Budget 2020: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण गला खराब होने के कारण बजट का अपना पूरा भाषण भले ही न पढ़ पाई हों, लेकिन वह वाला हिस्सा सबने सुना, जिसमें एलआईसी के शेयर बाजार में लिस्ट होने का रास्ता साफ किया गया है. उन्होंने देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी 'लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एलआईसी)' के आईपीओ को लेकर चल रही चर्चाओं पर आज लगभग पूर्णविराम लगा दिया. एलआईसी का आईपीओ लाने की चर्चा लंबे समय से चल रही थी, लेकिन पिछले साल खुद एलआईसी से इससे इनकार किया था.


भारत आज 1 अरब 30 करोड़ लोगों वाली तथा तीन खरब डॉलर की वैश्विक अर्थव्यवस्था है जिसमें सार्वजनिक कंपनियों की बड़ी और विशेष भूमिका है. करीब 2 दशकों से निजी बीमा कंपनियां देश के सार्वजनिक निगम एलआईसी को टक्कर देने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन वह टस से मस नहीं हुई. पॉलिसी संख्या के आधार पर आज भी उसका मार्केट शेयर 76.28% है और प्रथम वर्ष प्रीमियम जुटाने के मामले में उसका हिस्सा 71% है. इसके बावजूद वह सरकार द्वारा तय किए गए विनिवेश लक्ष्य की भेंट चढ़ने जा रही है. सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 1.05 लाख करोड़ और 2021 के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश का लक्ष्य रखा है.


सरकार कह रही है कि वह विनिवेश के जरिए पीएसयू कंपनियों की सेहत बेहतर करना चाहती है, जबकि हकीकत यह है कि उसे राजकोषीय घाटा पाटने के लिए जहाजों में भरकर रकम चाहिए. इसीलिए सरकार आईपीओ के जरिए एलआईसी में अपनी शेयर पूंजी का हिस्सा बेचने का प्रस्ताव रखने जा रही है, जिससे कुछ पैसे उसके हाथ में आएंगे.


यह बजट ऐसे समय आया है जब पिछले 15 साल में अर्थव्यवस्था की विकास दर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है, बेरोजगारी बढ़ने की दर बीते 45 सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर है, आम नागरिक के खर्च करने और खरीदने की क्षमता 40 सालों में सबसे निचले स्तर पर आ गई है. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस के मुताबिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग न्यूनतम स्तर पर चली गई है. रसातल में जाती अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए बीएचईएल, बीपीसीएल, जीएआईएल, एचपीसीएल, आईओसी, एमटीएनएल, एनटीपीसी, ओएनजीसी और सेल जैसी नवरत्न कंपनियों को विनिवेशित कर देने का चौतरफा दबाव है. एलआईसी का आईपीओ भी इसी दबाव का परिणाम है. आईपीओ लाने का मकसद यह है कि सरकार कंपनी में अपनी हिस्सेदारी घटाएगी. हिस्सेदारी कितने प्रतिशत कम होगी, यह तय होना शेष है.


देश की एक बड़ी आबादी भारतीय जीवन बीमा निगम पर जमकर भरोसा करती रही है. देश के करोड़ों लोगों ने आंख मूंदकर अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा एलआईसी की योजनाओं में लगा रखा है. लेकिन हाल के वर्षों पर नजर डाली जाए तो एलआईसी के पास मौजूद नकदी के बड़े भंडार पर जोखिम बढ़ रहा है.


वित्त वर्ष यानी 2019-20 के शुरुआती छह महीनों (अप्रैल-सितंबर) में एलआईसी की गैर निष्पादित संपत्त‍ि यानी एनपीए में 6.10 प्रतिशत की बढ़त हुई है. अधिकांश एनपीए निजी क्षेत्र के यस बैंक, आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक का है. कभी बेस्ट एसेट क्वालिटी के लिए ये मशहूर ये निजी बैंक बदले माहौल में बढ़ते एनपीए से परेशान दिख रहे हैं. वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में यस बैंक का सकल एनपीए 7.39 फीसदी, आईसीआईसीआई का एनपीए 6.37 फीसदी और एक्सिस बैंक का एनपीए 5.03 फीसदी पहुंच गया था.


एलआईसी से कर्ज लेकर दबा लेने वाली डिफॉल्टर कंपनियों में कई बड़े नाम शामिल हैं. इनमें एस्सार पोर्ट, गैमन, आईएल एंड एफएस, डेक्कन क्रॉनिकल, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज, आलोक इंडस्ट्रीज, भूषण पावर, अमट्रैक ऑटो, एबीजी शिपयार्ड, जीवीके पावर, यूनिटेक और जीटीएल शामिल हैं. एलआईसी ने कई ऐसी कंपनियों को टर्म लोन और एनसीडी के रूप में भी कर्ज दिया है, जो डिफॉल्टर हो चुकी हैं और उनसे पैसा वापस मिलना काफी मुश्किल है. ऐसी हालत से उबारने के लिए डिफाल्टरों से कर्ज वसूलने की जगह सरकार को एलआईसी का विनिवेश कर देना ही एक आसान रास्ता नजर आ रहा है.


केंद्र सरकार यह विचार नहीं करती कि लाभ में चल रहे सार्वजनिक निगम या उपक्रम विनिवेश के बाद एक बार मिलने वाली एकमुश्त पूंजी से कई गुना ज्यादा लाभदायक सिद्ध होते हैं. सीतारमण जी इतनी जल्दी भूल गईं कि अभी बीते दिसंबर के आखिरी हफ्ते में ही एलआईसी के चेयरमैन एमआर कुमार ने उन्हें वित्त वर्ष 2018-19 के लिए सरकार के सरप्लस हिस्से के रूप में 2610.74 करोड़ रुपए का चेक सौंपा था. एलआईसी ने उक्त वित्त वर्ष में 53214.41 करोड़ रुपए का वैल्युएशन सरप्लस अर्जित किया था.


विनिवेश का लक्ष्य हासिल करने के लिए केंद्र सरकार एलआईसी ही नहीं अपितु भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, हिंदुस्‍तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और एयर इंडिया का निजीकरण तक करने की तैयारी कर चुकी है. वह अपनी बड़ी हिस्सेदारी के साथ-साथ प्रबंधन पर नियंत्रण भी पूरी तरह से छोड़ने को तैयार है. निजीकरण होने पर सरकार से कंपनी की मिल्कियत निजी हाथों में चली जाती है जिसके कारण कर्मचारियों की नौकरियों पर खतरा पैदा हो जाता है.


टेकओवर के बाद निजी कंपनियों की दिलचस्पी कर्मचारियों के कल्याण में नहीं बल्कि केवल लाभ कमाने में होती है. जैसे जैसे एलआईसी की सरकारी हिस्सेदारी निजी हाथों में जाएगी, वैसे-वैसे कंपनी के कर्मचारियों ही नहीं, बल्कि बीमाधारकों के लाभों और हितों पर भी चोट गहराती जाएगी. अभी बीते दिसंबर में ही एलआईसी को जीवन उमंग, जीवन लाभ, जीवन लक्ष्य, जीवन आनंद जैसी अपनी कई सदाबहार और लोकप्रिय पॉलिसी बंद करनी पड़ी हैं.


माना जा रहा है कि अगर इस कंपनी को शेयर बाजार में लिस्ट कराया जाता है तो इसमें निवेशक गजब की दिलचस्पी दिखा सकते हैं. लेकिन सरकार यह नहीं समझ पा रही है कि उसकी ओर से तय किए जाने वाले उद्देश्य और बार-बार की दखलंदाजी से एलआईसी को लेने के देने भी पड़ सकते हैं और करोड़ों लोगों का वह भरोसा टूट सकता है, जो जिंदगी के साथ भी है, जिंदगी के बाद भी है.


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