जम्मू-कश्मीर में ठंड का प्रकोप बढ़ते ही पाकिस्तान ने भी अपनी आतंकी साजिश को अंजाम देने में गर्मी ला दी है. हालांकि हमारे सुरक्षा बलों ने बुधवार (28 दिसंबर) की सुबह जम्मू के बाहरी इलाके में हुई एक मुठभेड़ में चार आतंकियों को ढेर कर दिया. बताया गया है कि ये चारों पाकिस्तान सीमा से ही घुसपैठ करके जम्मू में बड़ी आतंकी वारदात करने के इरादे से ही आए थे. 


इस एनकाउंटर के बाद देर शाम गृह मंत्री अमित शाह ने एक उच्चस्तरीय बैठक में हालात की समीक्षा की. वैसे तो ये बैठक पहले से ही तय थी, लेकिन आतंकी मुठभेड़ के बाद ये और भी ज्यादा अहम हो गई. वैसे भी पिछले करीब 15 दिन में हमारी खुफिया एजेंसियों ने दो अलर्ट जारी किए थे कि नए साल से ऐन पहले लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी जम्मू-कश्मीर में बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं.  


बुधवार की सुबह जम्मू के बाहरी इलाके सिधरा में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ ने उस आशंका को सच साबित कर दिखाया. दरअसल,पिछले कुछ महीनों में कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग को अगर छोड़ दें, तो सुरक्षा बलों पर आतंकी हमलों में काफी कमी देखने को मिली है.लेकिन केंद्र सरकार चाहती है कि आतंकी वारदातों पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जाए, ताकि वहां विधानसभा चुनाव कराने लायक माहौल बन सके.


सूत्रों के मुताबिक केंद्र मार्च की शुरुआत तक वहां चुनाव कराने की तैयारी में है क्योंकि तब तक घाटी में पूरी तरह से बर्फ पिघल चुकी होती है, लेकिन पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि वहां शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव सम्पन्न हों और एक निर्वाचित सरकार का गठन हो. यह ही वजह है कि उसने आतंकियों की खेप भेजनी शुरू कर दी है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक गणतंत्र दिवस से पहले तो हर बार आतंकी सीमापार से घुसपैठ की कोशिश करते ही रहे हैं, लेकिन इस बार वे चुनाव से पहले भी आतंकी वारदातों को अंजाम देने की भरपूर कोशिश करेंगे, ताकि लोगों को मतदान में हिस्सा न लेने के लिए डराया जाए.


जाहिर है गृह मंत्री शाह की बैठक में इन तमाम पहलुओं पर भी चर्चा हुई होगी और उन्होंने चुनाव के अनुकूल सुरक्षा माहौल बनाने की तैयारियों की भी समीक्षा की होगी. हालांकि सरकारी सूत्रों ने ये खुलासा नहीं किया है कि चुनाव तैयारियों को लेकर बैठक में क्या चर्चा हुई है. जानकारी के मुताबिक घाटी में मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था और विकास परियोजनाओं को लेकर ये बैठक बुलाई गई थी. 


बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री की तरफ से अधिकारियों से तमाम तरह की जानकारियां ली गईं और उन्हें कई अहम निर्देश भी दिए गए. बैठक में जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के अलावा सभी राष्ट्रीय एजेंसियों व सुरक्षा बलों के मुखिया मौजूद थे, जिनके साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई है.


दरअसल,सुरक्षा बलों के लिए टारगेट किलिंग से निपटना बेहद अहम होने के साथ ही मुश्किल भी बन गया है क्योंकि चाक-चौबंद सुरक्षा इंतजामों के बावजूद पिछले कुछ महीनों में आतंकियों ने आम नागरिकों को अपना निशाना बनाया है. इस टारगेट किलिंग के तहत प्रवासी मजदूरों और कश्मीर पंडितों को जिस तरह से निशाना बनाया गया है, उसके बाद केंद्र सरकार के लिए मुश्किल ये पैदा हो गई है कि वह कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास तो करना चाहती है लेकिन दहशत के कारण कोई भी परिवार घाटी में बसने को राजी ही नहीं है. बल्कि घाटी में जो गिने-चुने परिवार थे, उनमें से भी कइयों ने ऐसी टारगेट किलिंग के बाद जम्मू या दूसरे सुरक्षित शहरों में शरण ले ली है. 


आपको याद होगा कि साल 2019 में धारा 370 निरस्त किए जाने के बाद सरकार ने जोर-शोर से वादा किया था कि अब घाटी में न सिर्फ पंडितों का पुनर्वास किया जाएगा, बल्कि आतंकवाद के दौर में उनकी जो संपत्तियां थीं, उस पर हुए अवैध कब्जे को भी खाली करवाकर मालिकाना हक उन्हें दिलाया जाएगा. लेकिन जमीनी हकीकत में ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं देता.


इस महीने की शुरुआत में ऐसी खबरें आईं थीं कि एक आतंकवादी समूह ने 56 कर्मचारियों की हिट लिस्ट जारी की थी, जिसके बाद से ही घाटी में कार्यरत कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्य दहशत में हैं. लश्कर-ए-तैयबा की शाखा "द रेजिस्टेंस फ्रंट" से जुड़े एक ब्लॉग ने 56 कश्मीरी पंडित कर्मचारियों की सूची प्रकाशित की, जिन्हें प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत सरकारी नौकरियों में भर्ती किया गया था.


आतंकवादियों द्वारा लक्षित हत्याओं के बाद, घाटी में कार्यरत कई कश्मीरी पंडित जम्मू चले गए हैं और वे स्थानांतरित किए जाने की मांग को लेकर पिछले दो सौ से भी अधिक दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार ने पिछले दिनों संसद को सूचित किया था कि 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद जुलाई 2022 तक जम्मू-कश्मीर में पांच कश्मीरी पंडितों और 16 अन्य हिंदुओं और सिखों सहित 118 नागरिक मारे गए हैं. ये आंकड़े जुलाई महीने तक के हैं, लिहाजा बीते पांच महीनों में इनमें बढ़ोतरी होना स्वाभाविक है.


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