ब्लॉगः चुनाव खत्म, दोस्ती हजम, मायावती ने तोड़ा अखिलेश से गठबंधन
ABP Ganga | 24 Jun 2019 08:08 PM (IST)
2014 में हाशिये पर पहुंच चुकी मायावती की राजनीति 2019 में 10 सीटें जीतकर एक बार फिर पटरी पर लौट आई है और सपा फिर से अपनी खोई जमीन तलाशने में लगी है।
नफा-नुकसान भी तो खुदी को सोचना है, कहां किरदार डूबा किसी को क्या बताना। 2014 में हाशिये पर पहुंच चुकी मायावती की राजनीति 2019 में 10 सीटें जीतकर एक बार फिर पटरी पर लौट आई है और सपा फिर से अपनी खोई जमीन तलाशने में लगी है। 19 साल की सियासी अदावत को ताक पर रखकर मायावती और अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनावों से पहले जिस दोस्ती की शुरुआत की थी वो दोस्ती खत्म हो चुकी है लेकिन शर्मिंदगी का दौर इस बेमेल राजनीतिक दोस्ती के होने पर नहीं बल्कि टूटने पर शुरु हो गया है। इंजीनियरिंग के छात्र रहे अखिलेश यादव चुनावी नतीजे के एक महीने गुजर जाने के बाद भी ये नहीं जान सके हैं कि दोस्ती की उनकी मशीन के कौन से पुर्जों में खामियां रह गईं लेकिन महीने भर से हार की पड़ताल में लगी मायावती ने साफ कर दिया कि मुसलमानों और दलितों को लेकर सपा का रुख गठबंधन के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। अखिलेश अभी तक मौन हैं। दरअसल, जिस नेता को सत्ता में वापसी से रोकने के इकलौते मकसद से ये गठबंधन हुआ था, उसकी सत्ता में पहले से ज्यादा ताकत के साथ वापसी हुई और उस नेता ने इस गठबंधन के टूटने का एलान पहले ही कर दिया था। रिश्ते टूटने पर ये जरूरी तो नहीं की एक-दूसरे पर आरोप भी जड़े जाएं लेकिन सपा और बसपा का गठबंधन टूटा तो बसपा सुप्रीमो राशन-पानी लेकर सपा और उसके नेता अखिलेश यादव पर टूट पड़ीं। मायावती अखिलेश यादव पर टिकट बंटवारे में मुसलमानों की अनदेखी का आरोप लगा रही हैं। साथ ही समाजवादी सरकार में दलितों के उत्पीड़न की घटनाओं को भी मायावती ने चुनावी शिकस्त की वजहों में जोड़ दिया और इस तरह मायावती ने अखिलेश से अपने सियासी अलगाव पर मुहर भी लगा दी ऐलान कर दिया कि आने वाले सभी चुनावों में बसपा अकेले ही लड़ेगी। मायावती के इस जोरदार झटके से पहले ही हार के साइड इफेक्ट से जूझ रही समाजवाद पार्टी अब बगले झांकने को मजबूर है। पराजय की समीक्षा में व्यस्त अखिलेश यादव गठबंधन फेल होने के सवाल का अबतक मुकम्मल जवाब नहीं ढूंढ पाये हैं लेकिन अखिलेश पर मुसलमानों की अनदेखी के आरोप पर पहली बार सांसद बने आजम खान ने कहा कि ये आरोप लगाकर मायावती ने हल्की बात कर दी। 2014 लोकसभा चुनाव में जिस बसपा का सूपड़ा साफ हो गया था, उस बसपा को 2019 के चुनावों ने संजीवनी दे दी है। ऐसे में मायावती अब यूपी के मिशन 2022 में जुट गई हैं लेकिन अखिलेश से अलग होने के उनके कदम ने भाजपा को बड़ी राहत दी है। गठबंधन का आगाज़ अखिलेश यादव के जोश के साथ हुआ लेकिन इसका खात्मा मायावती के तैश के साथ हो रहा है। सपा की करारी हार और मुलायम सिंह के पूरी तरह निष्क्रिय हो जाने को मायावती बसपा के लिए एक मौके की तरह देख रही हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव में वजूद बचाने में कामयाब मायावती अब विधानसभा चुनाव में किसी करिश्मे की उम्मीद में हैं। इसीलिए अब सपा के मुस्लिम वोटबैंक को भी मायावती लुभाने में जुटी हैं लेकिन ये जनता की जिम्मेदारी है कि वो जात-पात और मजहब से ऊपर उठकर मतदान करे।