हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें..


हिंदी एक पेड़ या दरख़्त की तरह है. हिंदी के शब्द इस पेड़ के फल, फूल और पत्तियाँ हैं. जैसे हर एक फल, फूल और पत्तियों से एक पेड़ समृद्ध होता है, हरा-भरा दिखता है..ठीक वैसे ही शब्दों से हिंदी की कांति सुनिश्चित होती है. जैसे पेड़ में हर फल, फूल या पत्तियां एक समान नहीं होती हैं, वैसे ही हर शब्द एकसमान नहीं होते हैं. फल का आकार अलग-अलग होता है, उसके बावजूद हर फल पेड़ का ही हिस्सा होता है.


हम हिंदी में जो भी लिखते हैं, वो शब्दों का गुच्छा होता है. ये भी एक फल ही है. जैसे हर फल एक समान नहीं होता है, फिर भी पेड़ का अभिन्न भाग होता है, ठीक वैसे ही हम हिंदी में जो भी लिखते हैं, वो हिंदी रूपी पेड़ का भाग है. कोई फल बड़ा होता है, कोई छोटा..कोई फल ज़्यादा आकर्षक होता है, तो किसी की रंगत थोड़ी फीकी होती है. किसी का ज़ाइक़ा जिह्वा को ज़्यादा  लुभाता है, तो किसी का कम. ग़ौरतलब है.. हर फल उसी पेड़ का हिस्सा है, उसी तरह से हम सब जो भी लिखते हैं, वो फल की तरह ही है, कोई ज़्यादा मनभावक होता है, कोई थोड़ा कम..लेकिन है हिंदी का ही अंश.


कई दिनों से यह बात मेरे मन मस्तिष्क में घुमड़ रही थी. ध्यान देने योग्य या जो विचारणीय पहलू है, वो यह है कि फल चाहे कोई भी हो, वो फल ही रहना चाहिए.. अगर हम आम के पेड़ में आम की जगह अमरूद फल की कल्पना करें, तो यह आम के पेड़ के अस्तित्व के लिए सही नहीं है. उसी तरह से जब हम हिंदी के किसी शब्द को कलमबद्ध करते हैं, तो हमारा यह सर्वोपरि कर्तव्य है कि वो जैसा है, वैसा ही रहे..या'नी उसका आकार हम न बदल दें. यहां शब्दों के आकार से तात्पर्य शब्दों की वर्तनी से है. हम कुछ भी लिखें, हमारा सबसे ज़्यादा ज़ोर इस बात पर होना चाहिए कि उस शब्द की वर्तनी सही हो.


कहने को हम सब हिंदी-हिंदी करते रहते हैं. देश की एक बड़ी आबादी की मातृभाषा भी हिंदी ही है. हमारे संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के मुताबिक़ हिंदी हमारे देश की राजभाषा है. उसके बावजूद वर्तनी पर आम लोगों का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहता है. आम लोग ही नहीं इस दिशा में साहित्यानुरागी होने का दावा करने वाले लोग भी उतने सजग नहीं दिखते हैं.



जो लोग साहित्यानुरागी हैं या होने का दावा करते हैं, उनकी इस दिशा में जिम्मेदारी ज़्यादा  बनती है. जो लोग कविता, कहानी, उपन्यास, आलेख या आलोचना लिखते हैं या लिखती हैं....वर्तनी सही हो..इस दिशा में..उनकी जिम्मेदारी आम लोगों की तुलना में ज़्यादा  है. इसका कारण यह है कि आम लोग आपका अनुसरण करते हैं, चाहे हो या ज़्यादा  ..अनुसरणनिःसंदेह करते हैं. आप जो भी लिखते हैं, कुछ न कुछ लोग उसकी कॉपी ज़रूर करते हैं. इस वज्ह से आपका यह कर्तव्य बनता है कि शब्दों की वर्तनी सही हो, यथोचित रूप में हो.



खूब लिखिए..कुछ भी लिखिए..जमकर लिखिए. आप का लिखा.. एक-एक हर्फ़.. हिंदी रूपी पेड़ का फल है..हो सकता है वो श्रेष्ठ हो, बहुत अच्छा हो या फिर कमतर हो..लेकिन याद रखें, वो हिंदी का फल ही है. आपके उस फल से पेड़ का आकार या फ़लक विस्तृत ही होता है..लेकिन इसका ध्यान ज़रूर रखें कि आम के पेड़ में आम ही हो, अमरूद नहीं..


सही मायने में अगर हम हिंदी के प्रति प्रेम या अनुराग रखते हैं तो लिखते वक्त वर्तनी पर ध्यान देकर ही इसकी सच्ची पूजा या अर्चना कर सकते हैं. पहले के मुक़ाबले आजकल तो वर्तनी सही रखना ज़्यादा सरल है. अब हर हाथ में शब्दकोश या'नी डिक्शनरी है और यह मोबाइल फ़ोन से संभव हो पाया है. बस थोड़ा सा समय देना है, जो लिख रहे हैं..अगर मन में कुछ खटके तो चेक कर लेना है. अगर हम ऐसा कर पाते हैं, तो हिंदी को हम सही मायने में कुछ दे सकते हैं.


एक और बात... आजकल भाषाओं के बीच मेलजोल बढ़ रहा है. हिंदी में अरबी, फ़ारसी शब्दों का बहुतायत से प्रयोग हो रहा है. इसमें कोई बुराई नहीं है. इससे हर भाषा समृद्ध ही होती है. उस भाषा के साहित्य को नया आयाम ही मिलता है. उसके फ़लक में विस्तार ही होता है. लेकिन अरबी या फ़ारसी शब्दों के प्रयोग में भी हमें वर्तनी का ख़ास ख़याल रखने की ज़रूरत है. आजकल लोग बिना सोचे समझे..धड़ल्ले से इन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं.. उसकी वर्तनी की जांच किए बिना. कहीं सुन लिया और किसी तरह से अर्थ जान लिया..बस फिर लिखने में प्रयोग शुरू कर दिया. यह प्रवृत्ति अच्छी है, अगर हम उन शब्दों की सही-सही वर्तनी एक बार जान लें. बिना इसके अगर हम इन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है.


उदाहरण के तौर पर.. जिन्ना और ज़िना ...के बीच फ़र्क़ पर ग़ौर करें. जिन्ना का अर्थ ..जिनों का समूह या परियां..है. वहीं ज़िना का अर्थ व्यभिचार है. हालाँकि दोनों के बीच अर्थ के फ़र्क़ को नहीं जानने के कारण बहुत लोग इन दोनों शब्दों का प्रयोग पर्यायवाची के तौर पर कर देते हैं. अनजाने वे अर्थ का अनर्थ कर देते हैं. हिंदी लिखते वक्त जब भी अरबी या फ़ारसी शब्दों का प्रयोग कर रहे हों, तो उन शब्दों की सही वर्तनी भी जानने का प्रयास ज़रूर करें.. कहीं लिखा है, इसलिए लिख दिया..इस भाव से शब्दों का प्रयोग करके हम सिर्फ़ और सिर्फ़ हिंदी का ही नुक़सान कर रहे हैं.


कोई भी चीज़ हमेशा निर्दोष नहीं हो सकती है, लेकिन प्रयास करते रहें. हिंदी दिवस पर हम सब यह संकल्प लें कि भविष्य में जो भी लिखेंगे..कोशिश रहनी चाहिए...वर्तनी के तौर पर वो सही हो. यह एक दिन में नहीं होगा..धीरे-धीरे प्रयास करते रहने से ही सही वर्तनी हम सब की आदत बन जाएगी. याद रखें.. हिंदी को सही वर्तनी का श्रृंगार चाहिए..तभी आने वाली पीढ़ियों को हम एक समृद्ध विरासत दे सकते हैं. यह सबकी जिम्मेदारी है..ख़ासकर लिखने वालों की ज्यादा..साहित्यानुरागी तो कम से कम ज़रूर इस दिशा में विशेष ध्यान रखें.


जय हिंद, जय हिंदी, जय भारत.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]