India Defence Infrastructure: चीन की नापाक चालों का जवाब देने के लिए भारत ने सीमावर्ती इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर (Defence Infrastructure) का जो जाल बिछाया है, वह सामरिक लिहाज से तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन इससे हमारी सैन्य ताकत में भी और इजाफा होगा. पूर्वी लद्दाख में पिछले महीने से चले आ रहे सीमा विवाद के बावजूद रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन के किसी भी उकसावे का जवाब देने के लिए हमारी सेना अब पहले से दोगुनी ताकत से तैयार है. वैसे भी सेना की ताकत बढ़ाने में इंफ्रास्ट्रक्चर की भी अहम भूमिका होती है, क्योंकि दुर्गम इलाकों में पुल और सड़कें बन जाने से दुश्मन के किसी भी संभावित हमले से निपटना आसान हो जाता है. वैसे भी डोकलाम में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद से ही सेना और रक्षा विशेषज्ञों ने सरकार को यह सलाह दी थी कि चीन से सटे सभी सीमावर्ती इलाकों में हमें अपना इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने में तेजी लाना होगी.


इसकी बड़ी वजह भी थी कि डोकलाम से सटे भूटान (Bhutan) में चीन ने अपने तकरीबन छह सौ ऐसे गांव बसा लिए हैं, जो तमाम आधुनिक सैन्य सुविधाओं से लैस हैं. उसी कड़ी में भारत ने डोकलाम के निकट सिक्किम से सटे विवादित इलाके में बेहद कम वक्त में ही आधुनिक संसाधन तैयार करने में कामयाबी हासिल की है. भारत ने पूर्वी सिक्किम में डोकला रोड (Dokla Road) पर एक नया ब्रिज तैयार किया है, जिस पर टैंक भी आसानी से दौड़ सकते हैं. फ्लैग हिल-डोकला रोड पर बना ये स्वदेशी पुल बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन यानी (BRO) के उन 24 ब्रिज में शामिल है, जिनका ई-उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को किया है. इनमें से 16 ब्रिज चीन की सीमा से सटे इलाकों में ही है. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन के तेवरों को देखते हुए भारत अपनी रक्षा तैयारियों के प्रति पहले से बहुत ज्यादा चिंतित और गंभीर हुआ है.


खास बात ये है कि 140 फीट डबल लेन वाला यह मॉड्यूलर क्लास-70 ब्रिज 11,000 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है, जिसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है. यही वजह है कि रक्षा मंत्री राजनाथ ने बीआरओ की तारीफ करते हुए कहा कि "पहले इस तरह के मॉड्यूलर ब्रिज बनाने के लिए भारत को दूसरे देशों से मदद लेनी पड़ती थी. इसके अलग-अलग हिस्से बाहर से आयात करने पड़ते थे. आज हम इसके निर्माण में आत्मनिर्भर हो चुके हैं. बीआरओ ने इस ब्रिज को जीआरएसई कंपनी के साथ मिलकर तैयार किया है. क्लास-70 ब्रिज पर टैंक और बीपीएम व्हीकल आसानी से पार कराए जा सकते हैं."


वैसे सच तो ये है कि भारत और चीन की सेनाएं करीब 20 महीने से एलएसी पर एक-दूसरे के सामने तैनात हैं. पूर्वी लद्दाख अकेला इलाका नहीं है, जहां चीन ने घुसपैठ की कोशिश की हो. इससे पहले चीन यही डोकलाम में भी कर चुका है और अरुणाचल प्रदेश, सिलीगुड़ी कॉरिडोर जैसे इलाकों पर भी वह अपनी नजरें गड़ाए हुए है. साल 2020 में चीन और भारतीय  सेना गलवान घाटी में एक-दूसरे से भिड़ गई थीं. उस  हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए और चीन के भी कई सैनिक मारे गए थे. उसके बाद से ही तनाव चरम पर पहुंच गया और चीन को लेकर भारत ने नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार की.


सवाल यह है कि क्या चीन को टक्कर देने के लिए भारत सही रास्ते पर है? कुछ दिन पहले एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डी. एस. हूडा ने इसका जवाब दिया है. उनके मुताबिक इसका जवाब देने के लिए हमें भारत की ओर से उठाए गए कदमों को देखना होगा. चाहें वह लद्दाख पर जारी मौजूदा तनाव को लेकर हो या चीन के दीर्घकालिक खतरे से निपटने के लिए रणनीति तैयार करना हो. यह स्वीकार करना होगा कि पिछले साल पीएलए (People's Liberation Army) के निर्माण और बड़ी संख्या में घुसपैठ ने भारतीय सेना को चौंका दिया था. शुरुआत में इन गतिविधियों को नजरअंदाज करने के प्रयास किए गए और उम्मीद जताई गई कि इस संकट को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा लिया जाएगा. हालांकि यह उम्मीद जून 2020 की गलवान हिंसा में बुरी तरह टूट गई और 1975 के बाद से पहली बार एलएसी पर किसी सैनिक ने जान गंवाई.


पिछले डेढ़ साल में एलएसी पर मजबूत हुई भारतीय सेना ने इसका मजबूती और दृढ़ता से जवाब दिया, चाहे वह सैन्य रूप से हो या रणनीतिक रूप से. बीते डेढ़ साल में भारतीय सेना ने अपनी रक्षात्मक ताकत को मजबूत किया है और तिब्बत में पीएलए की तैनाती की बराबरी की है. एलएसी पर इन्फ्रास्ट्रक्चर और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस को बेहतर करने के लिए उचित कदम उठाए गए हैं. आक्रामक वाहिनी सहित बड़ी सेना को पाकिस्तान के मोर्चे से उत्तरी सीमा की ओर फिर से तैनात कर दिया गया है.


हमें ये भी ख्याल रखना होगा कि सैन्य उपस्थिति के साथ ही रणनीति भी जरूरी है. एलएसी पर प्रबंधन रणनीति को सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. जबकि सीमा की रक्षा, नागरिक बस्तियों, चराई के अधिकार और भारत के सीमा दावों को मजबूत करने के लिए सैन्य उपस्थिति भी आवश्यक है. चीन पहले से ही एलएसी और भूटान के साथ सीमा पर 600 से अधिक 'ज़ियाओकांग सीमा रक्षा गांवों' के निर्माण में ऐसी रणनीति अपना रहा है. फिर भी भारत मौजूदा हालात में एलएसी पर चीन के किसी भी तत्काल उकसावे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है. उसे अब चीन की बढ़ती ताकत से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति तैयार करनी होगी.


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