एक्सप्लोरर

BLOG: नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उठती आवाज और पुलिसिया कार्रवाई

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ एक बड़ा वर्ग सड़कों पर है. कई जगहों पर हिंसक झड़प हुई और पुलिस ने इसके खिलाफ बर्बर कार्रवाई भी की. पढ़ें इसी मुद्दे पर ब्लॉग-

इससे ज्यादा खौफनाक कुछ नहीं हो सकता, जितना कि एक ऐसा राज्य होता है जहां कानून ही न हो. भारत एक ऐसा राज्य बनने की कगार पर है, जहां मुखालफत करने वालों की कमर ही तोड़ी जा रही है. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ देशभर में जिस तरह का असंतोष दिख रहा है और उसे दबाने के लिए सरकार जिस तरह से निरंकुश होकर कार्रवाई कर रही है वो सब कुछ दिखाता. यह उसी तरह है जैसा कि पूर्व के औपनिवेशिक शासकों ने किया. भारत राजनीतिक अराजकतावाद के एक ऐसे सिस्टम की ओर बढ़ रहा है जहां कानून और कानून के शासन की भावना को नष्ट करने के लिए कानून बनाए जाते हैं.

12 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून लागू होने से पहले ही इसके खिलाफ पूर्वोत्तर के राज्य असम, मेघालय और त्रिपुरा में प्रदर्शन शुरू हुए और अगले कुछ दिनों में इसका दायरा बढ़ता गया. देश भर के यूनिवर्सिटी इसकी जद में आए. प्रदर्शन के दौरान हिंसा के दृश्यों ने देशभर में कईयों को हैरान किया. यूनिवर्सिटी युद्ध के मैदान में बदल गया.

असम में पुलिस की तरफ से की गई गोलीबारी में कम से कम पांच लोगों की मौत हुई. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भी पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे. कई सीसीटीवी फुटेज और टीवी-मोबाइल कैमरों में कैद वीडियो में जो दावे किए गए उसमें परस्पर विरोधी बातें है.

पुलिस और स्वतंत्र संस्था इन वीडियो की जांच कर रही है. कुछ वीडियो में साफ-साफ देखा गया कि सैकड़ों पुलिसकर्मी जामिया के परिसर में घुसे और छात्रों पर लाठियां बरसाईं. पुलिसकर्मियों ने लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्राओं को भी नहीं बख्शा और पिटाई की. जामिया और एएमयू में पुलिस ने जिस तरीके से कार्रवाई की, वैसा हमला सेना करती है.

सीखने का विचार जो कि बुद्धिजीवी विरोधी के दिमाग से दूर हैं, जिसका आज बीजेपी नेतृत्व पर कब्जा है, यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मौजूदा सरकार यूनिवर्सिटी को एलियन क्षेत्र जैसा मानती है.

जामिया मिल्लिया, एएमयू से अलग होकर 1920 में फैक्लटी और छात्रों के द्वारा स्थापित किया गया. अपने यूनिवर्सिटी के ब्रिटिश समर्थक झुकाव से परेशान होकर, उन्होंने गांधी के असहयोग आंदोलन और भारत के बौद्धिक जागरण पर ध्यान देने का फैसला किया. वे किताबें नहीं पढ़ते हैं. यूनिवर्सिटी को एक फैक्टरी की तरह देखते हैं, जहां से सिर्फ लेबर फोर्स तैयार होती है.

गृह मंत्री और उनके नौकरशाह के लिए यह रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि एएमयू और जामिया मुख्य रूप से मुस्लिम विश्वविद्यालय हैं, जो इन विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों को तुरंत संदिग्ध बनाता है और पाकिस्तान के इशारे पर काम करने की बात करता है.

मौजूदा सरकार का नजरिया है कि सभी भारतीय मुसलमान राष्ट्र-विरोधी हैं, हालांकि सभी राष्ट्र-विरोधी लोग मुसलमान नहीं हैं: बुद्धिजीवी, नक्सली, राजनीतिक असंतोष, राज्य के आलोचक और विशेष रूप से नेहरू शैली के धर्मनिरपेक्षतावादी भी देश-विरोधी हैं. प्रधानमंत्री भाईचारे की बात करते हैं लेकिन कट्टर हिंदू राष्ट्रवादियों से ही उनकी नजदीकियां हैं. उन्हें क़्लिशे में महारत हासिल है. 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' नारे को ही देखें तो उसकी हकीकत से सभी वाकिफ हैं. विशेष रूप से अब जब कि वो प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल को चला रहे हैं तो, इसकी हकीकत और अधिक उभरकर सामने आई है.

चाहे वह प्रधानमंत्री हों, गृह मंत्री हों, या उनके जूनियर रेल मंत्री, जिन्होंने कहा है कि प्रदर्शनकारी जो रेलवे की संपत्ति को नष्ट करते हुए दिखे "उन्हें देखते ही गोली मार दी जाए". वर्तमान में असहमतिपूर्ण राय रखने वालों के लिए प्रतिक्रिया पूरी तरह से अनुमानित है.

राज्य के मामले में प्रदर्शन की विशिष्टताएं कम होती हैं, क्योंकि इससे निपटने के लिए पहले से ही एक शब्दावली मौजूद है, हालांकि, जैसे असंतोष बढ़ता है और सत्तावादी राज्य सख्त होता है, आंदोलन की धार तेज होते हैं और शब्दावली फीकी पड़ जाती है.

नागरिकता का सवाल: परेशान करने वाला तथ्य और आतिथ्य का लोकाचार है?

असंतोष के दमन के लिए शब्दावली में एक तत्व "भय मनोविकार" की निंदा करना है जो कथित रूप से असामाजिक तत्वों, अफवाह फैलाने वालों और "विपक्ष" द्वारा बनाया जा रहा है. लेकिन प्रमुख प्राथमिक कदम यह है कि प्रदर्शनकारियों को "असामाजिक तत्व" के रूप में ब्रांडेड किया जाना चाहिए: यह दशकों से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में होता रहा है, औपनिवेशिक काल में भी होता था और बीजेपी को इस शब्दावली का श्रेय नहीं दिया जा सकता. हालांकि, 2014 की चुनावी जीत के साथ बीजेपी ने सत्ता के दायरे में शानदार वृद्धि की. इसके साथ "राष्ट्र-विरोधी" शब्द आया और इसका तेजी से प्रचलन बढ़ा. यह शब्द इंटरनेट ट्रोल्स का पसंदीदा बन गया.

हाल ही में, "राष्ट्र-विरोधी" के साथ-साथ "शहरी नक्सल" शब्दावली का इस्तेमाल होने लगा. शहरी नक्सल शब्द गढ़ने वालों का मानना है कि शहर में रहने वाले बौद्धिक, जो पाकिस्तानियों, आतंकवादियों, और माओवादियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं, लेकिन चतुराई से वो सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता या उदार बुद्धिजीवी बने रहते हैं.

अब जब विरोध अन्य विश्वविद्यालयों और उसके बाहर फैल गया है, तो प्रधानमंत्री को "शहरी नक्सल" शब्दावली पर वापस आना पड़ा और उन्होंने झारखंड की रैली में हिंसा के लिए "शहरी नक्सलियों" को जिम्मेदार ठहराया.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से विपक्षी दलों को कुछ हासिल करना है. किसी ने भी यह नहीं कहा कि कांग्रेस या अन्य दल जो “विरोधी” कहे जाने वाले समूह के हैं, वे विरोध में शामिल नहीं हैं. सभी को हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने की निंदा करनी चाहिए. लेकिन इसमें से किसी को भी बुनियादी मुद्दों से नहीं भटकना चाहिए, जो प्रदर्शनों से स्पष्ट हुए है.

सबसे पहले, कई प्रदर्शनकारियों को नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सरकार के साथ पूर्ण रूप से वैध मतभेद है, यह मुद्दा अब सीएए से आगे निकल चुका है और राय के साथ असहमति व्यक्त करने का भी अधिकार है. प्रदर्शन हुए हैं और काफी हद तक शांतिपूर्ण भी रहे हैं. लेकिन हिंसा रोकने के लिए पुलिस का रवैया बिल्कुल अनुचित रहा है.

दूसरा, यह कहना कि विरोध करने वाले सभी को "विपक्ष" या "बाहरी" द्वारा उकसाया गया है. सामान्य लोग भी हो सकते हैं जो अन्यायपूर्ण कानूनों, भेदभाव, पुलिस क्रूरता या असमानता से परेशान हैं या एक वर्ग के सेकेंड क्लास सीटिजनशिप की आशंका से परेशान हैं.

असंतोष की आवाज उठाने के लिए "बाहरी लोग" या "भड़काने वाले" को जिम्मेदार ठहराना लोगों की अपनी स्वायत्तता और न्याय की भावना का सबसे बड़ा अपमान है, और यह देश के वर्तमान सत्ताधीशों के बीच असंतोष की गहरी आशंका की ओर इशारा करता है.

तीसरा, वर्तमान सरकार ने इस दौर में अब तक जो कुछ भी किया है, उससे भारतीयों को ये अहसास कराया गया है कि देश में अब नए तरीके के औपनिवेशिक मास्टर्स हैं. एक बार कि बात है. लोग नाइंसाफी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन भरपूर ताकत से लैस राज्य ने लोगों के विरोध को ये कहकर दबा दिया कि ये बेतुका है.

ये इस बात का साफ संकेत है कि कितनी आसानी से जानकारी न रखने वाले और भरोसा करने वाले ऐसे लोग हजारों की संख्या में हैं जिनमें से किसी एक को भी इस मुद्दे की गहराई का कुछ भी पता नहीं है और उन्हें गुमराह किया जा सकता है. प्रदर्शनकारियों को उस समय भी चेताया गया था कि उनके लिए हिसाब-किताब करने का दिन आने वाला है. कुछ इसी तरह के शब्द प्रधानमंत्री द्वारा भी आसानी से बोले जा सकते हैं. स्पष्ट रूप से ऐसे शब्दों का कुछ-कुछ आभास असंतुष्टों पर किए गए उनके लगभग सभी तरह की घोषणाओं में पाया जाता है. लेकिन इस तरह के शब्द सौ सालों पहले जलियांवाला बाग के नरसंहार को अंजाम देने वाले पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल डायर द्वारा भी इस्तेमाल किए गए थे. लिहाजा इस मौजूदा राजनीतिक विवाद के तहत भारत में राजनीतिक असंतुष्टों के "हिसाब-किताब का दिन आने वाला है' जैसे संवादों के लिए तैयार रहना चाहिए.

विनय लाल UCLA में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. साथ ही वो लेखक, ब्लॉगर और साहित्यिक आलोचक भी हैं.

वेबसाइटः http://www.history.ucla.edu/faculty/vinay-lal

यूट्यूब चैनलः https://www.youtube.com/user/dillichalo

ब्लॉगः https://vinaylal.wordpress.com/

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- NRC से डरने की जरूरत नहीं, मुसलमानों के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

तिहाड़ प्रशासन बोला- परहेज नहीं कर रहे सीएम, केजरीवाल के वकील ने कहा- 3 बार आम, एक बार पूड़ी खाई
तिहाड़ प्रशासन बोला- परहेज नहीं कर रहे सीएम, केजरीवाल के वकील ने कहा- 3 बार आम, एक बार पूड़ी खाई
Exclusive: डिफेंस एक्सपोर्ट में भारत का दिखा दम, फिलीपींस को डिलीवर हुई 3000 करोड़ कीमत की ब्रह्मोस मिसाइल
Exclusive: डिफेंस एक्सपोर्ट में भारत का दिखा दम, फिलीपींस को डिलीवर हुई 3000 करोड़ कीमत की ब्रह्मोस मिसाइल
Guru Tegh Bahadur Jayanti 2024: सिर कटाना मंजूर किया लेकिन औरंगजेब के आगे झुकना नहीं, ऐसे थे गुरु तेग बहादुर
सिर कटाना मंजूर किया लेकिन औरंगजेब के आगे झुकना नहीं, ऐसे थे गुरु तेग बहादुर
हार्ट अटैक के बाद कितनी बदल गई Shreyas Talpade की जिंदगी? एक्टर बोले- 'अब फैमिली की अहमियत ज्यादा....'
हार्ट अटैक के बाद कितनी बदल गई श्रेयस तलपड़े की जिंदगी? एक्टर ने किया खुलासा
for smartphones
and tablets

वीडियोज

Rajasthan Polls Phase 1: नागौर में 91 साल की बुजुर्ग महिला ने दिया पहला वोट | VotingBreaking News: भारत ने Philippines को भेजी BrahMos Missile की पहली खेप | Defence NewsLok Sabha Election: Amit Shah ने गांधीनगर से भरा नामांकन, गुजरात के सीएम भी रहे मौजूदElections 2024: 'पीएम मोदी को तीसरे बार पीएम बनाने का चुनाव'- नामांकन दाखिल करने पर बोले अमित शाह

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
तिहाड़ प्रशासन बोला- परहेज नहीं कर रहे सीएम, केजरीवाल के वकील ने कहा- 3 बार आम, एक बार पूड़ी खाई
तिहाड़ प्रशासन बोला- परहेज नहीं कर रहे सीएम, केजरीवाल के वकील ने कहा- 3 बार आम, एक बार पूड़ी खाई
Exclusive: डिफेंस एक्सपोर्ट में भारत का दिखा दम, फिलीपींस को डिलीवर हुई 3000 करोड़ कीमत की ब्रह्मोस मिसाइल
Exclusive: डिफेंस एक्सपोर्ट में भारत का दिखा दम, फिलीपींस को डिलीवर हुई 3000 करोड़ कीमत की ब्रह्मोस मिसाइल
Guru Tegh Bahadur Jayanti 2024: सिर कटाना मंजूर किया लेकिन औरंगजेब के आगे झुकना नहीं, ऐसे थे गुरु तेग बहादुर
सिर कटाना मंजूर किया लेकिन औरंगजेब के आगे झुकना नहीं, ऐसे थे गुरु तेग बहादुर
हार्ट अटैक के बाद कितनी बदल गई Shreyas Talpade की जिंदगी? एक्टर बोले- 'अब फैमिली की अहमियत ज्यादा....'
हार्ट अटैक के बाद कितनी बदल गई श्रेयस तलपड़े की जिंदगी? एक्टर ने किया खुलासा
पूरी दुनिया में दिल की बीमारी से मर रहे हैं सबसे ज्यादा लोग, कारण है बैड कोलेस्ट्रॉल...
पूरी दुनिया में दिल की बीमारी से मर रहे हैं सबसे ज्यादा लोग, कारण है बैड कोलेस्ट्रॉल...
Dubai Floods: दुबई में आई बाढ़ का क्या है हिंदू मंदिर कनेक्शन? इस्लामिक 'मौसम विशेषज्ञ' फैला रहे हैं अफवाह 
दुबई में आई बाढ़ का क्या है हिंदू मंदिर कनेक्शन? इस्लामिक 'मौसम विशेषज्ञ' फैला रहे हैं अफवाह 
Praniti Shinde Property: प्रणिती शिंदे की अमीरी से चौंक जाएंगे आप, 5 साल में इतनी बढ़ी संपत्ति, जानिए टोटल नेटवर्थ
प्रणिती शिंदे की अमीरी से चौंक जाएंगे आप, 5 साल में इतनी बढ़ी संपत्ति, जानिए टोटल नेटवर्थ
Lok Sabha Election 2024: पोलिंग बूथों पर लगा सितारों का जमघट, लोकतंत्र के पर्व में रजनीकांत से लेकर कमल हासन तक हुए शामिल
पोलिंग बूथों पर लगा सितारों का जमघट, लोकतंत्र के पर्व में रजनीकांत से लेकर कमल हासन तक हुए शामिल
Embed widget