झारखंड में वैसे तो ठंड का मौसम है, लेकिन सियासी तपिश बढ़ गयी है. ईडी ने सातवां समन हेमंत सोरेन को तो भेजा ही है, उनके करीबियों पर ताबड़तोड़ छापे भी मारे जा रहे हैं, जिनमें उनके मीडिया सलाहकार भी हैं.  सियासी गरमाहट और तल्खी तो झारखंड में काफी दिख रही है. ईडी ने अपने सातवें समन में हेमंत सोरेन से यही कहा था कि रांची में जो जमीन घोटाला का मामला है, उसमें उनसे पूछताछ होनी है, तो वो अपनी सहूलियत के हिसाब से समय बता दें. ईडी ने इसके लिए हेमंत को अपनी पसंद की जगह भी बताने को कहा था, जो उन्होंने दो दिनों में नहीं बतायी.


हेमंत सोरेन ने हालांकि समन का जवाब तो भेजा है लेकिन उन्होंने उन पर लगे आरोप पूछे हैं. उनका कहना है कि बार-बार जो उनको समन भेजा जा रहा है, वह तो एक तरह का 'मीडिया-ट्रायल' है. अब देखनेवाली बात तो यह होगी कि ईडी के सातवें समन की मियाद दो दिनों में खत्म हो जाएगी और उसके बाद ईडी का क्या रुख रहता है, हेमंत सोरेन क्या रुख अपनाते हैं, यह देखनेवाली बात होगी. मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के साथ कई अधिकारियों और व्यापारियों पर छापे चल रहे हैं, तो नतीजा तो अभी कुछ दिनों के बाद ही सामने आएगा, क्योंकि देखना होगा कि छापों में क्या निकलता है, ईडी का क्या रुख रहता है और हेमंंत सोरेन क्या करते हैं? 



ईडी का समन और छापे


जहां तक राजनीतिक तपिश की बात है कि गांडेय विधानसभा सीट से सरफराज अहमद ने सीट क्यों छोड़ दी है, हालांकि उन्होंने यह बयान दिया है कि यह उनका निजी फैसला है और पार्टी के लिए यह कदम उन्होंने उठाया है. झारखंड में अब 11-12 महीने ही विधानसभा चुनाव को बचे हैं, तो तब कोई विधायक भला सीट क्यों छोड़ेगा, इसको देखकर यह तो लगता है कि कुछ तो मामला है. इसको थोड़ी तपिश और इसलिए भी मिलती है क्योंकि आज ही यानी बुधवार 3 जनवरी को हेमंत सोरेन ने अपने विधायकों की एक बैठक बुलाई है, जिसमें वह शायद यह प्रस्ताव रख सकते हैं कि मौजूदा स्थिति में उनकी पत्नी को कमान सौंप दी जाए. वह पूछ सकते हैं अपने विधायकों-मंत्रियों से कि क्या करना चाहिए और फिर कल्पना सोरेन का नाम प्रस्तावित कर सकते हैं. 


इंडिया गठबंधन से बहुत प्रेम नहीं 


हेमंत सोरेन का एक बयान अभी कुछ दिनों पहले आया भी था और उनका वह बयान इसी संदर्भ में था कि वह अभी इंडिया गठबंधन को लेकर बहुत उत्सुक हैं. उन्होंने कहा था कि इस गठबंधन में अभी पीएम के चेहरे की जरूरत नहीं है और अभी 19 दिसंबर को जो गठबंधन की बैठक हुई थी, उसमें हेमंत सोरेन ने अपने व्यस्त कार्यक्रमों का हवाला दिया था. वहां महुआ माझी को भेज दिया था. हेमंत सोरेन अभी अपनी स्थिरता चाहते हैं, क्योंकि सारा तानाबाना ईडी के समन पर टिका हुआ है. अगस्त 2023 से ईडी उनको समन भेज रहा है.


बहुत कुछ अभी अगले एकाध दिनों में तय हो जाएगा. हेमंत अपने लोगों से सलाह ले सकते हैं, कल्पना के बारे में फिलहाल उन्होंने बयान दे दिया है कि उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं है और फिलहाल उनका पूरा ध्यान तो खुद को बचाने पर है. अब ये बैठक जैसे सरफराज अहमद के इस्तीफे और ईडी के समन और छापों के बीच बुलाई गयी है, तो कहीं न कहीं हेमंत सोरेन संकट में तो हैं, वह चाह रहे हैं कि किसी बड़ी मुश्किल में फंसने से पहले वह ये पूछ सकते हैं कि अब क्या किया जाए? ऐसे में यह भी हो सकता है कि मामला शिबू सोरेन के पाले में चला जाए, वह अपने स्वास्थ्य की वजह से भले ही बहुत नहीं निकलते हैं दौरों पर लेकिन राज्य भर में उनकी हनक तो बनी हुई ही है. यह सरकार वैसे भी गठबंधन की है और इसमें कांग्रेस जो साझीदार है, उसके प्रभारी मीर साहब रांची दौरे पर हैं और विधायकों के साथ मीटिंग कर रहे हैं. राजद भी उनकी साझीदार है. ये दोनों उनके किसी फैसले के खिलाफ जाएंगे, इसकी संभावना नहीं है. 


तीन चीजें काफी महत्वपूर्ण हैं. पहला तो ईडी का रुख, दूसरा हेमंत सोरेन क्या फैसला लेते हैं और तीसरा मसला ये है कि आज की छापेमारी के बाद ईडी किस दिशा में बढ़ता है, यह भी देखने की बात होगी. जहां तक लोकसभा चुनाव की बात है और अगर एक कयास लगाएं कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हो जाती है, तो वह बहुत दूर की कौड़ी है. सोरेन अगर किसी और को अपनी जगह बिठाते हैं, तो पहला झटका यही होगा कि कुर्सी उनकी जाएगी. आगे जो गिरफ्तारी की बात है, वह तुरंत की बात तो है नहीं. अगर यह हुआ तो झामुमो को धक्का तो लगेगा. इससे लोकसभा चुनाव में भी असर तो पड़ेगा ही. आदिवासी इलाकों में शिबू सोरेन की पकड़ है, लेकिन उनका स्वास्थ्य उनके साथ नहीं है. तो, नतीजा अभी देखने लायक होगा, लेकिन अगर हेमंत सोरेन के साथ कुछ भी गलत हुआ तो झामुमो और साथ ही इंडिया गठबंधन की उम्मीदों को भी पलीता तो लगेगा ही. 


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