Farmers Protest: तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के बावजूद सरकार और किसानों का टकराव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ है, लिहाज़ा किसान आंदोलन के ख़त्म होने पर संशय अभी भी बरकरार है. दरअसल, केंद्र सरकार ने आज संयुक्त किसान मोर्चा को जिन पांच प्रस्तावों का मसौदा भेजा है, वह एक तरह से किसानों की सारी बातें मान लेने जैसा ही है. लेकिन इस मोर्चे में कुछ ऐसे किसान संगठन हैं, जिन्हें अभी भी सरकार की नीयत पर शक है और उन्होंने आंदोलन वापस लेने के लिए कुछ नई शर्तें सामने रख दी हैं. इसलिये माना यही जा रहा है कि मोर्चे के बड़े नेता उन्हें सरकार के प्रस्ताव समझाने में नाकाम साबित हुए हैं. यही वजह है कि आज सिंघु बॉर्डर पर हुई संयुक्त किसान मोर्चा की लंबी बैठक में भी आंदोलन ख़त्म करने को लेकर एक राय नहीं बन सकी.


किसान नेता मोटे तौर पर सरकार से तीन बातों पर स्पष्टीकरण चाहते हैं. पहला ये कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP को लेकर सरकार जो कमेटी बनाएगी, उसमें सरकार समर्थित किसान संगठन का कोई प्रतिनिधि नहीं होना चाहिये. जाहिर है कि सरकार संतुलन बनाने के लिहाज से संघ के आनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ और बीजेपी के किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों को भी इस कमेटी में रखेगी. लेकिन आंदोलनकारी नेता ऐसा नहीं चाहते, लिहाज़ा उन्होंने इस पर ऐतराज जता दिया है.


दूसरा, किसान नेता सरकार से ये लिखित गारंटी चाहते हैं कि किसानों पर दर्ज मुकदमे कितने दिनों में ख़त्म होंगे, उस वक़्त की मियाद बताई जाये. गौरतलब है कि सरकार ने आज जो प्रस्ताव भेजा है, उसमें साफ कहा गया है कि आंदोलन वापसी का एलान करने के बाद ही मुक़दमे वापस लिए जाएंगे. इसीलिये किसान नेताओं को ये डर है कि आंदोलन ख़त्म कर दिया लेकिन सरकार ने उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस नहीं लिए, तब क्या होगा.


तीसरा ये कि सरकार ने भले ही मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग भी मान ली है लेकिन किसान नेताओं ने नया अड़ंगा अब ये लगा दिया है कि मुआवजा भी पंजाब की तर्ज़ पर ही दिया जाए. पंजाब की कांग्रेस सरकार पांच लाख रुपये का मुआवजा देने के साथ ही आंदोलन के दौरान मारे गए मृतक किसान के परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी दे रही है.


बेशक किसान नेताओं में आंदोलन ख़त्म करने को लेकर आपसी मतभेद भी उभर आए हैं और बताया जाता है कि पंजाब के 90 फीसदी किसान आंदोलन वापसी के पक्ष में हैं लेकिन हरियाणा व यूपी के कुछ किसान संगठन इन तीनों बातों के पूरा हुआ बगैर घर नहीं लौटना चाहते. सरकार के प्रस्तावों पर तीन स्पष्टीकरण मांगकर किसान नेताओं ने एक तरह से दोबारा गेंद सरकार के पाले में ही डाल दी है. लेकिन कहना मुश्किल है कि सरकार एमएसपी पर बनने वाली कमेटी को लेकर किसान नेताओं की मनमानी वाली इस मांग के आगे आसानी से झुकेगी. संयुक्त किसान मोर्चा के दावे के मुताबिक आंदोलन के दौरान सात सौ से ज्यादा किसान शहीद हुए हैं. लिहाज़ा केंद्र सरकार उनके परिजनों को मुआवजा देने के लिए तो राजी हो गई है लेकिन उन सभी परिवारों के एक सदस्य को नौकरी देने की बात वो शायद ही माने.


संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा कि ''सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा हुई. कुछ मुद्दों पर किसान नेताओं ने स्पष्टीकरण की मांग की है. उनकी राय सरकार को भेजी जाएगी. उम्मीद है कि कल सरकार का जवाब आएगा. इसके बाद बुधवार की दोपहर दोबारा बैठक होगी.'' लेकिन उन्होंने ये साफ नहीं किया कि अगर सरकार की तरफ से संतोषजनक जवाब नहीं मिला,तब उनकी आगे की रणनीति क्या होगी.हालांकि आज की बैठक में मोर्चा के प्रवक्ता राकेश टिकैत मौजूद नहीं थे.लेकिन बाद में उन्होंने न्यूज़ चैनलों से हुई बातचीत में साफ कर दिया कि मुकदमे वापसी की समय-सीमा बताए बगैर आंदोलन  ख़त्म नहीं होगा.क्योंकि एक बार आंदोलन ख़त्म हो जाने के बाद किसान अपने खेतों में जायेगा कि थानों-कचहरी के चक्कर काटता फिरेगा.


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