गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग आज ख़त्म हो चुकी है. कोई नजूमी भी नहीं बता सकता कि गुरुवार को 89 सीटों पर हुए मतदान में बाजी किसके हाथ लगेगी लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि कांग्रेस ने 2007 के चुनावों में जो गलती की थी, उसे 15 साल बाद फिर से दोहरा कर अपनी स्थिति को खुद ही कमजोर कर लिया है. इसलिये सवाल उठ रहा है कि इस चुनाव में  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना 'रावण' से करके क्या पार्टी की बची-खुची उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है? 


याद दिला दें कि साल 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में दौरान कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को "मौत का सौदागर" का तमगा दे दिया था. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. बताते हैं कि सोनिया का वह भाषण मशहूर शायर, गीतकार और यूपीए सरकार के कार्यकाल में राज्यसभा सदस्य नामित हुए जावेद अख्तर ने लिखा था. लेकिन उस एक खास शब्द को ही मोदी ने कांग्रेस के खिलाफ अपनी ऐसी ताकत बना लिया था कि जीतती हुई बाजी भी उसके हाथ से फिसल गई.


बेशक इस बार गांधी परिवार की तरफ से मोदी को नीचा दिखाने की कोई गलती नहीं हुई लेकिन उस कसर को पार्टी अध्यक्ष खरगे ने पूरा कर दिया. इसलिये कांग्रेस मुख्यालय में भी नेताओं के उतरे हुए चेहरे बताते हैं कि सिर्फ एक 'रावण' शब्द ने ही मोदी के लिए सहानुभूति की लहर को और भी ज्यादा ताकतवर बना दिया है. भले ही वे खुलकर न मानें लेकिन उनका अनुमान भी यही है कि इस बार सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात जैसे मजबूत गढ़ में भी पार्टी अगर अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा ले, तो ये किसी अचंभे से कम नहीं होगा.


दरअसल, अपनी चुनावी जनसभाओं के दौरान मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी की तुलना रावण से करके पूरे सियासी गणित को ऐसा बदलकर रख डाला, जिसका अहसास शायद उन्हें भी नहीं था.गुजरात की सियासी नब्ज़ पर पकड़ रखने वाले जानकार मानते हैं कि खरगे का बयान राजनीतिक लिहाज से बिल्कुल सही था लेकिन उन्होंने 'रावण' शब्द को बीच में लाकर पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.


गौरतलब है कि अहमदाबाद में एक जनसभा के दौरान खड़गे ने कहा था कि, " प्रधानमंत्री बोलते हैं कि कहीं और मत देखो. मोदी को देखकर वोट दो. कितनी बार तुम्हारी सूरत देखें? हमने कॉर्पोरेशन चुनाव में तुम्हारी सूरत देखी. MLA चुनाव में,  MP इलेक्शन में सूरत देखी. हर जगह पर,  क्या रावण की तरह आपके 100 मुख हैं? मुझे समझ नहीं आता."


उसके बाद सूरत की जनसभा में खरगे ने एक कदम और आगे जाकर खुद को अछूत बताते हुए दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश की.लेकिन ये कोई नहीं जानता कि गुजरात के दलितों पर इसका कितना असर हुआ है और वो किस हद तक वोटों में तब्दील होगा. सूरत की सभा में खड़गे ने कहा कि"आपके जैसा आदमी,  जो हमेशा क्लेम करते हैं,  मैं गरीब हूं. अरे भाई,  हम भी गरीब हैं. हम तो गरीब से गरीब हैं. हम तो अछूतों में आते हैं.कम से कम तुम्हारी चाय तो कोई पीता है,  मेरी चाय भी नहीं पीता कोई.और फिर आप बोलते हैं- मैं गरीब हूं.मेरे को किसी ने गालियां दीं,  मेरी तो हैसियत क्या है."


इसीलिये पीएम मोदी ने गुरुवार को एक चुनावी सभा में रावण और हिटलर जैसी तुलना के आरोपों पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी को तो राम सेतु से भी नफरत है. कांग्रेस में पीएम पद को नीचा दिखाने के लिए इस बात पर कंपीटिशन चल रहा है कि कौन सबसे ज्यादा गाली दे सकता है.हालांकि साथ ही उन्होंने ये भी जोड़ दिया कि वह खरगे का सम्मान करते हैं. लेकिन उन्हें पता है कि वह वैसा ही कहेंगे जो उन्हें कहने के लिए कहा गया है. 


कांग्रेस पार्टी को नहीं पता कि यह राम भक्तों का गुजरात है. अगर वे लोकतंत्र में विश्वास करते तो इस स्तर तक कभी नहीं जाते. वे एक परिवार में विश्वास करते हैं. वे उस एक परिवार को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं और वह परिवार उनके लिए सब कुछ है,  लेकिन लोकतंत्र उनके लिए कुछ नहीं है. 


ये रहस्य किसी की समझ मे  नहीं आ रहा कि कांग्रेस गुजरात के हर चुनाव में कोई ऐसा जुमला फेंकने की गलती आखिर क्यों करती है, जो उसके लिए ही भारी पड़ जाता है.पांच साल पहले साल 2017 के चुनाव में भी कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी पर 'नीच' का तंज कसा था. वही बयान कांग्रेस के लिए इतनी बड़ी गलती साबित हुआ था कि तब तमाम सर्वे के नतीजों में सत्ता की चौखट तक पहुंचने वाली कांग्रेस 77 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी.


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