सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है. उनके गवर्नर बनाए जाने में कोई भी ग़लत बात नहीं है. पहले भी इंडिया के चीफ जस्टिस पी सतशिवम केरल के राज्यपाल बने हैं. वे जुलाई 2013 से अप्रैल 2014 में देश के मुख्य न्यायाधीश थे. बाद में उन्हें सितंबर 2014 में केरल का राज्यपाल बनाया गया. वे 4 सितंबर 2019 तक राज्पाल रहे. 


जो राज्यपाल का पद है, वो एक संवैधानिक पद है और उसके लिए संविधान में योग्यता निर्धारित है. जो भी व्यक्ति उन योग्यताओं पर खरा उतर सकता है, उसे राज्यपाल बनाया जा सकता है.  संविधान के अनुच्छेद 157 में राज्यपाल नियुक्त होने के लिए योग्यता को बताया गया है. इसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है और पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है. वहीं अनुच्छेद 158 में राज्यपाल पद के लिए कुछ शर्तें निर्धारत की गई हैं. इसमें कहा गया है कि राज्यपाल संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा.


अगर संसद के किसी सदन का या  विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से खाली कर दिया है. राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा. इन बातों से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज को राज्यपाल बनाने जाने में कोई संवैधानिक रोक नहीं है. 


सुप्रीम कोर्ट का जज स्वाभाविक तौर से तटस्थ होता है. राज्यपाल का काम संविधान के दायरे में आता है. जैसे कौन सी पार्टी बहुमत में है, किसको मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए, सदन में फ्लोर टेस्ट से जुड़े मुद्दे, ये सब काम सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर एक व्यक्ति देखता है तो वहीं गवर्नर के रूप में भी उनका काम होता है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट के जज का पद भी एक संवैधानिक और महत्वपूर्ण पद है, जैसे राष्ट्रपति का पद है. 


इस लिहाज़ से सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने में कोई भी संवैधानिक समस्या नहीं है. ग़लत बात तब होती है, सुप्रीम कोर्ट के जज को रिटायर होने के तुरंत बाद एमपी बनाया दिया जाए, मंत्री बना दिया जाए. जैसे कि एकाध मामलों में ऐसा हुआ थो, जो स्पष्ट रूप से ग़लत है. अगर एमपी और मंत्री बनेंगे तो किसी पार्टी के साथ जुड़ाव में बनेंगे. वो नहीं होना चाहिए. 


गवर्नर या एनएचआरसी वगैरह की पोस्ट पर अगर किसी जज को नियुक्त किया जाता है तो इनके अंदर कोई भी असंवैधानिक बात नहीं है. इसके विपरीत ऐसे कदमों का स्वागत किया जाना चाहिए. ये बहुत अच्छा कदम है. चाहे विपक्ष या सत्ता पक्ष कुछ भी कहे, इसमें कोई भी ग़लत या असंवैधानिक पहलू नहीं है. राज्यपाल के पद पर ऐसे व्यक्ति को होने से फायदा ही होगा. ऐसे व्यक्ति को संविधान और कानून के बारे में ज्यादा जानकारी होगी, जिससे राज्यपाल के काम और भी बेहतर तरीके से होंगे. 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील एम.एल. लोहिटी जी से बातचीत पर आधारित है.)