भारत में फिलहाल चुनावी मौसम चल रहा है. दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं और ईवीएम पर लगातार हल्ला होता रहा है, मसला बनता रहा है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल को दिए फैसले में यह साफ कर दिया कि वीवीपैट की हरेक पर्ची का मिलान किया जाना जरूरी नहीं है औऱ ना ही हम वापस बैलेट के युग में जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के दोनों न्यायाधीशों ने इस बीच कुछ सख्त और तल्ख टिप्पणियां भी कीं. ईवीएम के खिलाफ वाद करनेवालों के मुख्य वकील प्रशांत भूषण को भी कोर्ट ने नसीहत दी कि वह चुनाव और उसकी प्रक्रिया पर टिप्पणी नहीं करेंगे. हालांकि, इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि कांग्रेस वीवीपैट के अधिक इस्तेमाल के अपने अभियान को बढ़ाती रहेगी. 


सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला


जब लोकसभा चुनाव चल रहा है और दूसरे चरण का मतदान खत्म होने में कुछ देर थी, तभी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया और इसीलिए इसे बहुत अहम माना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह का आरोप लगाकर याचिका दी गयी है. इससे पहले भी वीवीपैट के सत्यापन को लेकर कई बार याचिकाएं दाखिल की गयीं. ईवीएम इस देश में जब आया तो उसे तकनीक की तरफ एक कदम माना गया. इसको लायी भी कांग्रेस ही थी. बाद में इसे फुलप्रूफ बनाने के लिए पर्चियों की व्यवस्था और उनके सत्यापन की बात हुई, ताकि किसी भी तरह की शंका को निर्मूल किया जा सके, लेकिन ये बार-बार सुप्रीम कोर्ट में निराधार याचिकाएं डालते रहना तो ठीक नहीं है.



सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिना तथ्यों के आप इस तरह पूरी चुनाव प्रक्रिया को संदेह के घेरे में नहीं डाल सकते. पीएम मोदी का इसीलिए इस पर बोलना और विपक्षी दलों पर पलटवार करना महत्वपूर्ण है. अब हम सभी ने देखा है कि बीजेपी ने तो कर्नाटक औऱ तेलंगाना के चुनाव हारे भी हैं. कांग्रेस वहां जीती है. तो एक तरफ उसी ईवीएम से आए रिजल्ट को आप स्वीकार भी कर रहे हैं औऱ दूसरी तरफ आप उस पर सवाल भी उठा रहे हैं. जो इस वाद के मुख्य वकील थे, प्रशांत भूषण और उन्होंने यह मांग की थी कि चुनाव को वापस बैलेट बॉक्स की तरफ ले जाया जाए. 


हमने वह दौर भी देखा है


सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि देश ने वह दौर भी देखा है, जब बैलेट बॉक्स का दुरुपयोग होता था और हम देश को उस दौर में वापस नहीं ले जा सकते. इस पर प्रशांत भूषण की तरफ से यह मांग की गयी कि ईवीएम से जो पर्ची निकलती है, उसे बैलेट बॉक्स में डाला जाए. सुप्रीम कोर्ट ने वह मांग भी नहीं मानी. कहा कि इससे ईवीएम का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा औऱ यह बहुत समय खपाऊ भी है.


कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी चुनाव में दूसरे या तीसरे स्थान पर आए प्रत्याशी को संदेह होता है तो वह अपने खर्च पर सभी पर्चियों का सत्यापन करवा सकता है. उसमें भी कोई ऐसा प्रत्याशी यह नहीं करवा सकता, जिसकी जमानत जब्त हो गयी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर अपने आदेश में कहा है कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि ईवीएम में कोई खामी हो, या फिर ईवीएम को हैक करने की कोई प्रक्रिया हो. ये फैसला आने के बाद प्रशांत भूषण गए औऱ उसी ईवीएम से मतदान में हिस्सा लिया. तो, अगर जिनको ईवीएम से गिला-शिकवा है, वे अपनी सरकारें छोड़ दें या फिर ईवीएम पर आरोप लगाना बंद कर दें. 


ईवीएम पर नहीं, चुनाव-प्रक्रिया पर संदेह


सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि ईवीएम पर संदेह करने का कोई तथ्य उनके पास नहीं है और ये जो बारहां आरोप लगानेवाले कहते हैं कि मैनिपुलेशन है, उससे कोर्ट इत्तफाक नहीं रखता. दूसरा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर जो बार-बार सवाल उठाया जाता है, वह जनता के मन में संदेह पैदा होता है. इससे तो कल को ये हो सकता है कि जनता कहे कि वोट देने हम नहीं जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जितने भी प्रोटोकॉल जरूरी हैं, उनका पालन किया जा रहा है, इसलिए बार-बार इस तरह की बात बेमानी है.


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि मतदाताओं का यह तो मौलिक अधिकार है कि वह अपने मत के बारे में जाने, वह किसे वोट दे रहे हैं, वह उसको जा रहा है कि नहीं, उसका मत गिना जा रहा है कि नहीं, लेकिन यह उसका मूल अधिकार नहीं है कि 100 फीसदी वीवीपैट काउंटिंग का अधिकार हो, या फिर उसको सारे वीवीपैट देखने का अधिकार हो. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि चार करोड़ से अधिक वीवीपैट कंट्रोल यूनिट के पास आते हैं और एक अकेला मामला भी गड़बड़ी का नहीं आया है, जहां गलत हुआ हो या मिसमैच हुआ है.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वीवीपैट का फिजिकल एक्सेस वोटर्स को दिया जाए तो वह अव्यावहारिक और जटिल होगा. उसका दुरुपयोग होने की भी संभावना कोर्ट ने जतायी है. उसने यह भी कहा कि पूरी चुनाव प्रक्रिया को ही वे लोग संदेह के घेरे में ला रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ईवीएम के हरेक वीवीपैट को सत्यापित करना या गिनना न केवल समय खपाऊ होगा, बल्कि इस प्रक्रिया में मानवों को संलग्न करने से गड़बड़ी की आशंका भी बढ़ेगी. 


बड़ी बात यह है कि दो सदस्यीय पीठ में दोनों जजों ने फैसला सुनाया. जस्टिस संजीव खन्ना के साथ समहति जताते हुए ही जस्टिस दीपांकर दत्ता ने अलग से फैसला भी सुनाया औऱ जो लोग याचिका दाखिल किए थे, उनके बोनाफाइड पर ही सवाल उठाया. बहरहाल, यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है और उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अहम फैसले के बाद इस पर बहस रुक जाएगी, खत्म हो जाएगी. 


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