इधर हम सब उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के सियासी गणित में उलझे हुए हैं तो उधर हमारा एक दुश्मन पड़ोसी भारत की सीमा के नजदीक अपनी ताकत बढ़ाने में पूरी मुस्तैदी से जुटा हुआ है.  चीन हमारा एक ऐसा पड़ोसी है जो कई मायने में भारत के लिए पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि वो हमारी जमीन हथियाने के लिए सीना चौड़ा करके हमसे भिड़ने के लिए अक्सर तैयार रहता है.  ताजा खबर ये आई है कि चीन अब भूटान के विवादित क्षेत्र में अवैध तरीके से अपने गांव बसा रहा है.


बात ये नहीं है कि भूटान में उसकी इस हरकत को लेकर भारत क्यों परेशान हो लेकिन बड़ी चिंता व खतरे की बात ये है कि वो जगह डोकलाम से महज़ 30 किलोमीटर दूर है. वही डोकलाम जहां 2017 में चीन के सैनिकों की हमारी सेना से आमने-सामने की भिड़न्त हुई थी. ये जगह ट्राइजंक्शन डोकलाम पठार से लगभग इतनी ही दूरी पर स्थित है. खबरों के मुताबिक चीन उस विवादित इलाके में करीब 166 बिल्डिंग बनाने के साथ ही पक्की सड़कें बना रहा है,ताकि उन गांवों में सारी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें.  सैटेलाइट के जरिये जो तस्वीरें सामने आईं हैं,उनसे पता चलता है कि चीन  यहां निर्माण कार्य बड़े जोरशोर से कर रहा है. हालांकि सूत्रों का दावा है कि भूटान के क्षेत्र में बनाए जा रहे चीनी गावों का इस्तेमाल आम नागरिकों के रहने और सैन्य अभियान दोनों के लिए किया जाएगा. लेकिन चीन के नापाक इरादों से सब वाकिफ़ हैं कि वो आम नागरिकों का बहाना लेकर भारत की सीमा के बिल्कुल नजदीक सैन्य ठिकाने बनाकर अपनी ताकत को और मजबूत करने में लगा हुआ है.


रक्षा मामलों के जानकारों के मुताबिक दरअसल,चीन ने डोकलाम विवाद के बाद अपनी रणनीति में बेहद चतुराई से बड़ा बदलाव किया है.  अब वो उन जगहों पर निर्माण कार्य कर रहा है, जो भारत के नजदीक तो हैं लेकिन वहां भारतीय सेना की मौजूदगी नहीं है. वह इसी का फायदा उठा रहा है. चूंकि डोकलाम भारत, चीन और भूटान के बीच मौजूद तकरीबन सौ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है.  पठार तिब्बत की चुंबी घाटी, भूटान की हा घाटी और भारत के सिक्किम से घिरा हुआ है.  साल 2017 में भी चीन इसी डोकलाम में निर्माण कार्य कर रहा था, तब भारत ने उस पर अपनी गहरी आपत्ति जताई थी. तब चीन ने दावा किया कि उसका भूटान के साथ सीमा विवाद है और उस क्षेत्र पर भारत का पहले भी कभी कोई दावा नहीं था और न ही अब है. तब चीन ने ये भी कहा था कि वह अपने क्षेत्र में सड़क बना रहा है,लिहाज़ा भारत को इस पर ऐतराज क्यों होना चाहिए. हालांकि भारत फिर भी अपनी बात पर अडिग रहा जिसके चलते दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने भिड़ने पर उतर आये और वह विवाद 73 दिनों बाद जाकर खत्म हुआ था. भारतीय सेना के मुहंतोड़ जवाब के बाद चीनी सेना को आखिरकार सड़क बनाये बगैर ही वहां से पीछे हटना पड़ा था. हालांकि बीते साल अक्टूबर में चीन और भूटान ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक समझौता भी किया था. लेकिन चीन तो हर मुल्क के साथ होने वाले किसी भी समझौते को तोड़ने में कुख्यात है.


भूटान के साथ शांति और यथास्थिति बनाए रखने के लिए 1998 में चीन ने उसके साथ समझौता किया था लेकिन इस पर कभी अमल नहीं किया. यही वजह है कि भूटान कई बार चीन पर अपने क्षेत्र में घुसपैठ करने का आरोप लगा चुका है लेकिन एक छोटा मुल्क होने के कारण अक्सर वह असहाय बनकर रह जाता है और चीन धीरे-धीरे उसकी जमीन पर कब्ज़ा करते हुए भारत की तरफ आता जा रहा है. लेकिन भारत और अमेरिका समेत अन्य मुल्कों के लिये इसी साल चीन की तरफ से एक और बड़ा खतरा मंडराता हुआ दिखाई दे रहा है. वो ये कि चीन के इतिहास में पहली बार शी जिनपिंग को बतौर राष्ट्रपति  थर्ड टर्म यानी अगले पांच साल के लिए तीसरा कार्यकाल मिल रहा है. इसके बाद वे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग से भी बड़े लीडर बन जाएंगे,इसलिये तमाम विश्लेषक ये आशंका जता रहे हैं कि जिनपिंग दुनिया की मुश्किल बढ़ाने वाले हैं,लिहाज़ा भारत व अमेरिका को सबसे अधिक सतर्क रहना होगा.


रक्षा व सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हर्ष वी. पंत के मुताबिक इसमें किसी को भी कोई शक नहीं होना चाहिए कि शी जिनपिंग अपनी ताकत और बढ़ाना चाहते हैं,इसलिए वह दूसरे देशों के प्रति और आक्रामक रुख अपनाएंगे.  ऐसे में भारत और अमेरिका के साथ चीन का टकराव बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. वैसे भी चीन के लिए ये साल यानी 2022 को एक लैंडमार्क साल माना जा रहा है.  इस साल फरवरी में वहां विंटर ओलिंपिक गेम्स हैं.  फिर मार्च में कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस नैशनल पीपल्स कांग्रेस होगी और नवंबर 2022 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की सबसे महत्वपूर्ण बैठक होगी,जिसमें शी जिनपिंग की लगातार तीसरी बार ताजपोशी का ऐलान होगा. इसीलिये जिनपिंग का सारा ध्यान इसी पर है कि किस तरह से सीपीसी लीडर के तौर पर वह अपने तीसरे पांच साल के कार्यकाल को और ज्यादा मजबूत करें.  आमतौर पर दो कार्यकाल पूरा करने के बाद पार्टी के जनरल सेक्रेटरी चले जाते हैं और लीडरशिप बदल जाती है. लेकिन चीन के इतिहास में ये पहला मौका होगा,जब जिनपिंग को तीसरी बार पार्टी के साथ ही देश की सत्ता के सर्वोच्च पद पर बैठाया जाएगा.


रक्षा विशेषज्ञ पंत ने अपने एक लेख में कहा है कि जिनपिंग चीन के ऐसे पहले नेता हैं,जो अपने नेतृत्व की परिभाषा भी खुद ही गढ़ रहे हैं. उनके मुताबिक "शी की फिर से ताजपोशी होगी.  पिछले कुछ सालों से जिस तरह से उन्होंने ख़ुद को मज़बूत किया है,वो अभूतपूर्व है.  उन्होंने खुद को एक तरह से तंग श्याओफिंग और माओ त्से तुंग की बराबरी में ला खड़ा किया है.  अब वह अपनी ताकत और बढ़ाने की कोशिश में हैं.  अगर शी ऐसा कर पाए तो उन पर कोई अंकुश नहीं रहेगा.  इसी तरह से उन्होंने अपनी लीडरशिप को डिफाइन भी किया है.  शी ने इसके लिए वैचारिक मुहिम चला रखी है.  चीन में उनके विचारों को लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. "


यही कारण है कि पंत की तरह ही अन्तराष्ट्रीय मामलों के अन्य कई विशेषज्ञ भी जिनपिंग की इस बढ़ती ताकत को भारत व अमेरिका के लिए संभावित खतरे का संकेत मान रहे हैं. उनकी नजर में इस साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में केंद्रीकरण तो देखने को मिलेगा  ही लेकिन सबसे बड़ा डर ये है कि बाहरी दुनिया के ख़िलाफ वह और भी ज्यादा आक्रामक हो सकता है.  वह किसी भी तरह की आलोचना या दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा.  शी जिनपिंग इस साल के आख़िर तक ऐसे मुकाम पर होंगे, जहां उनसे पहले कोई भी राष्ट्रपति नहीं पहुंचा है.  उनके पास इतनी पावर होगी, जो इससे पहले चीन के किसी भी लीडर के पास नहीं रही है.  चाहे वह इकॉनमिक पावर हो या पॉलिटिकल पावर.  शी के चारों ओर ऐसी टीम होगी, जो उन्होंने पिछले दस सालों में बनाई है. इसलिये सोचने की बात ये है कि वो भारत के लिए सबसे बड़े खतरे की वजह आखिर क्यों नहीं बन सकती है?



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