ये कहना शायद गलत नहीं होगा कि विपक्ष में आते ही कांग्रेस के रणनीतिकारों के होश कुछ ऐसे पाखता हो जाते हैं कि गुजरात चुनाव को लेकर जो फैसला महीने भर पहले लेना चाहिए था उसे आखिरी वक्त पर लेकर पार्टी ये सोच रही है कि वो सत्ता की दहलीज़ तक पहुंच जायेगी. शायद इसीलिए सियासी पंडित ये मान रहे हैं कि कांग्रेस ने बाजी को अपने हाथ में लेने के मुकाम तक पहुंचने में बहुत देर कर दी है. लिहाज़ा, ऐन वक्त पर फेंका गया उसका ये जातिगत समीकरण वाला राजनीतिक दांव उसकी पिछली सीटों में कुछ इज़ाफ़ा भी कर दे तो ये किसी अचंभे से कम नहीं होगा.


दरअसल, कांग्रेस को जो फैसला गुजरात के चुनाव का ऐलान होते ही ले लेना चाहिए था वो उसने पहले चरण की 89 सीटों पर वोटिंग होने के बाद लिया है जिसे सबसे बड़ी सियासी रणनीतिक चूक माना जा रहा है. इसलिये दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय से लेकर तमाम सियासी गलियारों में अब ये चर्चा आम हो चुकी है कि अहमद पटेल के इस दुनिया से विदा हो जाने के बाद से कांग्रेस रणनीति के लिहाज़ से पूरी तरह से अनाथ व असहाय बन चुकी है.


दूसरे चरण के मतदान से ऐन पहले कांग्रेस ने ये फैसला लिया है कि कांग्रेस अगर गुजरात में चुनाव जीती तो OBC समाज के नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी. बता दें कि  OBC गुजरात में क़रीब 52 प्रतिशत हैं लेकिन पार्टी ने इस प्लान को आगे बढ़ाते हुए ये भी कह दिया है कि सरकार बनने की सूरत में तीन डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे जो 3 अलग-अलग समुदायों के होंगे. पार्टी के प्लान के मुताबिक उसमें एक दलित डिप्टी सीएम, एक आदिवासी डिप्टी सीएम और एक अल्पसंख्यक समाज से डिप्टी सीएम होगा.


सियासी जानकारों के मुताबिक दूसरे चरण की सीटों पर ठाकोर समाज के मतदाताओं का प्रभुत्व है औऱ उनको ही एकजुट करके अपने पाले में लाने के लिए कांग्रेस ने ये रणनीति बनाई है. बताया जा रह है कि CM चेहरे के तौर पर OBC समाज से आने वाले प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर का नाम आगे किया है. दरअसल, कांग्रेस ने एक दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज के व्यक्ति को डिप्टी सीएम बनाने का कार्ड खेलने में इतनी देरी कर दी है कि गुजरात में किसी को भी ये यकीन नहीं हो रहा है कि वो अपने लक्ष्य को छूने से कितनी दूर रहने वाली है. कांग्रेस ने गुजरात में इस बार 125 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. प्रदेश में संगठन की कमान जगदीश ठाकोर के हाथों में है तो वहीं आदिवासी नेता सुखराम राठवा अभी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं.


बता दें कि 1 दिसंबर को पहले चरण की वोटिंग के बाद अहमदाबाद में पार्टी नेताओं की उच्चस्तरीय बैठक हुई थी जिसमें कांग्रेस ने ये फैसला लिया. उस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के अलावा प्रदेश कांग्रेस समिति के नेता और गुजरात के प्रभारी डॉ. रघु शर्मा भी मौजूद थे. पार्टी ने इस फैसले की सूचना राहुल गांधी को देने में भी कोई देर नहीं लगाई. पहले चरण में 89 सीटों के लिए वोट डाले गए हैं और अभी बाकी बची  93 सीटों पर वोटिंग होनी है. लिहाजा, कुछ जानकर मानते हैं कि कांग्रेस का यह फैसला इन सीटों पर बड़ा असर डाल सकता है.


गुजरात में विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 40 सीटें आरक्षित हैं, जबकि 27 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए और 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिये रिजर्व हैं. विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 92 सीटों का है. 2017 के चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी मुश्किल से सरकार बचा पाने में सफल रही थी क्योंकि दो दशक में पहली बार पार्टी की सीटों की संख्या दो अंकों में सिमट गई थी और बीजेपी सिर्फ 99 सीटें जीत पाई थी. कांग्रेस को साल 2017 के चुनाव में 77 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस से गठबंधन करके लड़ी भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) को 2 सीटें मिली और एक सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने जेट दर्ज की थी. तीन सीटों पर निर्दलीय जीते थे जिनमें वडगाम से दलित नेता जिग्नेश मेवाणी का भी एक बड़ा नाम था जो कांग्रेस के समर्थन से जीते थे.


लेकिन गुजरात के इस त्रिकोणीय मुकाबले में अब देखना ये है कि अरविंद केजरीवाल का मुफ्त बिजली-पानी व बेरोजगारी भत्ता देने वाले वादे के लोग मुरीद बनेंगे या कांग्रेस का ये तीन डिप्टी सीएम बनाने का दांव कामयाब होगा या फिर 27 साल बाद भी "मोदी मैजिक" ही चलेगा?


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