वकालत से सियासत में कूदने वाले किसान पुत्र जगदीप धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति बन गए हैं. वे 11 अगस्त को पद की शपथ लेंगे. हालांकि इस पद के लिए जितने भी नामों की चर्चा हो रही थी, धनखड़ का नाम सबसे आखिरी पायदान पर था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम पर फैसला लेकर सबको चौंका दिया था. कहते हैं कि राजनीति में दुश्मनी भी स्थायी नहीं होती. पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहते हुए धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच शुरुआत से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा, लेकिन कितनी हैरानी की बात है कि उन्हीं ममता ने अपनी पार्टी के 34 सांसदों को मतदान से गैर हाजिर करवाकर जगदीप धनखड़ का परोक्ष समर्थन कर दिया.


दरअसल, बीजेपी ने पहले आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाकर और अब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाने के जरिये एक साथ कई सियासी समीकरण साधने की कोशिश की है. धनखड़ की छवि एक शिक्षित और जुझारु जाट नेता की रही है और जाट समुदाय में उनकी खासी पकड़ भी है. अगले साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं, लिहाजा बीजेपी ने धनखड़ को इस पद पर बैठाकर जाटों का दिल जीतने के साथ ही राजस्थान का किला फ़तह करने की भी रणनीति बनाई है.


केंद्र सरकार के लाये तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ जो किसान आंदोलन हुआ,उसके चलते हरियाणा, राजस्थान, पंजाब व पश्चिमी यूपी के आम किसान व जाट बीजेपी सरकार से नाराज हो गए थे, लेकिन धनखड़ के जरिये बीजेपी ने अब उनकी नाराजगी दूर करने का जो ब्रहमास्त्र चलाया है, वह राजस्थान व मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव में तो अपना असर दिखायेगा ही, लेकिन उसके बाद 2024 के हरियाणा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को इसका बड़ा फायदा मिलेगा.


राजस्थान, हरियाणा के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और दिल्ली में भी जाट मतदाताओं की खासी संख्या है, जिन्हें बड़ा वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी का लक्ष्य है कि 2024 लोकसभा चुनाव में ये जाट वोट बैंक एकमुश्त उसके साथ आ गया तो ऐसी कई सीटें भी उसके खाते में आ सकती हैं, जहां फिलहाल विपक्ष का कब्जा है.


चूंकि धनखड़ किसान परिवार से आते हैं, लिहाजा उनके उपराष्ट्रपति बनने से किसानों में भी बीजेपी के प्रति जो नाराजगी है वो दूर हो सकती है. किसानों, जाटों के अलावा बीजेपी की नजर उस वोट बैंक पर भी है, जो कानूनी पेशे से जुड़े हैं. उल्लेखनीय है कि धनखड़ ने अपने कॅरियर की शुरुआत वकालत से की थी और आज भी उनका नाम एक धाकड़ वकील के तौर पर ही लिया जाता है. देशभर में 10 लाख से ज्यादा लोग वकालत के पेशे में हैं. ऐसे में बीजेपी को वकीलों का भी साथ मिल सकता है. धनखड़ को जब उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम बीजेपी नेताओं ने उन्हें किसान पुत्र कहकर ही बुलाया था.


धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने से बीजेपी और सरकार की एक और सिरदर्दी भी कम हो जाएगी. जाट समुदाय से ही संबंध रखने वाले सत्यपाल मलिक केंद्र सरकार और बीजेपी के खिलाफ लगातार मुखर हैं. वे फिलहाल  मेघालय के राज्यपाल हैं. किसान आंदोलन के वक़्त बीजेपी के ही कुछ नेताओं ने दबी जुबां में ये आरोप भी लगाया था कि मलिक जाट समुदाय और किसानों को भड़का रहे हैं. बताते हैं कि पार्टी मजबूरी में ही उन्हें झेल रही है, लेकिन धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने से बीजेपी अब मलिक से छुटकारा पा सकती है और इससे उसे कोई खास नुकसान भी नहीं होगा.


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