राजधानी दिल्ली के अपोलो अस्पताल में कोरोना संक्रमित एक बुजुर्ग महिला की मौत के बाद परिजनों ने बवाल काटा. आरोप है कि उन्होंने डॉक्टरों और स्टाफ के साथ मारपीट की. आपदा की घड़ी में उनके रवैये को न तो जायज ठहराया जा सकता है और न ही ऐसी घटनाओं को बख्शा जाना चाहिये. ऐसा इसलिए क्योंकि संकट की घड़ी में भगवान या खुदा के बाद डॉक्टर जिंदगी बचाने में लगे हुए हैं. डॉक्टर न तो आपका मजहब जानते हैं, न जाति और न ही उन्हें ये पता है कि आप अमीर हैं या गरीब.


कोरोना संक्रमण के समय से देश के डॉक्टरों, नर्सिंग व पैरा मेडिकल स्टाफ ने मरीजों की अद्भुत सेवा की है, कलयुग में मानवता की मिसाल की तुलना बहुमूल्य जेवर से भी नहीं की जा सकती. देश की राजधानी दिल्ली में डॉक्टरों पर हमले की एक भी घटना का दूरगामी असर होता है. वक्त रहते प्रवृत्ति को रोके जाने की जरूरत है. वरना आने वाले दिनों में देश के अन्य जगहों पर लोगों के हौंसले बुलंद होंगे. सिर्फ कल्पना कीजिये अगर ऐसी और दो-चार घटनाएं हो गईं, तब क्या होगा. डॉक्टरों की हालत तो बेचारगी वाली हो गई है. वो अपना दुखड़ा न तो सरकार को सुना सकते हैं और न ही सारी हकीकत अपने परिवार को बता सकते हैं.


हमलों के बाद नर्सिंग व अन्य स्टाफ ने अपने ही डॉक्टर की मदद करना बंद कर दी, तब क्या हम अपने किसी मरीज को मौत के मुंह में जाने से बचा पायेंगे? मध्यप्रदेश के MGM इंदौर मेडिकल कॉलेज से निकले और 50 बरस से दिल्ली में कार्यरत डॉ. हरीश भल्ला कहते हैं, "ये ऐसा वक्त है जब देश की सारी आबादी अपने इष्टदेव के बाद डॉक्टर को ही अपने भगवान के रुप में देख रही है. ऐसे नाजुक माहौल में अगर कोई डॉक्टर व अस्पताल के स्टाफ पर हमला करता है, तो उसके लिए सरकार को तुरंत एक अध्यादेश के जरिये मौजूदा कानून में बदलाव लाना चाहिए, जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का कड़ा प्रावधान हो."


उनका कहना है कि हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. पिछले पांच दशक में निजी अस्पतालों के डॉक्टरों पर कई बार हमले होते देखा है लेकिन आखिर इसे तय कौन करेगा कि आपके मरीज की मौत डॉक्टरों के इलाज की लापरवाही से हुई या इसकी कोई और वजह थी. ऐसे हमलावरों से सवाल पूछते हैं, "आप डॉक्टरों पर ही हमला क्यों कर रहे हो. अपने नेताओं पर क्यों नहीं करते जिन्हें आपने वोट देकर सत्ता तक पहुंचाया. उनसे पूछिये कि आपके शहर के अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन या दवाओं की कमी क्यों है. इसका प्रबंध करना किसी डॉक्टर का तो काम नहीं है, उसका काम सिर्फ इलाज करना है."


मंगलवार को दिल्ली के मदनपुर खादर की रहने वाली एक बुजुर्ग महिला की मौत की खबर सुनते ही परिजनों का गुस्सा काबू से बाहर हो गया. उन लोगों ने अपोलो अस्पताल के बाहर भारी हंगामा किया और जमकर तोड़फोड़ की. इस दौरान जहां एक तरफ महिला के परिजन हंगामा मचाते रहे, वहीं दूसरी तरफ अस्पताल की सुरक्षा में तैनात स्टाफ भी उन प्रदर्शनकारी परिजनों के साथ भिड़ते हुए दिखे. हंगामे के बाद अपोलो प्रशासन ने महिला के परिजनों पर डॉक्टरों और स्टाफ के साथ मारपीट करने का आरोप लगाया. अस्पताल ने जारी बयान में कहा कि एक महिला को 27 अप्रैल की सुबह नाजुक हालत में अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में लाया गया था.


उस समय जरूरी मेडिकल सेवा उन्हें उपलब्ध भी कराई गई थी. अस्पताल में बेड्स की कमी होने के कारण परिवार को मरीज को किसी और अस्पताल में शिफ्ट करने की सलाह दी गई. अस्पताल ने बयान में आगे बताया कि दुर्भाग्य से महिला की मृत्यु मंगलवार सुबह करीब 8 बजे हो गई. जिसके बाद मरीज के परिवारजनों ने अस्पताल में तोड़ फोड़ करना शुरू कर दिया और हमारे डॉक्टर, स्टाफ के साथ मारपीट की. सुरक्षा कर्मी और पुलिस की मदद से स्थिति पर काबू पाया गया. हिंसा में अपोलो अस्पताल के कई सदस्यों को चोट आई है.