यूपी और पंजाब जैसे बड़े राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की मौजूदा रेलमपेल के बीच गोवा की चुनावी छटाएं हमें कम ही देखने को मिलती हैं, लेकिन मात्र 40 सीटों वाले इस समुद्र तटीय राज्य में मचा चुनावी घमासान कुछ कम दिलचस्प नहीं है. मतदान 4 फरवरी, 2017 को होना है लेकिन चुनाव को और दिलचस्प बनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फणनवीस, शिवसेना कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे, आप सुप्रीमो केजरीवाल तक... यानी बड़े-बड़े दिग्गज गोवा की वादियों में गर्दिश कर चुके हैं या कर रहे हैं. जहां पिछले चुनावों (साल 2012) में 21 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने वाली सत्तारूढ़ बीजेपी इस बार भी अपना एकछत्र राज्य बरकरार रखने के लिए संघर्षरत है, वहीं कांग्रेस (9 सीटें) और अलग-अलग समय पर अवसरवादी गठबंधनों के साथ सत्ता सुख भोग चुके एनसीपी, जीएफपी, यूजीपी, जीएसआरपी, जीवीपी जैसे राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दल अपना-अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए हैं. मज़ेदार बात यह है कि राज्य में पूर्व स्थापित दलों के अलावा आप, शिवसेना और नवगठित गोवा सुरक्षा मंच ने पहली बार यहां के चुनावी मैदान में कूदकर मुक़ाबले को त्रिकोणीय ही नहीं, बल्कि कई सीटों पर चतुष्कोणीय बना दिया है. इन दिनों चुनावी समर क्षेत्र बने इस पर्यटन प्रधान राज्य पर नज़र डालें तो भूगोल के ऐतबार से यह मूलतः उत्तर और दक्षिण गोवा में विभाजित है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की 1,458,545 की आबादी में से 65% हिंदू, 6% मुस्लिम, 26% ईसाई, 0.07% सिख, 0.06% जैन, 0.05% बौद्ध तथा अन्य 0.026% शामिल थे. बीते 6 सालों में इन सबका प्रतिशत बढ़ा ही होगा! स्पष्ट है कि उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला मुख्यतः हिंदू तथा ईसाई मतदाता ही करते हैं. उत्तर गोवा में ईसाई मतदाता 19%, दक्षिण गोवा में 37% और शेष में 9% हैं. इसी तरह 9 विधानसभा सीटों में ईसाई मतदाताओं की संख्या हिंदुओं से ज्यादा है. इतना ही नहीं 18 सीटों ईसाई मतदाता निर्णायक स्थिति में रहते हैं. यही वजह है कि प्रत्यक्ष न सही अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में सरकार बनाने की बागडोर काफी हद तक चर्च के हाथ में होती है. पिछली बार बीजेपी के 21 में से 6 विधायक ईसाई समाज के थे. इसका कारण यह था कि 2012 में चर्च ने कहा था कि ईमान लाने वालों को ‘भ्रष्टाचारियों’ से निजात पानी चाहिए. जाहिर है, इशारा सत्तारूढ़ कांग्रेस की ओर था और वह साफ हो गई थी. चर्च वहां रैलियां करके कोई चुनावी अपील नहीं करता बल्कि प्रवचनों के दौरान इशारों में अपनी बात कहता है. इस बार लगता है कि चर्च बीजेपी से बहुत ख़ुश नहीं है क्योंकि पिछले ही वर्ष क्रिसमस के एक पारंपरिक भोज के दौरान आर्कबिशप दमन रेव फिलिप नेरी फेराओ ने अपने संबोधन में कहा था कि चर्च जलाने वाले खुले घूम रहे हैं और सरकार कुछ नहीं कर रही है.
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