आज से करीब-करीब 50 साल पहले, 24 जुलाई 1969 को अमेरिका का अपोलो-11 मिशन चांद से धरती पर लौटा. तीन अंतरिक्ष यात्री कमांडर नील आर्मस्‍ट्रांग, पायलट माइक कॉलिंस और एडिवन एल्ड्रिन ने फ्लोरिडा से मिशन के लिए उड़ान भरी और फिर वापस लौटे, इस पूरे मिशन में आठ दिन का वक्त लगा.


इसके 50वें साल में कल यानि 22 जुलाई को भारत अपना पहला स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा पर भेजेगा. चंद्रमा पर इसे उतरने में करीबन सात सप्ताह या इससे अधिक का समय लगेगा. इस कामयाबी के साथ ही अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन जाएगा. हालांकि यह सिर्फ क्षमता और कौशल का सवाल नहीं है बल्कि यह प्राथमिकताओं का सवाल है.


भारत, अमेरिका, रूस और चीन की तरह ही जर्मनी, फ्रांस, जापान और अन्य देश जो टेक्नोलॉजी के स्तर पर संपन्न हैं, लेकिन यह देश खुद के बल पर स्पेस (अंतरिक्ष) में छलांग लगाने में रुचि नहीं दिखाता है. यहां की सरकारें अपने करदाताओं का पैसा अंतरिक्ष के क्षेत्र में निवेश नहीं करना चाहती. परमाणु हथियार विकसित करने के मुद्दे पर भी इन देशों ने भारत से अलग रास्ता चुना है.


चंद्रमा का अध्ययन करने की एक बड़ी वजह है कि यह हमारे पूरे सोलर सिस्टम के विकास को समझने में मदद करेगा. चंद्रमा 3.5 अरब साल पुराना है और इसके सतह में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला है. इसमें कोई इंटरनल मूवमेंट भी नहीं देखा गया है. अगर हम चंद्रमा के बारे में अध्यन करते हैं तो हमें सारे सोलर सिस्टम के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है जोकि पृथ्वी का अध्यन करके नहीं मिलती है. यही नहीं अपोलो मिशन के बाद पहली बार यह पता लगा था कि चंद्रमा का फॉर्मेशन पृथ्वी पर एक ऑब्जेक्ट के टकराव के बाद हुआ था.


1969 के ऐतिहासिक क्षण से पहले तक अमेरिका ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में ज्यादा कदम नहीं बढ़ाया. लेकिन नील आर्मस्‍ट्रांग और एडिवन एल्ड्रिन के बाद 10 अमेरिकन चंद्रमा पर गए लेकिन 1972 में इसका आखिरी मिशन था. 1980 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में अमेरिका ने स्पेस शटल प्रोग्राम तैयार किया, जो 2011 में खत्म हुआ. शटल प्रोग्राम के दौरान ही भारतीय मूल की कल्पना चावला की अंतरिक्ष से वापस लौटते समय एक फरवरी 2003 को मौत हो गई. यह स्पेस शटल प्रोग्राम का दूसरा बड़ा हादसा था, इससे पहले 1980 के दशक में 14 लोगों की मौत हो गई थी.


शीत युद्ध की समाप्ति और 30 साल पहले सोवियत संघ के पतन के बाद लंबी दूरी की मिसाइलों (अंतरिक्ष रॉकेट से मिलता जुलता) को विकसित करने पर जो पैसा खर्च हो रहा था उसे बाकी कोनों में खर्च किया जाने लगा. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वह नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) की महत्वाकांक्षाओं को पुनर्जीवित करेंगे और 2024 तक अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रखेंगे.


हालांकि आज के समय में अंतरिक्ष पर निजी कंपनी स्पेसएक्स सटीक काम कर रही है, जिसे अरबपति इंजीनियर एलोन मस्क संचालित कर रहे हैं. स्पेसएक्स ऐसे काम कर सकता है जो नासा भी नहीं कर सकता है, जैसे रॉकेट स्टेज को ठीक करना और उसे दोबारा इस्तेमाल में लाना. अमेजन के मालिक जेफ बेजोस द्वारा संचालित स्पेस फर्म ब्लू होरिजन ने भी इस तरह की क्षमता को विकसित किया है।


जब मस्क ने 2002 के आसपास अपनी कंपनी शुरू की, तो उन्हें पता चला कि रॉकेट तकनीक 50 सालों से अपडेट नहीं हुआ है और सरकारें उन्हीं प्रणालियों का उपयोग कर रही थीं जिसका इस्तेमाल 1960 के दशक में हो रहा था. मस्क मंगल पर कॉलोनी बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं. उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखने पर ऐसा लगता है कि उनका यह ख्वाब भी हकीकत में बदल सकती है.


भारत जैसा देश जब अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर पैसा खर्च करता है तो दो विचार आते हैं और दोनों मेरी समझ में ठीक भी है. पहला- एक गरीब देश को फैंसी रॉकेटों पर पैसा खर्च नहीं करना चाहिए, जो राष्ट्रीय गौरव के अलावा अपने नागरिकों को कोई खास लाभ नहीं पहुंचाता हो. दूसरा यह कि इस तरह के मिशन वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करते हैं. खासकर उस देश में जहां सरकार लोगों से कहती है क्या करना चाहिए और क्या नहीं, वहां विज्ञान को बढ़ावा देने के ख्याल से फायदेमंद है.


शायद, इसलिए अंतरिक्ष कार्यक्रम को हमेशा दलों से उठकर देखा गया और सभी साथ नजर आए. चंद्रयान-2 मिशन कल लॉन्च होगा जिसकी अनुमति 2008 में मनमोहन सिंह की सरकार ने दी थी और अगर यह कल सफल रहता है तो चंद्रयान-2 एक साल तक ऑपरेशनल रहेगा. चंद्रयान-2 को भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा, यह रॉकेट Saturn V का करीब चौथा भाग है, जिसे आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर लेकर गए थे. चंद्रयान-2 का वजन 3.8 टन है और ऑर्बिटर चांद की सतह से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाएगा।


इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने खुद ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर को विकसित किया है. लैंडर का नाम मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर 'विक्रम' रखा गया है. यह चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करने के साथ ही अलग हो जाएगा. इसके बाद रोबोटिग रोवर जिसका नाम 'प्रज्ञान' रखा गया है 14 दिनों तक चंद्रमा के सतह की संरचना की परखेगा, मिनरल और रासायनिक नमूने एकत्र करेगा. अगर चंद्रयान-2 सफल रहता है तो भारत एक बार फिर किसी सकारात्मक कारणों से दुनियाभर में सुर्खियां बटोरेगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)