जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को लेकर भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा है। राज्यसभा में जहां प्रस्तावों को ध्वनिमत से पास कर दिया गया है, तो वहीं आज लोकसभा में इसे लेकर चर्चा हुई। जहां कांग्रेस ने इसे लेकर कई सवाल खड़े किए हैं लेकिन कांग्रेस अब इस मसले पर अपने बयानों पर घिर गई है। समझौतों और यूएन का हवाला देकर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी खुद अपनी ही पार्टी में घिर गए हैं जबकि मजबूत इरादों और आक्रामक तेवर के साथ सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी भारत का हिस्सा है। लेकिन फिलहाल सवाल कश्मीर का है। धारा-144 और सेना की बख्तरबंदी के बाद वहां की आवाम और सियासतदां क्या करने वाले हैं ये देखना अभी बाकी है। हालांकि उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी आजाद सरीखे नेता नए कश्मीर को लेकर आशंकित क्यों हैं ये समझ से परे है।असल में समझना ये है कि

धरातल पर कैसे उतरेगा कश्मीर पर लिया गया पीएम मोदी का ऐतिहासिक फैसला ? समझना ये है कि कश्मीर के नए दौर पर उमर, महबूबा, गुलाम नबी को आशंका किस बात की है? और दुनिया भर में पीएम मोदी की कूटनीतिक फतह के बाद क्या अपने प्रपंचों से बाज आ जाएगा पाकिस्तान?

गृह मंत्री अमित शाह का ये एलान बताता है कि जम्मू-कश्मीर से 370 को हटाने का फैसला मोदी सरकार का इतिहास न केवल बदलेगा भी बल्कि लिखेगा भी यही वजह है कि अमित शाह राज्यसभा में इस प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में ये कहने से नहीं चूके कि उन्हें पता है कि इसे कानूनी तौर पर चुनौती देकर अड़चने खड़ी की जाएंगी...लेकिन वो किसी को इसके लिए रास्ता नहीं देने वाले।

सरकार ने सोमवार को भले ही जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का फैसला कर लिया हो लेकिन इसकी राह आसान नहीं है क्योंकि अब इस प्रस्ताव को जम्मू-कश्मीर की विधानसभा से पास कराना होगा। संवैधानिक तौर पर सरकार के लिए ये कदम अहम है। लोकसभा में जिस तरह का प्रचंड बहुमत भाजपा को मिला है वो राज्य के विधानसभा चुनावों की तस्वीर बदलेगा। इसका इंतजार भाजपा को भी होगा। हालांकि भाजपा की चुनौतियां कश्मीर से लेकर दिल्ली तक है। क्योंकि कांग्रेस इस मुद्दे पर लगातार सरकार को घेर रही है।

जम्मू-कश्मीर को लेकर कांग्रेस का सियासी रूख तय नहीं हो पा रहा क्योंकि प्रस्ताव के समर्थन में कई नेता अपने बयान दे चुके हैं। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं जम्मू-कश्मीर के सियासी चेहरे भी दोराहे पर खड़े हो गए हैं। उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी जैसे नेताओं का रुख 370 हटाने को लेकर भले ही गरम हो लेकिन उन्हें ये समझना होगा कि हिंदुस्तान की हुकूमत का फैसला उनके हित में है।

मोदी सरकार के इस फैसले की गूंज पूरी दुनिया में है। जिस मसले को लेकर दुनिया भर को पाकिस्तान भरमाने की कोशिश करता रहा, उसका इलाज एक झटके में शाह ने कर दिया। इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान बौखलाया है। पीएम मोदी की कूटनीति से न केवल कश्मीर को लेकर उसके छल पर प्रहार हो गया है बल्कि उसे अपने बंटवारे का खौफ सताने लगा है।

कश्मीर पर लिया गया सरकार का फैसला न केवल साहसी है, बल्कि सियासी लिहाज से सोचा समझा भी। इसी सियासत का विरोध फिलहाल संसद में दिख रहा है। सड़क पर दिखने का भी अंदेशा है। सरकार ने ये कड़ा फैसला सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर लिया है। यही वजह है कि इसे लेकर विश्व बिरादरी भी खामोश है। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का प्रोपैगैंडा दुनिया भी देख चुकी है, कैसे वो यहां के आवाम के हवाले से बारूद की खेती हिंदुस्तान में करता रहा है। बेहतर तो यही है कि तमाम दूसरे राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर के विकास में भी सभी दलों को सरकार के साथ होना चाहिए। व्यक्ति विरोध में राष्ट्रहित के फैसलों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।