नोटबंदी के एक महीने बाद भी, क्या आम और क्या खास, सबकी शिकायत है कि नये करेंसी नोट आसानी से मिल नहीं पा रहे. लंबे समय तक इसके लिए बैंकों और एटीएम के चक्कर काटने पड़ते हैं, घंटो क्या कई दिन बर्बाद हो जाते हैं. लेकिन कही ऐसा तो नहीं कि ये केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. दरअसल सरकार की सोच ये है कि बड़े करेंसी नोटों की आसानी से उपलब्धता काले धन का संकट फिर से खड़ा करेगी. इसलिए बड़ी मात्रा में नये करेंसी नोट फिर से काला धन इकट्ठा करने वालों के पास न पहुंच जाए, इस बारे में सरकार काफी सतर्क है. सरकार और रिजर्व बैंक की तरफ से कोशिश ये की जा रही है कि करेंसी नोट आसानी से वैसे लोगों तक पहुंचे ही नहीं, जो काले धन के कारोबार से जुड़े हैं. सरकार इसके लिए एक तरफ जहां कैशलेस, डिजिटल ट्रांजैक्शन को प्रोत्साहित करने में लगी है, वही इस बात की भी सावधानी बरत रही है कि आसानी से बड़ी रकम वाली करेंसी उपलब्ध ही नहीं हो कि वो लोग इसका संग्रह कर पाएं, जो टैक्स न चुकाकर काला धन इकट्ठा करने के लिए बड़ी नकदी करेंसी का सहारा लेते हैं.


मोदी सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि रघुराम राजन जब भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे, उस वक्त ये बात सामने आई थी कि रिजर्व बैंक ने एक हजार रुपये के जितने नोट छापे थे, उसमें से महज एक तिहाई ही सर्कुलेशन में थे, जबकि बाकी दो तिहाई सीधे-सीधे उन लोगों की तिजोरियों, कमरों या लॉकरों में भर दिये जाते थे, जो काले धन के कारोबार से जुड़े थे. इसी तरह पांच सौ नोटों के बारे में बात की जाए, तो एक तिहाई नोट रिजर्व बैंक से निकलने के बाद तुरंत सर्कुलेशन से गायब हो जाते थे और वो काला धन इकट्ठा करने का माध्यम बन जाते थे.


इसका संकेत रिजर्व बैंक के आंकड़ों से भी लग जाता है. वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में एक हजार रुपये के 632 करोड़ नोट मौजूद थे, जबकि पांच सौ रुपये के 1570 करोड़ नोट. इसी अवधि के दौरान रिजर्व बैंक ने नोट खराब हो जाने के कारण जहां एक हजार रुपये के सवा छह करोड़ नोटों को बाजार से निकालकर नष्ट किया, वही पांच सौ रुपये के अठाइस करोड़ नोटों को. इससे भी इस बात का अंदाजा लग जाता है कि पांच सौ के मुकाबले एक हजार रुपये के नोट ज्यादातर बड़ी रकम की होर्डिंग के लिए ही इस्तेमाल होते हैं.


ऐसे में इस बार पांच सौ और हजार रुपये की पुरानी करेंसी को बंद किये जाने के आठ नवंबर के एलान के बाद सरकार और रिजर्व बैंक की कोशिश ये है कि बड़ी तादाद में पांच सौ या दो हजार के नोटों को बाहर रहने ही नहीं दिया जाए, ताकि इन्हें फिर से काले धन के तौर पर इकट्ठा किया जा सके. अगर उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों की मानें, तो केंद्र सरकार बड़ी करेंसी नोटों की किल्लत के लिए हो रही आलोचना को झेलने के लिए मानसिक तौर पर तैयार है, क्योंकि उसकी सोच ये है कि नोटों की किल्लत के कारण एक तरफ जहां लोग डिजिटल मोड से पेमेंट करने के लिए आगे बढ़ेंगे, वही काला धन के तौर पर पांच सौ और दो हजार के नये नोट फिर से इकट्ठा आसानी से नहीं होंगे. इसीलिए सरकार एक तरफ जहां डिजिटल ट्रांजैक्शन को प्रोत्साहन देने के लिए एक के बाद एक छूटों की घोषणा कर रही है, वही बैंकों से बिना ध्यान रखे बड़ी तादाद में नोट निकल न जाएं, इसकी भी लगातार कोशिश कर रही है.


सरकार की सोच ये भी है कि ऑनलाइन बैंकिंग या फिर डिजिटल और मोबाइल ट्रांजैक्शन बढ़ने की हालत में जहां लालफीताशाही को रोकने में आसानी होगी, वही भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाने में आसानी होगी. सरकारी सूत्रों का कहना है कि जो व्यापारी या उद्यमी आयकर विभाग के अधिकारियों की मनमानी या उगाही से परेशान रहते हैं, उन्हें भी ऑनलाइन बैंकिंग की हालत में विभाग की तरफ से होने वाली हालाकी से मुक्ति मिलेगी. सोच ये है कि अगर कारोबारी या उद्यमी की पूंजी बैंक के अंदर होगी, तो फिर भला आयकर विभाग के अधिकारियों की दादागीरी एसेसमेंट के नाम पर कहां चलेगी, जिसका रोना व्यापार या उद्योग जगत रोता है. सीधे-सीधे ये संदेश देना सरकार के लिए आसान नहीं है, इसलिए घुमा-फिराकर ये संदेश वो पहुंचा रही है.