ब्लॉगः गालिब, राहुल और चुनाव
ABP News Bureau | 23 Dec 2016 05:23 PM (IST)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में वाराणसी में बिना राहुल गांधी का नाम लिए कहा कि वह भाषण देना सीख रहे हैं. यह देख सुन कर मोदी ने कहा कि उन्हें खुशी हो रही है. पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी लगातार यूपी, गुजरात, उत्तराखंड घूम रहे हैं और भाषण दे रहे हैं. उनके 4 भाषण सुनने के बाद यही कहा जा सकता है कि मोदी सही कह रहे हैं कि राहुल गांधी भाषण देना सीख रहे हैं. दो तीन बातें तो बिल्कुल साफ हैं. राहुल गांधी ने अब नरेन्द्र मोदी की तरह चालीस से पैंतालीस मिनट का भाषण देना शुरु कर दिया है. पहले वह दस बारह मिनट से ज्यादा नहीं बोलते थे. अब चार गुना ज्यादा बोलने लगे हैं. गालिब से लेकर बशीर बद्र के शेर सुनाने लगे हैं. बहराइच में गालिबजी (यही बोला था राहुल ने) का शेर सुनाया. "हरेक बात पे कहते हो कि तू क्या है , तुम्ही कहो ये अंदाजे गुफ्तगूं क्या है" उत्तराखंड में उन बशीर बद्र का शेर पढ़ा जो बीजेपी के पक्षधर है. उम्र गुजर जाती है इक घर बनाने में, तुम्हे शर्म नहीं आती बस्तियां जलाने में. लेकिन राहुल गांधी के भाषण में दोहराव बहुत ज्यादा नजर आता है. शब्द छोड़िए, वह तो वाक्य के वाक्य दोहरा रहे हैं. साथ ही, भाषण देने का क्रम एक जैसा ही है. ऐसे में लगता है कि पूरा का पूरा भाषण ही मानो रटकर पढ़ दिया गया हो. ऐसा नहीं है कि दूसरे दलों के नेता हर भाषण में अलग अलग विषय उठाते हैं. वह नेता भी एक जैसी बातें ही करते हैं. लेकिन थोड़ी चालाकी करते हैं. क्रम बदल देते हैं. शब्द बदल देते हैं. कुछ घटा देते हैं और कुछ जोड़ देते हैं. उसी विषय को इस तरह उठाते हैं कि ऐसा लगता है मानो नया विषय उठा रहे हों. जिस दिन नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाया था, उनकी नकल की थी उस दिन राहुल गांधी ने बात पकड़ी तो सही मगर जल्द ही छोड़ भी दी. राहुल ने कहा कि मोदीजी, मजाक जितना उड़ाना है उड़ा ले लेकिन सहारा बिड़ला से पैसा लिया या नहीं उसका जवाब भी दे दो. यहां तक तो ठीक था लेकिन उसके बाद राहुल गड़बड़ा गये. अगर खुद का मजाक उड़ाने को राहुल लाइन में खड़ी जनता का मजाक उड़ाने से तुलना कर देते तो बात दूर तक असर कर सकती थी. मोदीजी ने तो बड़ी चालाकी से नोटबंदी का विरोध करने वालों की तुलना जेबकतरों और आंतकवादियों की मदद कर रही पाकिस्तान की सेना से कर दी थी. उनका कहना था कि जैसे सीमा पर जब आतंकवादियों को घुसपैठ करानी हो तो पाक सेना फायरिंग करती है ताकि भारतीय सेना का ध्यान भंग हो जाए और आतंकी भारत में घुस जाएं. आगे उनका कहना था कि जैसे कि जेबकतरा जेब काटने के बाद खुद ही चिल्लाने लगता है कि जेबकतरा उस तरफ गया है ताकि पुलिस और जनता उस दिशा में भाग जाए और जेबकतरा मुस्कराता हुआ दूसरी तरफ का रुख ले. यह बहुत गहरी चोट थी. कुछ स्वतंत्र टिप्पणीकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री को ऐसी तुलना नहीं करनी चाहिए थी. यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा और मर्यादा के खिलाफ है. हो सकता है कि ऐसा ही हो लेकिन किसी भी सियासी दल ने अभी तक इन दो तुलनाओं पर कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी है. यहां तक कि राहुल गांधी या तो इसे समझ नहीं रहे हैं या फिर इस पर प्रतिक्रिया देने से जानबूझकर परहेज कर रहे हैं. चलिए, हो सकता है कि यह आपकी किसी रणनीति का हिस्सा हो लेकिन जब मोदीजी के मजाक का जवाब देना ही था तो या तो मजाक के रुप में देते या फिर करारा जवाब देते. लेकिन राहुल गांधी चूक गये. चूंकि मोदीजी के भाषण के कुछ घंटों बाद ही राहुल गांधी का बोलना था लिहाजा हो सकता है कि उन्हें तैयारी करने का पूरा समय नहीं मिला हो लेकिन उसके 2 दिन बाद की उत्तराखंड रैली में भी राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी के मजाक का जवाब नहीं तलाश सके. आप कल्पना कीजिए कि अगर ऐसा ही मजाक मोदी ने लालू यादव का उड़ाया होता तो लालू की तरफ से ठेठ बिहारी टोन में क्या जवाब सामने आता. या राहुल गांधी ने ऐसा कोई मजाक किया होता तो मोदीजी की तरफ से कैसा करारा जवाब मिलता. राहुल गांधी भाषण देना सीख रहे हैं. अगर इस बात को प्रधानमंत्री मोदी नोटिस ले रहे हैं तो यह राहुल गांधी के लिए खुशी की खबर होनी चाहिए. आखिर देश का सबसे बेहतर वक्ता आपकी मेहनत की पहचान कर रहा है. राहुल के सामने दिक्कत यही है कि उन्हें मोदी और केजरीवाल का सामना करना पड़ रहा है जो भाषण देने में, जनता की नब्ज पकड़ने में, जुमले गढ़ने में, विरोधियों पर तगड़ा प्रहार करने में और सीधे दिल पर चोट करने में माहिर हैं. बकौल मोदीजी, राहुल अभी सीख रहे हैं. कांग्रेसियों को जरुर लगेगा कि राहुल गांधी का भाषण जनता को छूने वाला होता है लेकिन भाषण जनता को झकझोर देने वाला होना चाहिए. नोटबंदी के बाद बने माहौल ने राहुल गांधी को सुनहरा मौका दिया है. देखना दिलचस्प होगा कि वह उसका कितना फायदा उठा पाते हैं.