भारत और बांग्लादेश की टीमें हैदराबाद में बृहस्पतिवार से टेस्ट मैच खेलने उतरेंगी. इस टेस्ट मैच के मायने क्या हैं? भारत ने हाल ही में न्यूजीलैंड और इंग्लैंड की टीम को टेस्ट सीरीज में हराया है. आम क्रिकेट प्रेमियों को ये टेस्ट मैच भी एकतरफा दिख रहा होगा, लेकिन सच थोड़ा अलग है. बांग्लादेश के खिलाफ भारत का पलड़ा हर हाल में भारी है, लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि बांग्लादेश की टीम न्यूजीलैंड और इंग्लैंड की टीम से अलग है. अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में साख के पैमाने पर भले ही बांग्लादेश की टीम इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के मुकाबले कमजोर कही जा सकती है लेकिन भारत की आबोहवा से वो इन दोनों टीमों के मुकाबले ज्यादा बेहतर परिचित है. उसे भारतीय पिचों का अंदाजा ज्यादा बेहतर है. सबसे बड़ी बात ये कि बांग्लादेश के पास न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के मुकाबले कहीं बेहतर स्पिनर मौजूद हैं. उसके कुछ बल्लेबाजों ने हाल के टेस्ट मैचों में कमाल का प्रदर्शन भी किया है. ऐसे में इस टेस्ट मैच को इस लिहाज से देखा जाना चाहिए कि हमें भारतीय ‘स्टार्स’ के अलावा कुछ बांग्लादेशी ‘स्टार्स’ को भी देखने का मौका मिलेगा. वैसे भी भूलना नहीं चाहिए कि ये वही बांग्लादेश की टीम है जिसने अपने टेस्ट इतिहास के पहले ही मैच में भारतीय टीम के खेमे में खलबली मचा दी थी.


साल 2000 के नवंबर की है कहानी
बांग्लादेश की टीम अपने इतिहास में पहली बार टेस्ट मैच खेल रही थी. 2000-2001 के सीजन में भारत और बांग्लादेश का टेस्ट मैच था. वो बांग्लादेश का पहला टेस्ट मैच था. सौरव गांगुली भारतीय टीम के और खालिद मसूद बांग्लादेश की टीम के कप्तान हुआ करते थे. भारतीय टीम में जवागल श्रीनाथ, जहीर खान, अजीत अगरकर, सुनील जोशी और मुरली कार्तिक जैसे गेंदबाज थे. बावजूद इसके बांग्लादेश की टीम ने पहली पारी में चार सौ रन बना लिए थे. इसमें अमीनुल इस्लाम के शानदार 145 रन शामिल हैं. अच्छे खासे बॉलिंग लाइन अप के सामने 400 रनों के स्कोर ने भारतीय खेमे में खलबली मचा दी थी. भारतीय खिलाड़ियों ने सोचा नहीं था कि बांग्लादेश पहले टेस्ट मैच में 400 रन जोड़ देगी. हां, लेकिन इसके बाद बांग्लादेश की टीम ने वो हिम्मत और संयम नहीं दिखाया जो उन्हें दिखाना चाहिए था. दूसरी पारी में पूरी की पूरी टीम सिर्फ 91 रन पर सिमट गई और भारतीय टीम ने वो टेस्ट मैच 9 विकेट से जीत लिया. इस टेस्ट मैच का जिक्र करना इसलिए जरूरी था कि तब से लेकर आजतक बांग्लादेश के खिलाड़ियों में टेस्ट क्रिकेट के लिहाज से ‘कंसिसटेंसी’ की कमी है. इसी वजह से टेस्ट क्रिकेट में 15 साल से ज्यादा का तजुर्बा होने के बाद भी बांग्लादेश की टीम वो ‘मुकाम’ हासिल नहीं कर पाई जो वो पा सकती थी.

हीरो के बाद जीरो बनने का एक और उदाहरण
इसी साल जनवरी में बांग्लादेश की टीम न्यूजीलैंड के दौरे पर थी. वेलिंगटन टेस्ट में न्यूजीलैंड ने टॉस जीतकर बांग्लादेश को पहले बल्लेबाजी का मौका दिया. बांग्लादेश की शुरूआत खराब रही. इसके बाद भी उन्होंने स्कोरबोर्ड पर 595 रन जोड़ दिए. बांग्लादेश के आत्मविश्वास का पैमाना ये कि 595 रन जोड़कर उन्होंने पारी समाप्ति का एलान कर दिया. इस 595 रनों के स्कोर में शाकिब-अल-हसन का दोहरा शतक शामिल है. उन्होंने 276 गेंदों पर 217 रनों की जबरदस्त पारी खेली थी. उनके अलावा मुशिफिखुर रहीम ने 159 रनों की जबरदस्त पारी खेली. न्यूजीलैंड की पिचों पर इतने बड़े स्कोर बनाना आसान नहीं होता लेकिन इन दोनों बल्लेबाजों का प्रदर्शन ये संदेश दे रहा था कि अब बांग्लादेश के बल्लेबाज भी ‘बोल्ड’ हो गए हैं. उन्हें पता है कि टेस्ट मैच संयम का खेल है. अभी अगर कहीं कमी है तो पांच दिन तक उस संयम को बनाए रखने की. वेलिंगटन टेस्ट मैच की स्कोरशीट ये भी बताती है कि बांग्लादेश ने पहली पारी में पचास से ज्यादा रनों की ‘लीड’ भी ले ली, लेकिन उसके बाद दूसरी पारी में उनकी बल्लेबाजी बुरी तरह ‘फ्लॉप’ हो गई. जिसकी वजह से न्यूजीलैंड को चौथी पारी में उन्होंने सिर्फ 217 रनों का लक्ष्य दिया. जिसे मेजबान टीम ने 3 विकेट खोकर हासिल कर लिया और बांग्लादेश की टीम एक शानदार इतिहास रचने से चूक गई.


इस इकलौते टेस्ट मैच के मायने क्या हैं
इस इकलौते टेस्ट मैच के मायने यही हैं कि अपने स्टार्स के साथ साथ बांग्लादेश के स्टार्स को भी देखिए. शाकिब अल हसन, मुशिफिकुर रहीम, तस्कीन अहमद और थमीम इकबाल जैसे खिलाड़ियों पर नजर रखिए. शाकिब अल हसन तो भारत के लिए जाना माना नाम हैं बाकि के ये सारे नाम भी दिग्गज हैं. थमीम इकबाल को भूल गए हों तो 2007 में वेस्टइंडीज में खेले गए विश्व कप में जहीर खान जैसे गेंदबाज को लगाए गए उनके छक्कों को याद कर लीजिए. निश्चित तौर पर ये फॉर्मेट अलग है लेकिन अब उनका तजुर्बा भी अलग है. भारतीय टीम के लिहाज से भी इस मैच के कुछ ‘खास’ मायने हैं. अव्वल तो इस मैच को जीतकर विराट कोहली लगातार सीरीज जीतने के मामले में एक कदम और आगे निकल जाएंगे. दूसरा ये कि इक्का दुक्का मौको को छोड़ दिया जाए तो पिछले करीब एक साल से भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज रंग में नहीं है. उन्हें परखने का एक और मौका मिलेगा. अजिंक्य रहाणे की वापसी पर भी सभी की निगाहें रहेंगी.