पाकिस्तान में 8 फरवरी को चुनाव हुआ. चुनाव के बाद 9 फरवरी से नतीजे आने शुरू हुए हैं, लेकिन अभी तक तस्वीर स्पष्ट नहीं है. हालांकि, पाकिस्तान के कार्यवाहक पीएम अनवर उल हक काकड़ ने उम्मीद जताई है कि पाकिस्तान में गठबधन की सरकार बन सकती है. पाकिस्तानी मीडिया द डॉन के मुताबिक राजनीतिक दलों के बीच बातचीत के बाद ये हो सकता है. पाकिस्तान में कोई भी पार्टी स्वतंत्र रूप से सरकार बनाने के लिए तैयार नहीं है. एक गठबंधन की आशा पाकिस्तान में की जा रही है. वहीं, 26 सीटों पर पुनर्मतदान होगा. हालांकि, कई विशेषज्ञों ने कहा है कि इस बार के चुनाव सर्वाधिक और अप्रत्याशित है, साथ ही नतीजे भी अप्रत्याशित हैं. कुछ काम इस चुनाव में अनूठे हुए हैं. इमरान खान जेल में बंद है लेकिन उनकी पार्टी पीटीआई के कैंडिडेट स्वतंत्र रुप से चुनाव लड़े और जीते भी. इसकी पूरी आशा है कि नवाज शरीफ पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बन सकते है. 

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बनेगी नवाज शरीफ की सरकार 

अभी की जो स्थिति है, पाकिस्तान में 266 सीटों में से 244 के नतीजे आ चुके हैं. पाकिस्तान की तहरीके इंसाफ पार्टी के समर्थित निर्दलीयों ने 83 सीटें सीटें जीती हैं और पाकिस्तान मुस्लिम लीग, नवाज शरीफ की पार्टी ने 71 सीट जीती है. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने 53 और अन्य ने 27 सीटें जीती हैं. पाकिस्तान के चुनावी आंकड़ों से स्पष्ट है कि नवाज शरीफ की अगुआई में ही वहां सरकार बनेगी. देखा जाए तो पाकिस्तान सेना के लिए बहुत अच्छे दिन नहीं चल रहे हैं. अगर लोकशाही की मंशा के साथ चुनाव को देखा जाए कि जनता ने वोट किया, स्वाधीनता से वोट दिया और निर्दलीयों को पीटीआई ने सहयोग दिया और वो जीते हैं तो यह एक तरह से आर्मी की हार है. शुरू से हम देख रहे हैं कि इमरान खान की लोकप्रियता बहुत ज्यादा रही है और पाकिस्तानी सेना चीफ आसिफ मुनीर के रिश्ते इमरान खान के साथ अच्छे नहीं रहे हैं. उन्हीं रिश्तों के चलते यह पूरी बिसात बिछाई गई.

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नवाज शरीफ को लाया गया, नवाज शरीफ को लड़ाया गया और उनकी पार्टी काफी सीटें जीत रही है. चुनाव आयोग ने ऐसा दिखाया है, अगर ये नवाज शरीफ का एकदम क्लियर स्वीप होता तो लोग चुनाव आयोग की जिम्मेदारी पर प्रश्न करते कि यह तो सब कुछ पहले से तय था, तो यह एक मैसेज देना था कि देखिए उन लोगों ने स्वाधीन और स्वच्छ चुनाव करवाया है. सेना भी नहीं चाह रही थी कि किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत आ जाए ताकि फिर उनके लिए दिक्कत हो जाए. यह चुनाव पूरी तरह से प्लान करके कराया गया है. सेना जैसा चाहती थी, वैसे हो रहा है, वैसे ही परिणाम निकलने जा रहे हैं, गठबंधन की सरकार बनेगी और एक तरह से कठपुतली सरकार रहेगी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज शरीफ आगे रहेंगे, प्रधानमंत्री बनेंगे. इसमें मुख्य कर्ताधर्ता पाकिस्तानी सेना होगी.

भारत-पाकिस्तान के रिश्ते 

डॉन न्यूज पेपर की रिपोर्ट में लिखा गया है कि अमेरिका का भी चुनाव में दखल रहा है और जब से इमरान खान ने अमेरिका के खिलाफ बयान दिया था, तब से अमेरिका भी इमरान खान के पक्ष में नहीं रहा. अगर पाकिस्तान में इस समय आंतरिक व्यवस्था को देखा जाए तो पाकिस्तान इस समय बहुत ही समस्याओं से गुजर रहा है. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खराब है और वो हर क्षेत्र, हर चीजों को प्रभावित कर रहा है. यदि आपकी अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं है तो कोई औद्योगिक विकास नहीं होगा, कोई आपके यहां निवेश नहीं करेगा. दूसरी बात यह कि तालिबान बगल में अफगानिस्तान से भी पूरी तरह से आंखें दिखा रहा है, खैबर पख्तून रीजन पर पूरी तरह से तहरीके तालिबान पाकिस्तान हमला कर रहा है, वो पूरी तरह से पाकिस्तान के उस प्रांत को लेने के लिए प्रयास कर रहा है.

तीसरी समस्या ईरान की है. उसने सीमाई इलाकों में हमला किया है. चौथा, भारत को देखा जाए तो भारत- पाकिस्तान के रिश्ते जगजाहिर है. पाकिस्तान में आंतरिक संकट पूरी तरह से असफल है. आंतरिक संघर्ष बहुत ज्यादा चल रहा है. ऐसी परिस्थितियों में चीन के संदर्भ में पाकिस्तान को अमेरिका का समर्थन चाहिए और अमेरिका को भी पाकिस्तान का सपोर्ट चाहिए. क्योंकि विगत पांच-सात सालों में यूएस की ताकत पाकिस्तान में कमजोर हुई है और चीन का हस्तक्षेप ज्यादा बढ़ा है.

अमेरिका का साथ पाकिस्तान के लिए जरूरी

पाकिस्तान का 31 मार्च 2024 को इंटरनेशनल बेलआउट पैकेज खत्म हो रहा है, जो उसने आईएमएफ से लिया. अगर पाकिस्तान को पैसा चाहिए आईएमएफ से तो अमेरिका का सपोर्ट जरूरी है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में एसडीआर का यानी स्पेशल ड्राइंग राइट्स का कानून है, उसमें 85 प्रतिशत वोटिंग सपोर्ट चाहिए. यदि अमेरिका ने समर्थन नहीं किया तो पाकिस्तान को 1 रुपये भी नहीं मिलने वाला है. इन सब के चलते स्थितियां बदल रही है. चीन का हस्तक्षेप बढ़ चुका है, बलूचिस्तान में आग भड़की है वह एक तरह से यह कहा जाए की चीनियों के खिलाफ है तो गलत नहीं होगा, क्योंकि वहां चीन ने उपनिवेश बसा दिया है.वहां के स्थानीय लोगों को कुछ नहीं मिला है. यदि नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत के साथ रिश्ता थोड़ा पॉजिटिव हो सकता है. अटल बिहारी वाजपेयी के समय का दौर रहा हो, लाहौर बस यात्रा रही हो, नरेंद्र मोदी के समय भी जब शपथ-ग्रहण हुआ तो उनको बुलाया गया था. हालांकि, यह तय इससे होगा कि पाक सेना क्या चाहती है? पाकिस्तान की सेना थोड़ी कमजोर हुई है, उसको आंतरिक विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है जनता का, अगर नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बनते हैं तो सेना उनको समर्थन देगी और नवाज शरीफ भारत के साथ रिश्ते सुधारने का प्रयास कर सकते हैं. अब भारत को यह देखना होगा कि किस स्तर पर बात करना है. क्योंकि अभी पाकिस्तान का स्टैंड देखें तो वो ये अभी भी कश्मीर का राग आलाप ही रहे हैं. भारत का स्टैंड एकदम साफ है कि हम आतंक के साथ वार्ता नहीं कर सकते हैं. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]