आम चुनाव 2024 में अब चंद महीने बचे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी एनडीए गठबंधन के तले लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता पर विराजमान होने के लिए चुनावी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुटी है. दूसरी ओर कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, जेडीयू, आरजेडी, समाजवादी पार्टी समेत 28 विपक्षी दल 'इंडिया' गठबंधन के तले बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए एकजुटता की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं.


विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के अस्तित्व में आने से 2024 का मुक़ाबला बीजेपी के लिए अब उतना आसान या सरल नहीं रह गया है, जितना पहले था. 'इंडिया'  गठबंधन के अस्तित्व में आने से पहले बीजेपी को केंद्रीय राजनीति में 2024 में चुनौती देने का दमख़म अपने बूते किसी एक विपक्षी दल में नहीं दिख रहा था.


विपक्षी गठबंधन से बीजेपी को कितना नुक़सान ?


ऐसे भी विपक्षी गठबंधन में शामिल जितने भी राजनीतिक दल हैं, उनमें सिर्फ़ कांग्रेस ही ऐसी है, जिसका जनाधार पैन इंडिया कहा जा सकता है. आम आदमी पार्टी और लेफ्ट दलों का दायरा एक से ज़ियादा राज्यों में है. उसके बावजूद मौजूदा राजनीतिक स्थिति में इन दलों की भूमिका भी चुनाव जीतने के लिहाज़ से एक या बमुश्किल दो राज्यों में ही निर्णायक है. जैसे आम आदमी पार्टी का दिल्ली और पंजाब में, तो  सीपीएम का केरल और पश्चिम बंगाल में है. विपक्षी गठबंधन में शामिल बाक़ी दल की भूमिका लोक सभा चुनाव में अपने-अपने जनाधार वाले राज्य विशेष तक ही सीमित है.


ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का पश्चिम बंगाल, तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का प्रभाव सिर्फ़ उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है. उसी तर्ज़ पर नीतीश कुमार की जेडीयू और तेजस्वी यादव की आरजेडी का प्रभाव बिहार तक ही है. यही हाल हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा का है. उद्धव ठाकरे और शरद पवार की निर्णायक भूमिका महाराष्ट्र में ही है. वहीं एम. के. स्टालिन की डीएमके का जनाधार तमिलनाडु तक ही सीमित है. तात्पर्य है कि ये सारे विपक्षी दल चुनावी नतीजों के लिहाज़ से ख़ास राज्य तक ही सीमित हैं.


बीजेपी को किन राज्यों में है हानि की आशंका ?


विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' का गठन ही इस मकसद से हुआ है कि केंद्रीय राजनीति में बेहद मज़बूत बीजेपी को एकजुट होकर हराया जाय. इसके ज़रिये विपक्ष की मंशा है कि लोक सभा की 543 में से अधिक से अधिक सीटों पर बीजेपी के सामने एकजुट चुनौती पेश किया जा सके. विपक्ष की इस सामूहिक रणनीति का असर देश के किन-किन राज्यों में किस हद तक होगा, फ़िलहाल यह बताना संभव नहीं है. हालांकि एक बात तय है कि दो राज्य ऐसे हैं, जहाँ एकजुट विपक्ष से बीजेपी को सबसे ज़ियादा नुक़सान होने की आशंका है. ये दो राज्य पश्चिम बंगाल और बिहार हैं.



कुछ दलों के साथ नहीं होने से हानि कम


अगर उत्तर प्रदेश में मायावती का, ओडिशा में नवीन पटनायक का, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव के साथ ही आंध्र प्रदेश में वाईएस जगन मोहन रेड्डी का साथ 'इंडिया' गठबंधन को मिल जाता, तो फिर अभी से ही कहा जा सकता था कि विपक्षी गठबंधन 2024 में बेहद असरकारक साबित होगा. मायावती, केसीआर, नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी फ़िलहाल न तो सत्ताधारी गठबंधन एनडीए का हिस्सा हैं और न ही विपक्षी गठबंधन 'इंडिया का हिस्सा हैं. राजनीति में ऐसे तो कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन मौजूदा रुख़ को देखते हुए कहा जा सकता है कि मायावती, केसीआर, नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी के विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की उम्मीद नगण्य है.


उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल साथ में तो हैं, लेकिन बिना मायावती के इन तीन दलों के गठजोड़ से प्रदेश में बीजेपी को बहुत ज़ियादा हानि होने का ख़तरा नहीं है. विपक्षी गठबंधन बनता या नहीं बनता, बिहार में पहले से ही तय था कि जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल 2024 का आम चुनाव मिलकर लड़ते.


पश्चिम बंगाल में बीजेपी को सबसे अधिक नुक़सान !



इस लिहाज़ से देखें तो पश्चिम बंगाल ही एकमात्र राज्य है, जहाँ विपक्षी गठबंधन के अस्तित्व में आने से बीजेपी के मंसूबों को तगड़ा झटका लगने की उम्मीद है. अगर हम पिछले एक दशक में पश्चिम बंगाल की राजनीति का विश्लेषण करें, तो 2024  के लिए इस प्रदेश से बीजेपी बहुत उम्मीदें लगाई हुई है. उम्मीद कितनी बड़ी है, इसका अंदाज़ा इससे लगा सकते हैं कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व 2024 में प्रदेश की 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य बनाकर रणनीति बनाने में जुटा है. ऐसा एक दिन में नहीं हुआ है.


2011 से बंगाल की राजनीति में नयी किताब


हम कह सकते हैं कि 2011 से पश्चिम बंगाल की राजनीति में नयी किताब का प्रादुर्भाव हुआ. इस किताब के दो महत्वपूर्ण अध्याय रहे हैं. पहला अध्याय ममता बनर्जी से जुड़ा है और दूसरा अध्याय प्रदेश की सियासत में बीजेपी के मज़बूत दख़्ल से जुड़ा है.


पश्चिम बंगाल की राजनीति के सफ़र को 2011 से जानकर यह ब-ख़ूबी समझा जा सकता  है कि कैसे 2024 के चुनाव में विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' से बीजेपी के मंसूबे को सबसे ज़ियादा नुक़्सान होने के आसार हैं. ममता बनर्जी की पार्टी ने 2009 के लोक सभा चुनाव में यह जता दिया था कि पश्चिम बंगाल में आने वाला वक़्त टीएमसी का है. 2009 में यूपीए गठबंधन के तहत तृणमूल कांग्रेस ने 31 फ़ीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ पश्चिम बंगाल की 42 में से 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी. यह पहला मौक़ा था, जब राज्य में सबसे अधिक लोक सभा सीटें टीएमसी के खाते में गयी थी.


ममता बनर्जी का जादू और बीजेपी का उभार


इसके बाद ममता बनर्जी ने 2011 के विधान सभा चुनाव में वो कारनामा कर दिखाया, जो कांग्रेस 1977 से नहीं कर सकी थी. ममता बनर्जी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या'नी सीपीएम के 34 साल के शासन को बेरहमी से इस कदर उखाड़ फेंका कि अब तक वहां सीपीएम पनप नहीं सकी है. 2011 के विधान सभा चुनाव में टीएमसी राज्य की कुल 294 में से 184 सीटों पर जीतने में कामयाब हो जाती है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी युग की शुरूआत हो गई, जो अभी तक क़ायम है.


पश्चिम बंगाल में 2011 के बाद से सीपीएम और कांग्रेस जनाधार लगातार सिकुड़ता गया और ममता बनर्जी का दबदबा बढ़ता गया. सीपीएम और कांग्रेस के कमज़ोर होने से पश्चिम बंगाल की राजनीति में बीजेपी का उभार होना शुरू हुआ, जो 2019 के लोक सभा 2021 के विधान सभा चुनाव में उफान पर पहुंच गया.


बीजेपी का जनाधार 2011 के बाद तेज़ी से बढ़ा


विधान सभा चुनाव, 2011 में बीजेपी पश्चिम बंगाल में 289 सीटों पर चुनाव लड़ती है, लेकिन उसे किसी भी सीट पर जीत नहीं मिलती है. उसका वोट शेयर महज़ 4% रहता है. इसके अगले चुनाव या'नी 2016 में बीजेपी 291 सीटों पर लड़ती है. जीत तो 3 सीट पर ही मिलती है, लेकिन पहली बार प्रदेश के विधान सभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर दहाई में (10.16%) पहुंच जाता है.


इसके अगले विधान सभा चुनाव या'नी 2021 में तो बीजेपी ममता बनर्जी की सत्ता को चुनौती देने का दावा करते हुए नज़र आती है. हालांकि ऐसा हो नहीं पाता और ममता बनर्जी रिकॉर्ड सीट हासिल कर लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल की सत्ता पर क़ाबिज़ हो जाती हैं. टीएमसी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 215 सीटें जीत जाती है.


विधान सभा चुनाव 2021 में बीजेपी का दमख़म


भले ही 2021 में बीजेपी अपने दावे पर खरा नहीं उतर पाती है, लेकिन 77 विधान सभा सीटें जीतकर एक मज़बूत संकेत ज़रूर दे देती है. बीजेपी सीधे 3 से 77 सीट पर पहुंच गई थी. बीजेपा का वोट शेयर क़रीब 38 फ़ीसदी तक पहुंच जाता  है. यह वोट शेयर क़रीब 28 फ़ीसदी का इजाफा था. बीजेपी के इस प्रदर्शन से 2021 में ममता बनर्जी की कुर्सी नहीं हिलती है. लेकिन इतना तय हो गया कि भविष्य में ममता बनर्जी की कुर्सी न तो कांग्रेस और न ही सीपीएम हिला सकती है, अब यह कारनामा बीजेपी ही करेगी.


सीपीएम और कांग्रेस का 2021 में सफ़ाया


बीजेपी विधान सभा चुनाव, 2021 में टीएमसी को मात देने में नाकाम हो जाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति से सीपीएम और कांग्रेस का सफ़ाया ज़रूर कर देती है. इस चुनाव में सीपीएम और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ी थी, इसके बावजूद दोनों ही दलों का खाता तक नहीं खुलता है. कांग्रेस का वोट शेयर लुढ़क कर 5 फ़ीसदी से नीचे और सीपीएम का 3 फ़ीसदी से नीचे चला जाता है.


सीट और वोट शेयर का फ़ासला कम होते गया


विधान सभा चुनाव, 2011 में ममता बनर्जी की पार्टी और बीजेपी के बीच 184 सीटों का फ़ासला था. बीजेपी कोई सीट जीत ही नहीं पायी थी. इस चुनाव में दोनों दलों के बीच वोट शेयर का फ़ासला क़रीब 35 फ़ीसदी था. एक दशक बाद 2021 में टीएमसी और बीजेपी  के बीच सीट का फ़ासला घटकर 138 सीटों का हो गया. वोट शेयर का फ़ासला तो सिकुड़ कर 10 फ़ीसदी पर आ गया. इन आँकड़ों से समझा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी की राजनीतिक हैसियत एक दशक में ही कितनी ज़ियादा बढ़ गयी.


अगर लोक सभा चुनाव की बात करें, तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने 2009 से लेकर 2019 के बीच प्रभावकारी और सकारात्मक नतीज़ों से लबरेज़ सफ़र तय किया है. आम चुनाव, 2004 में यहाँ 8 फ़ीसदी वोट पाने के बावजूद बीजेपी के पास कोई सीट नहीं थी. आम चुनाव, 2009 में 6.14% वोट शेयर के साथ एक सीट जीतने में सफल रहती है, तो आम चुानव, 2014 में बीजेपी 17% वोट शेयर के साथ दो लोक सभा सीट जीतने में सफल रहती है. टीएमसी को 2014 में 39 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ 34 सीटें हासिल हुई थी. यह टीएमसी का लोक सभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था.


कांग्रेस-सीपीएम के कमज़ोर से बीजेपी को लाभ


लोक सभा चुनाव, 2019 आते-आते तक पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सीपीएम का जनाधार दुर्लभ श्रेणी में पहुँच जाता है. इसका सबसे ज़ियादा फ़ाइदा बीजेपी को होता है. इस चुनाव में बीजेपी पश्चिम बंगाल में वो कारनामा कर दिखाती है, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही सोच पाये थे. बीजेपी अपने प्रदर्शन से ममता बनर्जी की पार्टी के बर'अक्स खड़ी हो जाती है.


आम चुनाव, 2019 में क़रीब-क़रीब बराबरी का मुक़ाबला बनाते हुए बीजेपी 42 में से 18 सीटें जीत लेती है. वहीं टीएमसी को सिर्फ़ 22 सीटों से संतोष करना पड़ता है. लोक सभा चुनाव, 2019 में वोट शेयर के मामले में भी बीजेपी, टीएमसी से अधिक पीछे नहीं रहती है. टीएमसी को 43.69% वोट हासिल होता है, वहीं बीजेपी का वोट शेयर 40.64% तक जा पहुंचता है. इस चुनाव में कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट जाती है, जबकि सीपीएम का तो खाता तक नहीं खुलता है. टीएमसी और बीजेपी के बीच 2019 में महज़ 3 सीट और 3 फ़ीसदी वोट शेयर का ही फ़र्क़ रह जाता है, जबकि 2014 में यह फ़ासला  32 सीट और 22 फ़ीसदी वोट शेयर का था.


लोक सभा चुनाव में टीएमसी को बराबरी की टक्कर


ऊपर के सारे आँकड़ों से स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में विधान सभा के मुक़ाबले लोक सभा चुनाव में बीजेपी ममता बनर्जी को बराबरी की टक्कर देने में ज़ियादा सहज है. विधान सभा चुनाव में ममता बनर्जी को मात देना बीजेपी के लिए आसान नहीं था, लेकिन बीजेपी लोक सभा चुनाव 2024 में टीएमसी से अधिक सीटें लाने का दावा कर रही है, तो इसके पीछे पश्चिम बंगाल का सियासी समीकरण ही ज़िम्मेदार है.


सीपीएम और कांग्रेस के कमज़ोर होने के साथ ही हिंदुत्व के मुद्दे हुए ध्रुवीकरण से भी 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिम बंगाल में लाभ हुआ था. हालांकि हिंदुत्व के मुद्दे ध्रुवीकरण उस तरह से 2021 विधान सभा चुनाव में देखने को नहीं मिला था. दरअसल हिंदुत्व के मुद्दे से राज्यों के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को उतना लाभ नहीं मिलता है, जितना लोक सभा चुनाव में मिलता है. इसी कारण से बीजेपी 2019 के बाद से ही उम्मीद पाल रखी है कि आगामी लोक सभा चुनाव में उसे पश्चिम बंगाल में टीएमसी से अधिक सीटें लाना है. विधान सभा चुनाव 2021  में ममता बनर्जी को मिली प्रचंड जीत के बावजूद बीजेपी ने 2024 में 35 सीटों पर जीत की आस को धूमिल नहीं होने दी थी और उसी के हिसाब से चुनावी रणनीति को अंजाम देने में जुटी है.


पश्चिम बंगाल में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ी


इस बीच विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' बन जाने से बीजेपी की परेशानी सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में ही बढ़ी है. इस गठबंधन से तय हो गया है कि अब पश्चिम बंगाल में बीजेपी को टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम की साझा ताक़त से मुक़ाबला करना होगा. टीएमसी,सीपीएम और कांग्रेस को जो भी वोट बैंक अभी है, एक नज़रिये से वो सारे वोट बीजेपी विरोधी वोट ही हैं. अब तक बीजेपी विरोधी वोट एक जगह नहीं पड़ रहे थे, उनमें बिखराव हो रहा था. भले ही प्रदेश में कांग्रेस और सीपीएम अपनी बदौलत लोक सभा सीटें जीतने का दमख़म खो चुकी है, लेकिन इन दोनों ही दलों के पास छोटा-मोटा ही सही एक कोर वोट बैंक अभी भी है.


विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' नहीं हुआ होता तो....


अगर विपक्षी गठबंधन अस्तित्व में नहीं आता तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी विरोधी वोटों का बिखराव टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम में होता. इससे ममता बनर्जी की पार्टी को सबसे ज़ियादा नुक़सान होता. यह सियासी समीकरण पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक लोक सभा सीट जीतने वाली पार्टी बनाने के लिहाज़ से बीजेपी के लिए मुफ़ीद होता. हो सकता है कि इस सियासी गुणा-गणित से बीजेपी अपने 35 सीटों के लक्ष्य के क़रीब भी पहुंच सकती थी.


टीएमसी- कांग्रेस-सीपीएम की साझा ताक़त से मुक़ाबला


2019 के लोक सभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सीपीएम का साझा वोट शेयर 12 फ़ीसदी से ऊपर हो जा रहा था. वहीं 2021 के विधान सभा चुनाव में यह आँकड़ा क़रीब 8 फ़ीसदी तक पहुँच जाता है. लोक सभा चुनाव की बात हो रही है तो 2019 में टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम का साझा वोट शेयर क़रीब 56 फ़ीसदी पहुंच जाता है. वहीं बीजेपी का वोट शेयर 40.64% ही था.


अब 'इंडिया' गठबंधन की वज्ह से आम चुनाव, 2024 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी विरोधी सारे वोट एकमुश्त हर सीट पर एक ही उम्मीदवार के पक्ष में पड़ेंगे. इस परिस्थिति में प्रदेश में बीजेपी के लिए दहाई के आँकड़े तक पहुंचना भी मुश्किल हो सकता है. एक और पहलू है, जिससे विपक्षी गठबंधन 2019 के  मुक़ाबले अधिक लाभ की स्थिति में है. पिछली बार की तरह आम चुनाव,  2024 में पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व के मुद्दे पर मतों के ध्रुवीकरण की संभावना बेहद कम है. इससे भी प्रदेश में बीजेपी के मंसूबों को चोट पहुँच लग सकती है.


पश्चिम बंगाल में सीपीएम-कांग्रेस को देनी होगी क़ुर्बानी


विपक्षी गठबंधन से पश्चिम बंगाल में बीजेपी को नुक़्सान होगा, लेकिन कितना.. यह बहुत हद तक कांग्रेस और सीपीएम के रुख़ पर निर्भर करता है. सीपीएम और कांग्रेस यहाँ टीएमसी के पक्ष में सीटों की जितनी क़ुर्बानी देंगी, बीजेपी के लिए नुक़सान का दायरा बढ़ते जायेगा. इसका कारण है कि ममता बनर्जी की पार्टी जितनी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी, अपने और कांग्रेस-सीपीएम के वोट बैंक के सहारे अधिकांश पर टीएमसी की जीत की प्रबल संभावना बनेगी.


सीपीएम-कांग्रेस के रुख़ पर बीजेपी का नुक़सान निर्भर


टीएमसी का आधार व्यापक है. हर सीट पर उसका जनाधार बड़ा है. ऐसे में टीएमसी उम्मीदवार के लिए सीपीएम-कांग्रेस का समर्थन जीत के लिहाज़ से विपक्षी गठबंधन को ज़ियादा फ़ाइदा पहुंचा सकता है. इसके उलट टीएमसी का साथ मिलने के बावजूद सीपीएम या कांग्रेस के उम्मीदवार के जीतने की संभावना बनिस्बत कम होगी. पश्चिम बंगाल में सीट बँटवारे के फॉर्मूले में अगर कांग्रेस-सीपीएम इस बात को ध्यान में रखकर तृणमूल कांग्रेस को प्रदेश की 42 में से अधिकतर सीटों पर लड़ने देंगी, तो पश्चिम बंगाल के नतीजों में बीजेपी को बड़े झटके का सामना करना पड़ सकता है.


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