत से जुड़ने में. आज जब सुबह मुझसे मिले तो बोले अब मैं पक्का गुजराती हो गया हूं.”


तब प्रधानमंत्री ने पूरे वाकये का खुलासा करते हुए  कहा था कि “उन्होंने मुझे कहा कि मेरा नाम गुजराती रख दो. तो मैं आज महात्मा गांधी की पवित्र भूमि पर मेरे इस परम मित्र को 'तुलसी भाई' के नाम से पुकारता हूं,” तो अब सवाल ये उठता है कि इन 'तुलसी भाई' ने अपनी दोस्ती निभाई है या किसी बड़े दबाव में आकर गलत आंकड़ें पेश करने की मजबूरी जताई है?



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