सात साल पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के जरिये रातोंरात गुजरात की राजनीति में बड़ी ताकत बनकर उभरे हार्दिक पटेल को बीजेपी ने अहमदाबाद जिले की वीरमगाम सीट से चुनावी-रण में उतारा है. इसे कांग्रेस का गढ़ समझा जाता है और पिछले दो चुनावों में बीजेपी को यहां हार का मुंह देखना पड़ा है. मुद्दा ये नहीं है कि हार्दिक पटेल अपनी सीट निकाल लेंगे लेकिन बड़ा सवाल ये है कि पांच महीने पहले जिस उम्मीद से बीजेपी ने उनको पार्टी में शामिल किया था उस पाटीदार समुदाय पर उनका करिश्मा दिखता है या नहीं. 


गुजरात की लगभग 70 सीटों पर पाटीदारों का खासा असर है और हार-जीत में उनकी निर्णायक भूमिका रहती है. इसलिये सियासी गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को गरियाते हुए कांग्रेस की मदद करने वाले हार्दिक पटेल पर लोग अब भी उतना ही भरोसा करेंगे कि वे बीजेपी की नैया पार लगाने वाले खेवनहार बन जायें?   


हालांकि ऐसा नहीं है कि 27 साल से गुजरात में राज कर रही बीजेपी को ये अहसास ही न हो कि इस बार आम आदमी पार्टी के आक्रामक प्रचार और उसके वादों की सौगात ने सत्ता विरोधी लहर का असर कुछ तेज कर दिया है. शायद यही वजह है कि 160 उम्मीदवारों की पहली सूची में बीजेपी ने अपने 38 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं.  


दो पूर्व उप मुख्यमंत्री-विजय रुपाणी और नितिन पटेल के साथ ही सरकार के पांच मंत्रियों का भी पत्ता साफ कर दिया गया है. लेकिन इस लिस्ट में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले सात विधायकों को भी टिकट देना,पार्टी की मजबूरी जाहिर करता है. मोरबी के पुल  हादसे में 135 लोगों की मौत तो एक चुनावी मुद्दा है ही लेकिन आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के हर महीने 300 यूनिट फ्री बिजली और बेराजगार युवाओं को प्रतिमाह 3 हजार रुपये का बेरोजगारी भत्ता दिए जाने के वादे ने भी बीजेपी के लिए इस चुनाव को थोड़ा मुश्किल बना दिया है. 


दरअसल,साल 2015 में हार्दिक पटेल ने आरक्षण की मांग को लेकर जो पाटीदार आंदोलन छेड़ा था,उसकी वजह से बीजेपी को 2017 के विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ा था. यही कारण है कि बीते मई महीने में  गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले हार्दिक पर बड़ा दांव खेलने में बीजेपी ने देर नहीं लगाई और उन्हें जून की शुरुआत में ही पार्टी में शामिल कर लिया. इसमें कोई शक नहीं कि इन सात सालों में हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय के 'पोस्टर बॉय' बन चुके हैं और उनके जरिये ही बीजेपी ने समूचे पाटीदार समुदाय को लुभाने का तीर चलाया है. गुजरात में पाटीदार की आबादी लगभग 1. 5 करोड़  है और 14 प्रतिशत वोटरों के साथ करीब 70 विधानसभा सीटों पर उनका असर है. 


पिछले चुनाव में पाटीदार आंदोलन का ऐसा असर दिखाई दिया था कि बीजेपी ने चुनाव में जीत भले ही दर्ज दर्ज की, लेकिन साल 2012 के चुनावों के मुकाबले पार्टी को 16 सीटें कम मिली और वह सिर्फ 99 सीटों पर ही सिमट कर रह गई.  हार्दिक पटेल ने उस चुनाव में कांग्रेस को अपना समर्थन दिया और कांग्रेस ने पिछली बार के मुकाबले 16 सीटें ज्यादा हासिल करते हुए कुल 77 सीटें जीतीं.  गुजरात में पिछले तीन दशकों में वह कांग्रेस का सबसे अच्छा चुनावी प्रदर्शन था. 
पाटीदार समुदाय के दो वर्ग हैं- लेउवा पटेल और कडवा पटेल. साल 2017 के चुनावों में बीजेपी ने 29 लेउवा पटेल और 23 कडवा पटेल को मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस के पास 26 लेउवा और 21 कडवा उम्मीदवार थे.  सौराष्ट्र  और कच्छ की कुल 54 सीटों में से, कांग्रेस ने  2017 में 30 सीटें जीती थीं,जो कि
2012 के मुकाबले 14 अधिक थी. 


नाता दें कि पाटीदार आंदोलन के वक्त हार्दिक पटेल ने कहा था कि वो राजनीति में कभी कदम नहीं रखेंगे.  लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने बिना कांग्रेस में शामिल हुए पार्टी की मदद की.  साल 2019 में जब उन्होंने औपचारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल होने का फ़ैसला किया तो पटेल समुदाय में उनके प्रति नाराजगी देखी गई.  और अब जब उन्होंने बीजेपी का दामन थामा है, एक बार फिर पाटीदार समुदाय के लोग उनसे मुश्किल सवाल कर रहे हैं. 


सरदार पटेल ग्रुप के लालजी पटेल हार्दिक पटेल को एक अवसरवादी और स्वार्थी नेता बताते हैं.  वो कहते हैं कि हार्दिक पटेल ने पहले सरदार पटेल ग्रुप को धोखा दिया और अब उन्होंने कांग्रेस को धोखा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया है. वे कहते हैं कि "समाज में हर कोई जानता है कि इस व्यक्ति पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता. "


जाने-माने चुनाव विश्लेषक और तालीम रिसर्च  फाउंडेशन के निदेशक डॉक्टर एमआई ख़ान भी मानते हैं कि हार्दिक पटेल के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी को कोई बहुत अधिक लाभ नहीं होगा.  उनके मुताबिक "2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 1. 15 फीसदी बढ़ा था, लेकिन इसके बावजूद उसे 16 सीटों का नुकसान हुआ.  


इसके मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर 2. 57 फीसदी बढ़ा था और उसने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी (उसे 16 सीटों का फायदा हुआ).  कांग्रेस, बीजेपी को 99 सीटों तक सीमित करने में कामयाब हुई थी.  जबकि साल 2012 के चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 0. 97 फीसदी बढ़ा था और दो सीटों का इजाफा हुआ था.  ऐसी स्थिति में बीजेपी 2022 के चुनावों में मजबूत जीत सुनिश्चित करना चाहती है. "


हालांकि कुछ विश्लेषक मानते हैं कि हार्दिक पटेल को बीजेपी में इसलिये लाया गया है,ताकि पहली बार वोट देने वाले युवा कांग्रेस की तरफ बिल्कुल आकर्षित न हों.  इसके अलावा पार्टी में हार्दिक की एंट्री से बीजेपी को कोई और बड़ा फायदा होता नहीं दिखता. बल्कि ये कहना ज्यादा सही होगा कि हार्दिक को ही बीजेपी से अधिक फायदा होगा, न कि बीजेपी को हार्दिक से.


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