शाही शराब, रजवाड़ी शराब, हैरिटेज लिक्योर नाम कुछ भी दे दीजिए राजा रजवाड़ों के राजस्थान में किलों, रेत के टीलों, महलों, झीलों, टाइगर, काले हिरणों की तरह ही रजवाड़ी शराब भी टूरिज्म का ही एक हिस्सा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि खुद राजस्थान की सरकार छह तरह की शाही शराब का उत्पादन करके उसे बेचने का काम भी करती है. इसमें जगमोहन, केसर कस्तूरी, चन्द्रहास, सौंफ, इलायची, गुलाब नाम की रजवाड़ी शराब शामिल है. इसे हेरिटेज लिक्योर के नाम पर बनाया और बेचा जाता है.  राजस्थान में मुख्यमंत्री रहते हुए वसुंधरा राजे सिंधिया ने सरकारी प्रतिष्ठान गंगानगर शुगर मिल्स को शाही शराब बनाने का प्रस्ताव किया था. बाद में अशोक गहलोत आए तो गांधीवादी नेता ने पहले तो ना नकुर की, लेकिन चूंकि शाही शराब को पर्यटन से जोड़ा गया था, लिहाजा उन्होंने भी इसे जारी रखा.


वैसे शाही शराब निजी ठिकानेदारों या रियासतकालीन ठाकुरों ने बनानी शुरु की थी. झुंझुनूं के महनसर के ठाकुर दुर्जनसिंह ने तो 1890 में ही शाही शराब का व्यवसायिक उत्पादन शुरु कर दिया था. उस समय यूरोप के देशों में भी शाही शराब का उत्पादन हुआ करता था. कहा जाता है कि चांद पर सबसे पहले कदम रखने वाले नील आमर्स स्ट्रांग जब जयपुर आए थे तब उन्होंने केसर कस्तूरी का स्वाद चखा था और पसंद किया था. जेम्स बांड सीरीज की एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले उदयपुर आने पर रोजर मूर को भी रजवाड़ी शराब परोसी गयी थी. उन्होंने इसकी तुलना यूरोप की शाही शराब से की थी. 


शाही शराब यहां बनती है?
फिलहाल गंगानगर शुगर मिल्स के अलावा महनसर घराना महनसर सौंफ, महनसर पुदीना, महनसर गुलाब, महनसर सोमरस का बाकायदा उत्पादन करते हैं. यह शाही शराब राज्य सरकार के सभी नियमों और मापदंडो को ध्यान में रखकर बनाई जाती है. महनसर कंपनी के सुरेन्द्र सिंह शेखावत का कहना है कि फिलहाल छह तरह की शाही शराब बनाई जा रही है और अगर राज्य सरकार रियायतें दे तो करीब दो दर्जन तरह की शाही शराब बनाई जा सकती है. उनके पिता राजेन्द्र सिंह शेखावत ने महनसर रजवाड़ी शराब का उत्पादन शुरू किया था और उनका कहना कि अभी राज्य सरकार शाही शराब के हर लेबल ( हर रेसिपी ) पर सालाना दो लाख रुपये से ज्यादा की लाइसेंस फीस लेती है, जबकि विदेशों में वहां की सरकारें लेबल फीस नहीं लेती है. ऐसा ही राजस्थान सरकार को भी करना चाहिए है.. 


माना जाता है कि महनसर घराने के पास शाही शराब की 150 से ज्यादा रेसिपी हैं. मैंने खुद करीब बीस साल पहले महनसर में जाकर आधा घंटे की फिल्म शाही शराब पर बनाई थी. तब सुरेन्द्र सिंह के दादा जगमाल सिंह ने हमें पुरानी पोथी दिखाई थी जिसमें कि शराब की तीन सौ से ज्यादा फार्मूले लिखे हुए थे.


रजवाड़ी शराब कब पी जाती है?
रजवाड़ी शराब मौसम के हिसाब से पी जाती थी. गर्मियों में सौंफ के साथ गुलाब, पोदीना पिया जाता था. बारिश में इलायची और सर्दियों में जगमोहन, केसर कस्तूरी, चन्द्रहास काम आती थी. चन्द्रहास तो इस कदर स्ट्रांग होती थी कि इसके दो घूंट पीने पर मरने वाला भी कुछ घंटों के लिए जी लिया करता था. कहा जाता है कि अगर कोई राजा मरने से पहले जायदाद का बंटवारा नहीं करता था तो राजा को चन्द्रहास पिला दी जाती थी, ताकि वसीयत लिखने का समय मिल जाए. घुटनों का दर्द दूर करने के लिए ग्वारपाठे की शराब होती थी. मस्तिष्क को तेज करने के लिए अलग शराब होती थी. यौन सुख को बढ़ाने के लिए भी शाही शराब हुआ करती थी. 


धौलपुर की तरफ चर्चित सिलाई वाली शराब चर्चित इतनी गाढ़ी हुआ करती थी कि एक पानी से भरे ग्लास में शराब से निकाली गयी सिलाई डाल दी जाती थी. कहा जाता है कि एक बोतल ही पूरी बारात के लिए काफी थी. पहले की शाही शराब में शराब की मात्रा नब्बे फीसदी तक होती थी, लेकिन भारत सरकार के पचास के दश्क में आई नई आबकारी नीति में अधिकतम मात्रा 42.5 प्रतिशत कर दी गयी. यह शाही शराब पर लागू होने से इस शराब ने अपना विशेष आकर्षण खो दिया. इसके बाद लंबे समय तक शाही शराब अधिकृत रुप से बननी बंद हो गयी. वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री रहते हुए रजवाड़ी शराब के उत्पादन की अनुमति दी .


महनसर ठिकाने के सुरेन्द्र सिंह का कहना है कि राजस्थान सरकार को शाही शराब को टूरिज्म से जोड़ना चाहिए. पर्यटन विकास निगम को अपने सेमिनार, कार्यक्रम, ब्रोशर, विज्ञापन आदि में रजवाड़ी शराब को शरीक करना चाहिए है. शाही रेल ( पैलेस ऑन व्हील्स ) चलती है, लेकिन उसमें शाही शराब परोसी नहीं जाती, जबकि यूरोप अमेरिका आदि देशों के सैलानी इस तरह की शराब की खास तौर से मांग करते हैं. जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह ने पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष पद पर रहते हुए हैरिटेज होटलों से लेकर हैरिटेज शराब को बढ़ावा देने का काम किया था. उनका मानना है कि शाही शराब क्योंकि लिकर न होकर लिक्योर की श्रेणी में आती है लिहाजा इसके उत्पादन, वितरण आदि में खास रियायतें देने की जरूरत है.


जयपुर राजघराने से जुड़े नरेन्द्र सिंह का भी कहना है कि उनके सिटी पैलेस संग्रहालय में आने वाले सैलानी आमतौर पर रजवाड़ी शराब के बारे में पूछते हैं, लेकिन उनके पास ढंग का कोई ब्रोशर तक नहीं रहता. ऐसे में अगर शाही या रजवाड़ी शराब के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता तो राजस्थान में इससे पर्यटन बढ़ेगा और रोजगार भी मिलेगा.


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